
किशोरियों को आज भी मां से मिलती ‘उन दिनों’ की जानकारी
देवभूमि झारखंड न्यूज विशेष
– अभी भी मासिक धर्म के दौरान पूजा नहीं करना, अचार छूने की अनुमति न होना, बाल नहीं धोना, नेल पालिश नहीं लगाने का मिथक मौजूद
टुंडी के लाला टोला की बेटी और ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय लखनऊ के पत्रकरिता विभाग की शोधार्थी नीतिका ने मासिक धर्म पर किया शोध
डीजे न्यूज, धनबाद : धनबाद जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर नक्सल प्रभावित टुंडी प्रखंड के लालाटोला गांव की निवासी नीतिका ने महिलाओं के उन दिनों यानी मासिक धर्म पर शोध किया है। यह जानकारी उपयोगी है। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय लखनऊ उत्तर प्रदेश के पत्रकरिता विभाग की शोधार्थी नीतिका अंबष्ठ ने इस उपेक्षित परंतु अनिवार्य विषय का अध्ययन किया। यह अध्ययन ग्रामीण किशोरियों के बीच मासिक धर्म के बारे में जागरूकता पैदा करने में मदद करता है। इससे जुड़ी भ्रांतियों का निदान भी करता है।
नीतिका ने इस शोध के प्रति प्रेरित करने में अपनी मां संगीता अंबष्ठ और पिता रविंद्र कुमार सिन्हा की महत्वपूर्ण भूमिका बताई।
नीतिका के शोध के अनुसार, उन दिनों को लेकर जागरूक करने में रेडियो की भूमिका लगभग नगण्य है। अधिकतर लड़कियां फिल्म पैडमैन देख चुकी हैं, फिर भी इस पर चर्चा से परहेज करती हैं। 42.5 प्रतिशत लड़कियां ही मासिक धर्म के बारे में जागरूक करने में मीडिया की भूमिका से संतुष्ट हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि 68.25 प्रतिशत किशोरियों को मासिक धर्म की जानकारी देने में मां, बहन और दोस्त की भूमिका अहम है। व्यक्तिगत रूप से मां मासिक धर्म से संबंधित जानकारी का प्राथमिक स्रोत है। कहने का तात्पर्य है कि 68.25 प्रतिशत लड़कियां सूचना के स्रोत के रूप में व्यक्ति विशेष रूप से मां बहन और दोस्त की भूमिका से खुश हैं।
शोध बताता है कि टेलीविजन विज्ञापन ग्रामीण किशोरियों के बीच मासिक धर्म से संबंधित जानकारी का बड़ा स्रोत है। कई मुस्लिम किशोरियों ने तो यहां तक बताया कि उनके घर में टेलीविजन रखना हराम, इसलिए मासिक धर्म की बहुत अधिक जानकारी नहीं मिल पाती है। 50 प्रतिशत से अधिक लड़कियां जागरूकता के अभाव में अभी कपड़े का प्रयोग करती हैं। नीतिका ने अपना यह शोध बिहार के पूर्णिया जिले के 12 प्रखंडों में 11 से 17 वर्ष की किशोरियों के बीच किया। सरकारी स्कूल की शिक्षिकाओं, आंगनबाड़ी सेविकाओं, संबंधित किशोरियों के स्वजन एवं चिकित्सकों को भी शोध की बातचीत में शामिल किया।
पुरुष सदस्यों की उपस्थिति में मासिक धर्म से संबंधित चीज देखने में शर्म
ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय लखनऊ के पत्रकारिता विभाग की शोधार्थी नीतिका अंबष्ठ को शोध पर्यवेक्षक डा.रुचिता सुजय चौधरी के मार्गदर्शन में उनके शोध विषय ग्रामीण किशोरियों के बीच मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मध्यस्थ संचार की समझ पर शोध डिग्री भी अवार्ड की गई है। नीतिका ने बताया, उन्होंने अपनी थीसिस में मासिक धर्म जैसे उपेक्षित अनिवार्य विषय का अध्ययन किया और अपने व्यापक शोध व विश्लेषण के माध्यम से कई अहम तथ्य उजागर किए। यह अध्ययन ग्रामीण किशोर लड़कियों के बीच मासिक धर्म के बारे में जागरूकता पैदा करने में मध्यस्थ संचार की भूमिका को समझने में मदद करता है। यह अध्ययन मासिक धर्म से संबंधित प्रचलित मिथकों को दर्शाता है। मसलन, मासिक धर्म के दौरान पूजा नहीं करना, अचार छूने की अनुमति न होना, बाल नहीं धोना है, नेल पालिश नहीं लगानी है आदि। नीतिका के शोध में यह बात भी सामने आयी है कि मासिक धर्म पर चर्चा करने से मनाही है, खासकर परिवार के पुरुष सदस्यों की उपस्थिति में अधिकांश लड़कियां मासिक धर्म से संबंधित कोई भी चीज टेलीविजन में देखने में शर्म महसूस करती हैं।