
हेमंत के स्टेयरिंग पर बैठते ही 18 जिलों में छा गया झामुमो, लेकिन पीछे छूट गया 26 जिले का वृहत झारखंड
सोमवार से रांची में शुरू होगा झामुमो का दो दिवसीय 13वां महाधिवेशन, पहली बार संगठन मेंं भी कल्पना को मिलेगी बड़ी जिम्मेदारी, आइएनडीआइए में रहते हुए बिहार व बंगाल विधानसभा चुनाव में सीटें लेने, 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति और सरना धर्म कोड लागू कराने की है चुनौती
झामुमो के महाधिवेशन पर विशेष
दिलीप सिन्हा, देवभूमि झारखंड न्यूज धनबाद : चार फरवरी 1973 का दिन था। धनबाद के ऐतिहासिक गोल्फ गाउंड में धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग, संताल परगना से लेकर कोल्हान तक से लोग यहां पहुंचे थे। करीब एक लाख से अधिक लोगों का जुटान हुआ था। तब न मोबाइल का युग था और न ही यहां के आदिवासियों और मूलवासियों के पास वाहन थे। अधिकांश लोग पैदल यहां पहुंचे थे। हाथों में तीर-धनुष थे। मांदर बजाते चल रहे थे। साथ में झूमर और छऊ नृत्य की टीम भी प्रस्तुति दे रही थी। यह अलौकिक दृश्य था झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रथम महाधिवेशन का था। इस महाधिवेशन में झारखंड मुक्ति मोर्चा का जन्म हुआ। मंच पर थे सामाजिक क्रांति के अग्रदूत बिनोद बिहारी महतो, प्रसिद्ध मार्क्सवादी चिंतक कामरेड एके राय एवं युवा तुर्क आदिवासी नेता शिबू सोरेन। भूमिगत आंदोलन से निकलकर पहली बार शिबू सोरेन ने जनसभा को संबोधित किया था। इस पहले महाधिवेशन में बिनोद बिहारी महतो झामुमो के अध्यक्ष और शिबू सोरेन महासचिव चुने गए थे। झामुमो ने अपने पहले महाधिवेशन में नारा दिया था-चार फरवरी का नारा है, झारखंड राज्य हमारा है। बिनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन ने मंच से शंखनाद किया था कि 26 जिले का वृहत झारखंड के लिए आंदोलन आज से होगा। उस वक्त का यह 26 जिला तीन राज्यों क्रमश : संयुक्त बिहार, ओडिशा, बंगाल और मध्यप्रदेश में फैला था। धनबाद से शुरू हुआ यह आंदोलन शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी महतो के नेतृत्व में वृहत झारखंड में फैल गया। झामुमो एक बड़ी शक्ति के रूप में इन 26 जिलों में उभरा। बिहार सरकार तो छोड़िए केंद्र सरकार झामुमो के आंदोलन से हिल गई। इस आंदोलन की देन है कि झारखंड अलग राज्य का गठन हुआ और आज झामुमो के नेतृत्व में लंबे समय से सरकार चल रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हेमंत सोरेन जैसे ही झामुमो की स्टेयरिंग पर बैठे, झामुमो पूरे झारखंड में छा गया। झामुमो और हेमंत सोरेन के पास उपलब्धियों का खजाना है। इसके बावजूद इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता है कि 26 जिलों के जिस वृहत झारखंड अलग राज्य का सपना इसके संस्थापकों ने देखा था, वह अब सपना ही बनकर रह गया है। बिहार के तत्कालीन 18 जिलों को काटकर अलग राज्य बनने के बाद झामुमो ने वृहत झारखंड का सपना पीछे छोड़ दिया है। झामुमो का दो दिवसीय 13वां महाधिवेशन सोमवार से रांची में शुरू हो रहा है। इस महाधिवेशन में एक बार फिर वृहत झारखंड का मुद्दा उठेगा, लेकिन यह सिर्फ एक नारा बनकर रह जाएगा। कारण, झामुमो यह मुद्दा काफी पीछे छोड़ चुका है। हालांकि महाधिवेशन में बंगाल, ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़, तेलांगना समेत कई राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। छह हजार से अधिक प्रतिनिधियों के शामिल होने की संभावना है। झामुमो के लिए 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति और सरना धर्म कोड लागू कराने की भी चुनौती है।
यह है वृहत झारखंड की परिकल्पना
झामुमो ने संयुक्त बिहार के 18 जिलों के अलावा बंगाल के मेदनीपुर, बांकुड़ा और पुरूलिया तथा उस वक्त के मध्यप्रदेश जो अब छत्तीसगढ़ में है के सरभुजा और रायगढ़ एवं ओडिशा के मयूरभंज, क्योंझर, सुंदरगढ़ और संबलपुर को मिलाकर वृहत झारखंड राज्य की कल्पना की थी। वैसे वृहत झारखंड का मुद्दा झामुमो के इतिहास से भी पुराना है, लेकिन झामुमो ने इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया था। झामुमो को इसका राजनीतिक फायदा भी हुआ। ओडिशा के इन जिलों से कभी झामुमो के आठ विधायक और एक सांसद जीते थे। बंगाल और छत्तीसगढ़ में झामुमो को कभी चुनावी सफलता नहीं मिली थी, लेकिन चुनावों में यहां भी झामुमो का प्रदर्शन बेहतर रहा था।
वृहत झारखंड बनने से ही आदिवासी-मूलवासी राज्य का सपना हो सकता साकार
कभी झामुमो के फायर ब्रांड नेता रहे पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा देवभूमि झारखंड न्यूज से बातचीत में कहते हैं कि आदिवासी-मूलवासी राज्य बनाने का जो सपना हम लोगों ने देखा है, वह मौजूदा झारखंड में मूल रूप से पूरा होने वाला नहीं है। 26 जिले का वृहत झारखंड बनने से ही आदिवासी-मूलवासी राज्य का सपना साकार हो सकता है। वृहत झारखंड में आदिवासियों और मूलवासियों की संख्या 80 प्रतिशत से अधिक होगी। इधर धनबाद के गोमो के रहने वाले झामुमो के संस्थापक सदस्य व झारखंड आंदोलनकारी पुनीत महतो ने देवभूमि झारखंड न्यूज को बताया कि झामुमो के गोल्फ ग्राउंड में हुए पहले महाधिवेशन में बिनोद बाबू ने वृहत झारखंड राज्य के लिए संघर्ष का ऐलान किया था। बिनोद बाबू के नहीं रहने से वृहत झारखंड का मुद्दा पीछे छूट गया। झामुमो इसे अब भूल चुका है। वहीं अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर बिहार विधानसभा से इस्तीफा देने वाले सूर्य सिंह बेसरा कहते हैं कि 1991 में संयुक्त बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से झारखंड क्षेत्र विकास परिषद और
1995 में जैक
लेने के साथ ही झामुमो ने वृहत झारखंड की मांग से समझौता कर लिया। झामुमो को इसका नुकसान भी हुआ। ओडिशा जहां इसके आठ विधायक और एक सांसद जीते थे, सभी झामुमो छोड़कर नवीन पटनायक की पार्टी में और बाद में उनमें से कई भाजपा में शामिल हो गए। आज बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में झामुमो का नाम लेने वाला नहीं है।
स्टार प्रचारक कल्पना सोरेन को मिलेगी बड़ी जिम्मेवारी
लोकसभा चुनाव के पहले हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद राजनीति में उतरीं उनकी पत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन आज झामुमो की सबसे बड़ी स्टार प्रचारक हैं। गांडेय से दो बार चुनाव जीत चुकीं कल्पना की लोकप्रियता का जादू आज झारखंड में चल रहा है। सदन और सदन के बाहर वह खुद को स्थापित कर चुकी हैं। महाधिवेशन में पहली बार कल्पना को संगठन में बड़ी जिम्मेवारी मिलने जा रही है। कल्पना को पार्टी का महासचिव या उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है।
आइएनडीआइए में बिहार और बंगाल विधानसभा चुनाव में सीट लेना एक चुनौती
झामुमो आइएनडीआइए का एक मजबूत घटक है। आनएनडीआइए में कांग्रेस, झामुमो, राजद और वामपंथी पार्टियां शामिल हैं। इस साल बिहार में और अगले साल बंगाल में विधानसभा चुनाव होना है। इन दोनों राज्यों में चुनाव लड़ने की तैयारी झामुमो कर रहा है। इसके लिए झामुमो आइएनडीआइए के प्लेटफार्म पर अपनी बात रखेगा। महाधिवेशन में यह मुद्दा भी उठेगा। झामुमो के नेताओं को याद है कि किस तरह झारखंड विधानसभा चुनाव में रांची मेंं कैंप कर तेजस्वी यादव ने झामुमो पर दबाव बनाकर गठबंधन के तहत राजद के लिए सीटें ली थी। बिहार विधानसभा चुनाव में कुछ इसी तरह का दबाव बनाने का प्रयास झामुमो राजद और कांग्रेस पर करेगा। पिछला अनुभव बताता है कि इसके लिए शायद ही राजद और कांग्रेस तैयार होगी। इसी तरह बंगाल में ममता बनर्जी से सीट लेना झामुमो के लिए आसान नहीं होगा। वैसे यह तय माना जा रहा है कि गठबंधन में सीट नहीं मिली तो झामुमो बिहार और बंगाल में अकेले भी चुनाव लड़ सकता है।