
बिहार में जयराम की राह पर हैं प्रशांत किशोर
शुरुआत में प्रशांत किशोर राजद और अब जब चुनाव सामने है तो एनडीए के लिए बन रहे चुनौती
पदयात्रा से खुद को स्थापित कर एक विकल्प के रूप में उभरकर सामने आए, समर्थकों का खास वर्ग हो रहा तैयार
देवभूमि झारखंड न्यूज की खास रिपोर्ट
दिलीप सिन्हा, धनबाद : बिहार में विधानसभा चुनाव नवंबर या दिसंबर महीने में होना है। इसे लेकर पूरा बिहार अभी से चुनावी मूड में आने लगा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा, जदयू, रालोजपा, हम आदि पार्टियां एनडीए के घटक दल चुनावी तैयारी में जुट गए हैं। दूसरी ओर पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद, कांग्रेस, भाकपा माले, भाकपा और माकपा आइएनडीआइए के घटक दल भी मैदान में उतर चुके हैं। दोनों गठबंधन के इस दंगल में तेजी से एक पार्टी जो बिल्कुल नई है जन सुराज भी ताल ठोंक रहे हैं। जन सुराज के सुप्रीमो हैं प्रसिद्ध पूर्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर। प्रशांत किशोर ने दो साल पूर्व जब बिहार में शिक्षा और रोजगार के सवाल को लेकर जब पदयात्रा शुरू की थी तो बिहार के स्थापित राजनीतिक पार्टियां उन्हें बहुत हल्के में ले रही थी। ये पार्टियां मान रही थी कि चुनाव प्रबंधन संभालना और खुद राजनीतिक पार्टी बनाकर सफल होना अलग-अलग बात है। प्रशांत किशोर के लिए बिहार की राजनीति में स्थापित होना संभव नहीं है। लेकिन अपने दो साल के पदयात्रा मुहिम से प्रशांत किशोर ने पूरे बिहार में ऐसा माहौल बनाया कि अब वही राजनीतिक पार्टियां उन्हें गंभीरता से ले रही है। प्रशांत किशोर ने बिहार के सभी 243 विधानसभा सीटों से प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर राजनीतिक दिग्गजों की नींद उड़ा दी है। अक्टूबर 2024 में बिहार में हुए उप चुनाव में जन सुराज पार्टी पहली बार लड़ी। चार विधानसभा सीटों में जनसुराज के प्रत्याशी दिए। कोई सफलता नहीं मिली लेकिन दस प्रतिशत वोट लाकर अपनी ताकत का प्रदर्शन जरूर किया। अब दोनों गठबंधन इस बात पर पसीना बहा रहे हैं कि आखिर प्रशांत किशोर चुनाव में नुकसान किसका करेंगे। दोनों गठबंधन प्रशांत किशोर को झारखंड के उभरते हुए युवा राजनीतिज्ञ विधायक टाइगर जयराम महतो से भी जोड़ रहे हैं। जयराम भले ही अपनी पार्टी से अकेले जीते, लेकिन उन्होंने झारखंड में भाजपा और उसकी सहयोगी आजसू का सारा गणित फेल कर दिया। मात्र एक सीट जीतने के बावजूद जयराम अपनी पार्टी को स्थापित करने में सफल रहे। साथ ही इसका फायदा झामुमो गठबंधन को हुआ और यह गठबंधन पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में लौटने में सफल रहा। बिहार के राजनीतिक पंडित यह मानने लगे हैं कि कहीं जयराम की तरह प्रशांत किशोर भी बिहार की राजनीति में भारी उथलपुथल न कर दें। झारखंड की बात करें तो जयराम महतो के उभार को शुरू में झामुमो के लिए नुकसानदेह माना गया था। लेकिन, जैसे-जैसे जयराम आगे बढ़े और खुद को स्थापित किया भाजपा की सहयोगी आजसू की जड़ खोद दी। प्रशांत किशोर की भी यही स्थिति है। प्रशांत किशोर को शुरू में राजद के लिए नुकसानदेह माना जा रहा था। भाजपा मान रही थी कि सत्ता विरोधी वोटों का बिखराव होगा जिसका फायदा एनडीए को होगा। राजद वाले मान रहे थे कि प्रशांत किशोर को पर्दे के पीछे से भाजपा और जदयू का समर्थन है। लेकिन, अब जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है भाजपा का एक बड़ा वोट बैंक प्रशांत किशोर के नजदीक जाता दिख रहा है। साथ ही सभी समुदाय के युवा प्रशांत किशोर को बिहार के भविष्य के रूप में देख रहे हैं। इससे भाजपा और जदयू खेमे में बेचैनी है। अब आरोप लग रहा है कि प्रशांत किशोर को पीछे से राजद मजबूती दे रहा है। बहरहाल, चुनाव है तो आरोप-प्रत्यारोप के दौर चलते रहेंगे, लेकिन इस बात में कोई दो बात नहीं है कि प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति का एक नया चेहर बन गए हैं।