मई दिवस की प्रसांगिकता ही समाजवादी क्रांति का रास्ता है!

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01 मई 1986 इतिहास में पूंजीपतियों की दासता से मजदुर वर्ग के मुक्ति संग्राम में एकता , संघर्ष और विजय -त्यौहार के रूप में एक नज़ीर पेस करता है! इससे पहले 1847 में मार्क्स-एंगेल्स द्वारा लिखित कम्युनिस्ट घोषणा पत्र निकल चुका था और फ़्रांस की औधोगिक क्रांति से विकसित हो रहे पशिचमी देशों के साथ अमेरिका में भी उधोग ,कल-कारखाने -रेल आदि का तेजी से विकास हुआ! साथ ही मजदूरों का शोषण और अनिश्चित कार्य-दिवस की अवधि के साथ-साथ उचित मजदूरी की लड़ाई में वामपंथी विचार का तेजी से पैठ बनता गया! संग्राम जारी रहा एवं आंदोलन लगातार कुचला जाता रहा , लेकिन शिकागो की हे मार्केट स्कवायर पर हड़ताली मजदूरों पर पूंजीपति समर्थक सेनिको के दमन से वहा काफी खून-खराबा हुआ ! मगर इस संग्राम और एकता से मालिकों को मजदूरों के हित में समझौता करना पड़ा! प्रत्येक दिन काम की अवधि आठ घंटे, सप्ताह में छः दिन काम और एक दिन रविवार की वेतन के साथ छुट्टी का बड़ा और ऐतिहासिक समझौता हुआ!इसी जित ने दुनिया के सभी उधोग जगत में उक़्त सभी सहूलियतों दिलायी! उसके बाद मई-दिवस तो पूरे संसार का धरोहर बन गया !
आधुनिक युग तक पहुचकर पूँजी का स्वरुप कॉरपोरेट के रूप में है! इस स्वरुप की गिरफ्त में इस युग की सभी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनितिक आदि व्यवस्था पूर्णतः आबद्ध एवं बेबश है ! नतीजा यह की मजदुर वर्ग बेरोजगारों , महंगाई एवं बहुत कम मजदूरी के साथ अनिश्चित काम के घंटे आदि का दंश पुनः ऐतिहासिक रूप से झेल रहा है ! लोक उपक्रम एवं सरकारी संस्थाओ का निजीकरण , आउटसोर्सिंग तथा मुक्त बाजार की कॉरपोरेटी लूट से मेहनतकश हलकान है! मई – दिवस आज अपनी उपलब्धियों को खोकर मात्र त्यौहार भर की औपचारिकता रह गई है ! इसके पीछे कारण भी है-वामपंथी कम्युनिस्ट व्यवस्था का क्षरण एवं नैतिकता विहीन स्वार्थपरता रूपी कैंसर ने सभी जगह प्रतिक्रांति कर दी है ! इसका सबसे बड़ा ग्रास मजदुर -वर्ग ही बना है ! जनवाद और प्रजातंत्र के मुखोटे के पीछे शासक-वर्ग एवं कॉरपोरेटी गठबंधन की तानाशाही वाली सरकार साम्प्रदायिकता के उन्माद से दिग्भ्रमित करने और जनता को बहकाने में सफल रही है !
इन सभी व्यक्तिक्रम एवं अराजकता का निवारण मार्क्सवादी साम्यवादी में ही है और उसका रास्ता वैज्ञानिक रूप से ईमानदारी पूर्वक निभाने का उपाय मार्क्स की शिक्षाओ में है ; वरना हम साफ साफ देख रहे है :
“लम्हो ने खता की,और सदियों ने सजा पाई!”

– हरी प्रसाद पप्पू
लेेेखक केंद्रीय कमिटी, मासस के सचिव हैं।

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