
इस शरीर के प्रति बहुत आशक्ति ना रखें क्योंकि एक न एक दिन हमें इसे छोड़कर जाना ही होगा : अनन्या शर्मा
ओझाडीह में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान सप्ताह में उमड़े श्रद्धालु
डीजे न्यूज, टुंडी, धनबाद : कभी आपने सोचा है कि आप क्या हैं। नहीं सोचा है तो सोचिए, विचार कीजिए। आज आपाधापी के युग में हमारे पास इतना भी समय नहीं है कि कभी हम यह सोच सके विचार कर सके कि हम क्या हैं। उक्त विचार ओझाडीह में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान सप्ताह के अवसर पर बोलते हुए सिवनी मालवा मध्य प्रदेश से पधारी कथा प्रवक्ता अनन्या शर्मा ने कहीं। उन्होंने कहा कि यह शरीर भी हमारा नहीं है। इसे अपना मान बैठे हैं तो गलत है। यह तो एक पंचायती धर्मशाला के समान है जिसमें हम एक किराएदार हैं। इसलिए इस शरीर के प्रति बहुत आशक्ति ना रखें क्योंकि एक न एक दिन हमें इसे छोड़कर जाना ही होगा। हम प्रभु में आस्था रखेंगे तो हमारा जीवन सफल होगा। भगवान के 24 अवतारों की कथा सुनाते हुए कहा कि भगवान कभी जन्म नहीं लेते भगवान अवतार धारण करते हैं। जब-जब पृथ्वी पर अत्याचार बढ़े हैं तब तब प्रभु ने अवतार लिए हैं और इस धरा से पापियों का नाश किए हैं। भगवान ने अभी तक कुल 23 अवतार धारण किए हैं। 24 अवतार कलयुग के अंत के समय जब पृथ्वी पर अन्याय और अत्याचार का बोध वाला बहुत बढ़ जाएगा तब कल्कि के रूप में लेंगे और पृथ्वी को पापियों से मुक्त करेंगे। इसमें प्रभु ने सिर्फ दो अवतार पूर्ण रूप से लिए हैं। बाकी सब अंश अवतार धारण किए हैं। आनंद जी ने नारद जी के पूर्व जन्म की कथा सुनाते हुए कहा कि पूर्व जन्म में नारद की दासी पुत्र थे परंतु ईश्वर की भक्ति से ईश्वर की कृपा प्राप्त कर अगले जन्म में वह ब्रह्मा जी के मान पुत्र के रूप में जन्म लिए। नारद जी ने जब देखा कि पृथ्वी पर प्रत्येक मानव शोक से ग्रसित है तब उन्होंने वेदव्यास जी से कहा आप किसी ऐसे ग्रंथ की रचना कीजिए जिसके पढ़ने और सुनने से व्यक्ति का उद्धार हो सके। उन्हें चतुर श्लोकी श्रीमद् भागवत सुनाई जो कि मात्र चार श्लोक में थी जो कि उन्हें ब्रह्मा जी ने सुनाई थी। कहा कि आप इसका विस्तार कीजिए परंतु इसमें भक्ति रस का समावेश कीजिए क्योंकि कलयुग में भक्ति की प्रधानता हो। तब वेदव्यास जी ने सभी वेदों का सार एकत्रित एक ग्रंथ का निर्माण किया जिसे श्रीमद् भागवत महापुराण कहा जाता है। महाभारत के प्रसंग सुनाते हुए कहा कि जब अश्वत्थामा ने कुंती के पांचों पुत्र का वध कर दिया और उनके शीश काटकर अपने मित्र दुर्योधन के पास ले गए तब पांडवों को पता लगा यह कार्य अश्वत्थामा ने किया है। उन्हें पकड़ कर लाया गया और अपमानित कर छोड़ दिया गया। तब अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर उत्तर के गर्भ में पल रहे परीक्षित जी का अंत करने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। तब भगवान श्री कृष्ण ने उत्तर के गर्भ में जाकर राजा परीक्षित की रक्षा की। तब कुंती ने कहा कि हे कृष्ण, आज तो आपको बताना पड़ेगा कि वास्तविकता में आप हैं कौन। क्या आप ही परमपिता परमेश्वर है। तब श्री कृष्णा ने कहा कि मैं ही परमपिता परमेश्वर हूं। आज जिसको मुझसे जो मांगना है वह मांग ले। तब सभी ने कुछ ना कुछ भगवान से मांगा। उन्होंने कहा आप भी कुछ मांगे। तब कुंती ने कहा कि आप कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे दुख ही दुख दें। तब भगवान ने कहा कि दुख भी कोई मांगने की चीज है। तब माता कुंती ने कहा कि हे कृष्णा, मैं उस सुख का क्या करूंगी जिसमें आपका स्मरण भूल जाओ, वह दुख को तो मैं अपने सर माथे पर रखूंगी जिसमें मुझे हर क्षण तेरी याद आए। उसके पश्चात भीष्म प्रतिज्ञा के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि जब मजबूरी में भीष्म को यह प्रतिज्ञा लेना पड़ी कि आज के दिन एक न एक पांडव को मृत्यु के द्वार पर पहुंचाऊंगा। तब से कृष्णा लीला रचकर भीष्म को द्रोपदी को दिए हुए आशीर्वाद को याद दिलाते हुए कहा की प्रतिज्ञा बड़ी या आशीर्वाद। तब किसी ने कहा कि प्रतिज्ञा। इस अवसर पर मनमोहक झांकियां एवं अनन्या शर्मा द्वारा गाए मधुर भजनों ने श्रद्धालुओं का मन मोहन लिया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।