सिंदरी : गौरवशाली अतीत, धुंधला भविष्य

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सिंदरी : गौरवशाली अतीत, धुंधला भविष्य

वरिष्ठ ट्रेड यूनियन नेता, राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर यूनियन के महामंत्री व इंडियन नेशनल माइन वर्कर्स फेडेरेशन, इंटक के वरीय उपाध्यक्ष एके झा के कलम से 

सिंदरी, धनबाद जिले में स्थित झारखंड का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक और ऐतिहासिक स्थल है। यह अपनी समृद्ध औद्योगिक विरासत और सामाजिक-आर्थिक बदलावों के लिए जाना जाता है। “अतीत से वर्तमान तक” सिंदरी की कहानी को समझने के लिए हमें इसके इतिहास, विकास और वर्तमान स्थिति पर नजर डालनी होगी।

अतीत: प्रारंभिक इतिहास और औद्योगिक शुरुआत

सिंदरी का इतिहास मुख्य रूप से 20वीं सदी के मध्य से शुरू होता है, जब भारत स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहा था। यह क्षेत्र मूल रूप से छोटानागपुर पठार के जंगली और ग्रामीण इलाकों का हिस्सा था. धनबाद, जिसे “कोयले की राजधानी” के रूप में जाना जाता है, पहले से ही कोयला खनन के लिए प्रसिद्ध था। इसी क्षेत्र में सिंदरी ने एक नई पहचान बनाई, जब भारत सरकार ने यहाँ एक बड़े औद्योगिक संयंत्र की स्थापना का फैसला किया।

1951 में, सिंदरी फर्टिलाइजर प्लांट (सिंदरी उर्वरक संयंत्र) की स्थापना हुई, जो भारत का पहला सार्वजनिक क्षेत्र का उर्वरक संयंत्र था। इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया था। यह संयंत्र स्वतंत्र भारत की औद्योगिक आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम था, जिसका उद्देश्य देश में खाद की आपूर्ति बढ़ाना और कृषि उत्पादकता को मजबूत करना था। संयंत्र की स्थापना के साथ ही सिंदरी एक नियोजित औद्योगिक नगर के रूप में विकसित होने लगा। यहाँ कर्मचारियों के लिए आवासीय कॉलोनियाँ, स्कूल, अस्पताल और अन्य सुविधाएँ बनाई गईं, जिसने इसे एक संपन्न समुदाय में बदल दिया।

सिंदरी का मध्यकाल : विकास और चुनौतियां

1960 और 1970 के दशक में सिंदरी अपने चरम पर था। उर्वरक संयंत्र देश भर में खाद की आपूर्ति करता था, और यहाँ के निवासियों को एक अच्छा जीवन स्तर प्राप्त था। धनबाद के कोयला खनन उद्योग के साथ-साथ सिंदरी का उर्वरक उद्योग इस क्षेत्र को आर्थिक रूप से मजबूत बनाता था। यहाँ की कॉलोनियाँ और बुनियादी ढांचा उस समय के नियोजित शहरी विकास का एक बेहतरीन उदाहरण थीं।

हालांकि, 1980 के दशक से स्थिति बदलने लगी। तकनीकी पुरातनता, प्रबंधन संबंधी समस्याएँ और आर्थिक उदारीकरण के प्रभाव के कारण सिंदरी उर्वरक संयंत्र की उत्पादकता में कमी आई। 1990 के दशक तक यह संयंत्र घाटे में चलने लगा, और अंततः केंद्र की भाजपा सरकार ने 2002 में इसे बंद कर दिया गया। इस बंदी ने सिंदरी की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने पर गहरा असर डाला। कई परिवार जो इस संयंत्र पर निर्भर थे, रोजगार के लिए अन्य क्षेत्रों की ओर पलायन करने को मजबूर हुए।

वर्तमान : पुनर्जनन की राह पर

संयंत्र के बंद होने के बाद सिंदरी एक लंबे समय तक ठहराव के दौर से गुजरा। हालांकि, हाल के वर्षों में इसे पुनर्जनन की उम्मीद दिखाई दी है। 2018 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंदरी उर्वरक संयंत्र के पुनरुद्धार की आधारशिला रखी। हिंदुस्तान उर्वरक और रसायन लिमिटेड (HURL)के तहत इस संयंत्र को फिर से शुरू करने की योजना बनाई गई, जिसका उद्देश्य न केवल खाद उत्पादन को बढ़ावा देना है, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी पैदा करना है। यह नया संयंत्र आधुनिक तकनीक से लैस है और 2021 में इसका उत्पादन शुरू हो चुका है।

दुखद पहलू : पहले जैसी नही रही सिंदरी 

सिंदरी की स्थापना के 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं किन्तु, वर्तमान में यहाँ के निवासी HURL और FCIL के मध्य उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। दोनों एजेंसियाँ अपनी-अपनी जिम्मेदारियों से न केवल विमुख हैं, अपितु एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी कर रही हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि सिंदरी के रखरखाव का दायित्व किसका है ? सिंदरी के निवासी आखिर किस पर आश्रित रहेंगे? विस्थापन, रोज़गार या अन्य सुविधाओं की बात तो दूर, अब तो मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी सिंदरीवासी संघर्ष कर रहे हैं। प्राकृतिक आपदाओं के समय भी उन्हें भाग्य के भरोसे छोड़ दिया जाता है। हाल ही में हुई तीव्र वर्षा और आंधी में सिंदरी टाउनशिप में वृक्ष टूटकर सड़क पर गिर गए, जिससे आवागमन बाधित हुआ और बिजली के खंभे क्षतिग्रस्त हो गए। परिणामस्वरूप, सिंदरी टाउनशिप पूर्णतः अंधकार में डूब गई। जब सिंदरी के निवासियों ने HURL प्रबंधन से इस कठिन समय में सहायता की याचना की, तो कथित तौर पर HURL के अधिकारियों ने उत्तरदायित्व से पल्ला झाड़ लिया और कहा कि यह HURL कंपनी की ज़िम्मेदारी नहीं है। सामान्यतः, प्राकृतिक आपदा के समय लोग स्वतः स्फूर्त रूप से सहायता के लिए आगे आते हैं, किन्तु HURL कंपनी ने कथित तौर पर ऐसा नहीं किया। सिंदरी टाउनशिप के निवासियों को इस बात का भी दुःख है कि HURL के अधिकारियों तक तो पानी का टैंकर पहुँचा दिया गया, किन्तु अन्य लोगों को ईश्वर भरोसे छोड़ दिया गया। 75 वर्षों के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था। एक सप्ताह बाद भी सिंदरी में बिजली और पानी की आपूर्ति पूरी तरह सामान्य नहीं हो पाई है।

बहरहाल, आज की पीढ़ी के मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि यह कारखाना सिंदरी में ही क्यों स्थापित किया गया? इसका कारण कोयला और पानी की सुलभता थी। सिंदरी में दामोदर नदी का जल उपलब्ध था और झरिया में कोयले का प्रचुर भंडार था। सिंदरी उर्वरक कारखाने का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था। यह उनकी महत्वाकांक्षी परियोजना थी। 2018 में HURL की आधारशिला रखी गयी। इसके बाद हर्ल कंपनी का उत्पादन चालू हुआ। जो भी हो, लेकिन सिंदरी टाउनशिप की सूरत और सेहत आज दोनों बिगड़ गई है। टाउनशिप में रहने वाले लोग अपनी किस्मत पर रोए, एफसीआईएल के इंतजामों पर माथा पीटे या हर्ल कंपनी के नागरिक सुविधाओं की बेरुखी पर प्रतिक्रिया दे। जो भी हो लेकिन सिंदरी का भविष्य अब सवालों के घेरे में है। विस्थापन और रोजगार का संकट तो सुरसा के मुंह की तरह ही है क्योंकि हर्ल अपने वायदों से लगातार मुकर रही है। सीएसआर के तहत सिंदरी का विकास को दिवास्वप्न की तरह है। स्थानीय युवाओं को हर्ल में रोजगार नहीं मिल पा रहा है, फलत: वे पलायन को मजबूर हैं. वहीं टाउनशिप वासी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में विस्थापन के लिए विवश हैं।

ऐसे में सिंदरीवासियों के मन में यही सवाल उठता है कि आखिर उनका भविष्य क्या होगा? क्या सिंदरी अपने सुनहरे अतीत को फिर से हासिल कर पाएगी? क्या हर्ल अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझकर सिंदरी के विकास में योगदान देगी? या फिर सिंदरी यूँ ही उपेक्षा का शिकार होती रहेगी? इन सवालों का जवाब वक़्त के गर्भ में है. लेकिन, सिंदरी के लोगों की उम्मीदें अब भी कायम हैं. वे अपने बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ज़रूरत है कि सरकार और संबंधित एजेंसियां भी अपनी ज़िम्मेदारी समझें और सिंदरी के पुनरुत्थान के लिए ठोस कदम उठाएँ. सिंदरी के लोगों को न्याय मिले, यही उनकी मुख्य मांग है. उन्हें विस्थापन का दंश न सहना पड़े, उन्हें रोजगार मिले और उन्हें बेहतर बुनियादी सुविधाएँ मिलें. सिंदरी का भविष्य इन्हीं बातों पर टिका है।

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