संत रविदास के बताए मार्गों पर चलने की जरूरत

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संत रविदास की जयंती पर विशेष
सामाजिक समरसता के आध्यात्मिक उपासक संत शिरोमणि रविदास जी ने पूरे विश्व को सामाजिक समरसता का संदेश दिया है। उनका जीवन संघर्ष और चुनौतियों की महागाथा है जहां उन्हें जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत पग.पग पर प्रताड़ना, अपमान, तिरस्कार और उपेक्षा है। विभिन्न प्रकार की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक बाधाओं से संघर्ष करते हुए संत रविदास ने मानवीय गरिमा को सही अर्थों में समझा और अस्पृश्य समाज को समझाते हुए कहा कि तुम हिंदू जाति के अभिन्न अंग हो तुम्हें शोषित पीड़ित और दलित जीवन जीने की अपेक्षा मानवाधिकारों के लिए संघर्षरत रहना चाहिए। आताताइयों के आक्रमणों के कारण समाज किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में था। संत रविदास ने धर्म अथवा साधना की कोई शास्त्रीय व्याख्या प्रस्तुत नहीं की। किंतु सामाजिक व्यवस्थाओं को विकृत करने वाले प्रथाओं व परंपराओं की कटु आलोचना की। यद्यपि उनकी आलोचना में किसी प्रकार की वक्रता, उलझन, कर्मकांड और ज्ञान के दिखावे का दंभ नहीं है और ना ही वर्ण तथा जाति भेद का बंधन है।। उन्होंने विनम्रता पूर्वक विरोध कर समतावादी समाज की स्थापना पर बल दिया जहां किसी प्रकार का भेदभाव व सांप्रदायिक विद्वेष की भावना नहीं है। परोपकार की निर्मल भावनाओं के पक्षधर रविदास जी कहते थे कि सामर्थ्य वाले लोगों को अपनी संपदा में दूसरे अभावग्रस्त को भी भागीदार बनाना चाहिए अन्यथा संग्रह किया हुआ अनावश्यक वर्धन विपत्ति का रूप धारण कर लेता है। ऐसा उल्लेख है कि वे प्रतिदिन अपने हाथ से बनाए 1 जोड़ी जूते जरूरतमंदों को बिना किसी भेदभाव के दान किया करते थे लेकिन उनके पिता को यह उदारता पसंद नहीं थी। उन्हें घर से पृथक कर दिया किंतु रविदास जी को इस बात का कोई मलाल नहीं रहा और वे मनोयोग पूर्वक बढ़िया जूता बनाने के काम को ही पूजा मानकर निरंतर कार्य करते रहे। संत रविदास की साधना और अनन्य भक्ति भावना की श्रेष्ठता के कारण तत्कालीन समाज में संत रविदास की एक असाधारण अपूर्व और अत्यंत अविरल उपलब्धि थी जिसके कारण वह लोक नायक के रूप में समाज में श्रद्धा और आस्था के प्रतीक बन गए थे। यही वज है कि आज के दौर में हम सभी को संत रविदास के बताए मार्गों पर चलने की जरूरत है।
संत रविदास की जयंती पर विशेष
सामाजिक समरसता के आध्यात्मिक उपासक संत शिरोमणि रविदास जी ने पूरे विश्व को सामाजिक समरसता का संदेश दिया है। उनका जीवन संघर्ष और चुनौतियों की महागाथा है जहां उन्हें जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत पग.पग पर प्रताड़ना यात्रा अपमान तिरस्कार उपेक्षा और है जिसकी का व्यवहार अनुभूत हुआ विभिन्न प्रकार की सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक योग्यताओं से संघर्ष करते हुए संत रविदास ने मानवीय गरिमा को सही अर्थों में समझा और अस्पृश्य समाज को समझाते हुए कहा कि तुम हिंदू जाति के अभिन्न अंग हो तुम्हें शोषित पीड़ित और दलित जीवन जीने की अपेक्षा मानवाधिकारों के लिए संघर्षरत रहना चाहिए आता तारों के आक्रमणों के कारण समाज किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में था संत रविदास ने धर्म अथवा साधना की कोई शास्त्रीय व्याख्या प्रस्तुत नहीं की किंतु सामाजिक व्यवस्थाओं को विकृत करने वाले प्रथाओं की कटु आलोचना की यद्यपि उनकी आलोचना में किसी प्रकार की वक्रता उलझन कर्मकांड और ज्ञान के दिखावे का दंभ नहीं है और ना ही वर्ण तथा जाति भेद का बंधन है उन्होंने विनम्रता पूर्वक विरोध कर समतावादी समाज की स्थापना पर बल दिया जहां किसी प्रकार का भेदभाव व सांप्रदायिक विद्वेष की भावना नहीं है परोपकार की निर्मल भावनाओं के पक्षधर रविदास जी कहते थे कि सामर्थ्य वाले लोगों को अपनी संपदा में दूसरे अभावग्रस्त को भी भागीदार बनाना चाहिए अन्यथा संग्रह किया हुआ अनावश्यक वर्धन विपत्ति का रूप धारण कर लेता है प्रतिदिन अपने हाथ से बनाए 1 जोड़ी जूते जरूरतमंदों को बिना किसी भेदभाव के दान किया करते थे लेकिन पिता को यह उदारता पसंद नहीं थी उन्हें घर से पृथक कर दिया किंतु रविदास जी को इस बात का कोई मलाल नहीं रहा और मनोयोग पूर्वक बढ़िया जूता बनाने का काम को ही पूजा मानकर निरंतर करते रहे संत रविदास की साधना और अनन्य भक्ति भावना की श्रेष्ठता के कारण तत्कालीन समाज में संत रविदास की एक असाधारण अपूर्व और अत्यंत अविरल उपलब्धि थी जिसके कारण वह लोक नायक के रूप में समाज में श्रद्धा और आस्था के प्रतीक बन गए थे

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