
सिर्फ संथालियों के नहीं संपूर्ण आदिवासियों के नेता बन गए हेमंत
गिरिडीह में झामुमो के स्थापना दिवस पर विशेष
गुरुजी के झामुमो को हेमंत ने पूरे झारखंड में फैलाया, संताल-कोल्हान से दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू तक छाए
डीजे न्यूज, गिरिडीह : झामुमो का स्थापना दिवस चार फरवरी को धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में प्रत्येक साल मनाया जाता है। झामुमो की स्थापना धनबाद में हुई थी। धनबाद के बाद झामुमो का विस्तार गिरिडीह जिले में हुआ था। वहां झामुमो का संगठन आज से 52 साल पूर्व चार मार्च को तैयार हुआ था। इसी कारण, झामुमो मंगलवार चार मार्च को गिरिडीह के झंडा मैदान में अपना स्थापना दिवस मनाएगा। इस मौके पर वहां बड़ी जनसभा होगी जिसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, गांडेय की विधायक कल्पना मुर्मू सोरेन, मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू समेत कई मंत्री, सांसद व विधायक संबोधित करेंगे। गिरिडीह में झामुमो के स्थापना दिवस के मौके पर आज हम आपको झामुमो को मंजिल तक पहुंचाने वाले उसके संस्थापक दिशोम गुरू शिबू सोरेन से लेकर उनके पुत्र व मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो के सफर पर विस्तार से जानकारी देंगे।
शिबू सोरेन ने अपने धर्मपिता बिनोद बिहारी महतो और वामपंथी चिंतक एके राय के साथ मिलकर झारखंड अलग राज्य के लिए लंबा संघर्ष किया। आंदोलन की शुरूआत गिरिडीह एवं धनबाद के क्रमश : टुंडी एवं पीरटांड़ के इलाके से की। शिबू सोरेन ने झारखंड राज्य बना तो झारखंड मुक्ति मोर्चा को भाजपा का विकल्प बनाया। आदिवासियों ने उन्हें दिशोम गुरु की उपाधि दी। झारखंड की राजनीति के केंद्र में अरसे तक शिबू व झामुमो रहे। शिबू ने संपूर्ण आदिवासियों का सर्वमान्य नेता बनने की लंबी लड़ाई लड़ी लड़े, मगर इसमें पूरी सफलता उन्हें नहीं मिली। संथाल आदिवासियों के वे सर्वमान्य नेता तो बन गए, लेकिन संपूर्ण आदिवासियों के सर्वमान्य नेता पूरी तरह से नहीं बन सके। शिबू के इस सपने को झामुमो की कमान संभालने के बाद उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने पूरा किया। हेमंत सोरेन जब सियासी पिच पर उतरे, तो ऐसी धुआंधार पारी खेली कि झारखंड के संपूर्ण आदिवासियों ने उनको अपना मान लिया। आदिवासी इलाकों से भाजपा का सूपड़ा भी लगभग साफ कर दिया।
शिबू के नेतृत्व में झामुमो संताल परगना, उत्तरी छोटानागपुर एवं कोल्हान में शानदार प्रदर्शन करता रहा। बावजूद इससे बाहर पलामू प्रमंडल में विधानसभा चुनाव में खाता नहीं खोल सका। लोकसभा चुनाव में एक बार पलामू सीट झामुमो जरूर जीता। दक्षिणी छोटानागपुर में मुश्किल से एक-दो सीट जीतने में झामुमो कभी-कभी सफल होता था। शिबू सोरेन की उम्र ढली तो पार्टी की कमान पुत्र हेमंत के हाथों में आई। फिर क्या था, सोशल इंजीनियरिंग का ऐसा व्यूह रचा कि झारखंड की राजनीति पर मजबूत पकड़ बना ली। झामुमो को संताल से होते हुए राज्य भर में फैलाया। संथालियों के अलावा मुंडा, उरांव, हो समेत तमाम आदिवासियों ने हेमंत को नेता स्वीकार किया। आदिवासियों ने साथ दिया तो मुस्लिम समुदाय खुलकर झामुमो के साथ खड़ा हुआ। इस विधानसभा चुनाव में भी आदिवासी-मुस्लिम समीकरण ही झामुमो और आइएनडीआइए की जीत का मजबूत आधार बना। पलामू प्रमंडल में पहली बार झामुमो का खाता हेमंत के नेतृत्व में 2019 के चुनाव में मिथिलेश ठाकुर ने गढ़वा और बैजनाथ राम ने लातेहार से जीतकर खोला था। 2024 के चुनाव में मिथिलेश हार गए, मगर अनंत प्रताप देव समेत कई को पलामू प्रमंडल से जीत दिलाने में हेमंत सफल रहे। दक्षिणी छोटानागपुर में भी झामुमो का डंका बजा।
आदिवासी सीट पर भाजपा से केवल पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ही जीत सके। इस विधानसभा चुनाव में राज्य के आदिवासी आरक्षित सीटों से भाजपा का सूपड़ा लगभग साफ हो गया। भाजपा से अकेले पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन आदिवासी सुरक्षित सीट सरायकेला से जीते। झारखंड विधानसभा में भाजपा के सिर्फ दो आदिवासी विधायक चम्पाई एवं बाबूलाल मरांडी हैं। बाबूलाल आदिवासी सीट नहीं बल्कि सामान्य सीट राजधनवार से जीते हैं। राज्य की 28 आदिवासी सुरक्षित सीटों में से झामुमो अकेले 20 सीटों पर जीता। हेमंत ने सात आदिवासी सीटों पर अपने सहयोगी दल कांग्रेस को जिताया। राज्य में झामुमो के 21 आदिवासी विधायक हैं। इनमें से कल्पना मुर्मू सोरेन सामान्य सीट गांडेय से जीतकर विधानसभा पहुंची हैं। खास ये कि हेमंत के जेल में रहते लोकसभा चुनाव हुआ था। सुदिव्य कुमार सोनू के नेतृत्व में झामुमो गिरिडीह जिले में लगातार अपना जनाधार बढ़ा रहा है।
कांग्रेस को किया मजबूत, लाल झंडा को दिया आक्सीजन
आदिवासी सुरक्षित सीटों में कांग्रेस को जीत दिलाने में हेमंत की बड़ी भूमिका रही। 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का झाममो से तालमेल नहीं हुआ था, तब कांग्रेस एक भी आदिवासी आरक्षित सीट जीत नहीं सकी थी। उस चुनाव में झामुमो 13, भाजपा 11, आजसू दो, झापा और गीता कोड़ा एक-एक आदिवासी सुरक्षित सीट से जीत सके थे। 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो से तालमेल हुआ तो कांग्रेस की बल्ले-बल्ले हो गई। आदिवासी सुरक्षित सीटों में से 11 सीटें जीतने वाली भाजपा दो पर सिमट गई, कांग्रेस शून्य से छह पर पहुंच गई। कांग्रेस ने इस चुनाव में मनिका, लोहरदगा, सिमडेगा, कोलेबिरा, खिजरी और जगन्नाथपुर आदिवासी सुरक्षित सीटें जीतीं। गठबंधन का लाभ झामुमो को भी हुआ। राज्य की 28 आदवासी सीटों में से 19 पर अकेले झामुमो का कब्जा हुआ। बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो से सिर्फ बंधु तिर्की मांडर सीट से चुनाव जीत सके। 2024 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन और अधिक सीटें जीतने में सफल रहा। इस बार के चुनाव में कांग्रेस के साथ लाल झंडा को भी झामुमो के कारण मजबूती मिली।
2024 में झामुमो ने इन आदिवासी आरक्षित सीटों पर जमाया कब्जा
दुमका, बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा, शिकारीपाड़ा, महेशपुर, जामा, घाटशिला, पोटका, चाइबासा, मझगांव, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, खरसांवा, तमाड़, तोरपा, खूंटी, सिसई, गुमला, विशुनपुर।
2024 में कांग्रेस ने इन आदिवासी आरक्षित सीटों पर जमाया कब्जा
जगन्नाथपुर, खिजरी, मांडर, सिमडेगा, कोलेबिरा, लोहरदगा, मनिका
पलामू और दक्षिणी छोटानागपुर में भी बजाया डंका
झामुमो के लिए सबसे सफल चुनाव इस बार का विधानसभा चुनाव रहा। झामुमो पहली बार 34 सीटें जीतने में सफल रहा। इसका वोट प्रतिशत भी सबसे अधिक 23.7 रहा। कांग्रेस, राजद और भाकपा माले के साथ गठबंधन कर झामुमो 43 सीटों पर लड़ा और 34 सीटें जीता। झामुमो की सफलता दर करीब 80 प्रतिशत रही। पलामू और दक्षिणी छोटानागपुर जहां झामुमो की पकड़ बहुत मजबूत नहीं मानी जाती थी, वहां भी डंका बजा। झामुमो ने यहां की आठ सीटों पर कब्जा किया।