महिला सशक्तिकरण नहीं अब बात हो सशक्त महिला की …

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विश्व महिला दिवस पर विशेष
जब से होश सम्भाला है महिला सशक्तिकरण की बातें सुनती आयी हूँ। सशक्तिकरण एक प्रक्रिया है जिससे गुजर कर हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी सशक्त होती आयी है। बात अगर महिला सशक्तिकरण की करें तो विचार यह आता है की जिस सशक्तिकरण की बातें बचपन से सुनती आयी हूँ क्या वह सशक्तिकरण की प्रक्रिया आज मेरी आधी उम्र गुजर जाने तक पूरी नहीं हो पायी है?? सोच में हमेशा यही आता था की शायद पश्चिमी देशों की महिलाएं सशक्त हैं उन्हें किसी सशक्तिकरण की ज़रूरत नहीं है परंतु जब मैं महिलाओं की राजनीतिक हिस्सेदारी विषय पर एक अध्ययन हेतु अमेरिका गयी तो यह तथ्य ग़लत पाया। अमेरिका में तो महिलाओं को अपने मताधिकार प्राप्त करने के लिए भी वर्षों संघर्ष करना पड़ा था जबकि भारत में संविधान की रचना के वक़्त से ही महिलाओं को पुरुषों के समान मताधिकार प्राप्त था। भारत में महिलाओं की पहचान शक्तिस्वरूपा के रूप में आदिकाल से बनी हुई है। पिता यदि परिवार की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने में लगा रहा है तो वहीं माँ बच्चों को लालन पालन शिक्षा दीक्षा संस्कार के बीजारोपण कर भविष्य के समाज को रचने में अपनी आदर्श भूमिका का निर्वहन करने में लगी रही है। क्या घर की चारदीवारी में रहकर जिन महिलाओं ने समृद्ध समाज के निर्माण में अपनी भूमिका निर्वहन किया है वह कहीं से कमजोर रही होगी? क्या जिस सौ वर्षीय माँ के बेटे आज भारत का प्रधानमंत्री बन विश्व के शक्तिशाली नेताओं की सूची में उच्च स्थान पर अंकित है वह सशक्त नहीं रही हैं?? जिन माँओं के लाल आज सीना चौड़ा किये देश की सीमाओं पर भारत माँ की रक्षा के लिए कटिबद्ध हैं वो माएँ सशक्त नहीं रही हैं?? जिन माँओं के लाल आज आर्थिक जगत में विश्व के पटल पर भारत देश का परचम लहरा रहे हैं वो माँ अपने बच्चों को सफलता के मार्ग पर चलने में मददगार नहीं रहीं? क्या वो सशक्त नहीं रहीं?
आर्थिक उपार्जन, आधुनिक व्यक्तित्व, उच्चतम शिक्षा, स्वतंत्र जीवनशैली, निर्णय क्षमता के साथ ही एक निर्णायक भूमिका में स्थापित होना नारी सशक्तिकरण के विभिन्न पैमाने तो हो सकते हैं परंतु नारी सशक्तिकरण की परिभाषा नहीं हो सकते। हमारा समाज विभिन्न वर्गों में विभाजित है और यह सत्य है की हर महिला अपने वर्ग की सीमाओं के अनुसार ही स्वयं को सशक्त कर सकती है अर्थात् जहाँ एक ओर सिलाई कढ़ाई कर के अपने बच्चों का भरण पोषण करने वाली महिला भी सशक्त है तो वहीं दूसरी ओर फ़ाइटर जेट उड़ाने वाली महिला, आर्थिक जगत में अपना नाम स्थापित करने वाली महिला और देश के विभिन्न मंत्रालयों का नेतृत्व करने वाली महिला भी सशक्त है बस सशक्तिकरण के ध्येय एवम् पैमाने अलग हैं। महिला सशक्तिकरण का अर्थ यह बिल्कुल नहीं की हम पुरुषों से किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा में आगे निकलें या नारी स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छंदता समझ बैठें, परम्परागत पोशाक को अत्याधुनिक पोशाक से बदलकर सशक्त हो जायें या अपने भारतीय संस्कारों की तिलांजलि देकर पाश्चात्य जीवनशैली अपनाकर सशक्त हो जायें।
सशक्त होने का अर्थ विचारों से सशक्त होना, हिम्मत से सशक्त होना, हौसले से सशक्त होना, सशक्त शख़्सियत में अपने किरदार को ढालना। आज ज़रूरत है की सशक्त महिलाएँ अपने से निचले पायदान पर खड़ी महिलाओं को समतुल्य सशक्त बनाने का प्रयास करें… अलग अलग आकृति एवम् कार्यनिर्धारण वाली पाँचों उँगलियाँ जबतक एकजुट होकर एक मुट्ठी के रूप में अपनी समस्त ऊर्जा को एक स्थान एवं दिशा में एकत्रित नहीं कर लेतीं तब तक उनकी क्षमता एवं ताक़त का पता उन्हें भी नहीं चलता। अब समय महिला विकास से बहुत आगे निकल चुका है… आज समय महिला सृजित विकास की बातें करने का है…जो महिला विकास की गाड़ी में पिछली सीट पर बैठकर यात्रा करती थी उसके अब ड्राइविंग सीट पर बैठने का समय आ गया है। अपने अधिकारों की बातों से इतर अब देश एवं समाज की उन्नति,सुरक्षा एवं भविष्य के उन्नत एवं विकसित भारत देश के निर्माण में अपनी क्षमता अनुसार सहभागिता करना सशक्त महिला का दायित्व भी है।

– शालिनी वैश्कियार

लेखिका भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व राष्ट्रीयकार्य समिति सदस्य हैंं।

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