झारखंड में सांगठनिक चुनाव को लेकर ऊहापोह में भाजपा

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झारखंड में सांगठनिक चुनाव को लेकर ऊहापोह में भाजपा

प्रदेश अध्यक्ष तो छोड़िए, अब तक मंडल अध्यक्षों की भी भी नहीं हो सकी घोषणा 

ग्रामीण जिला और नए मंडल गठन का मुद्​दा भी पड़ा ठंडा 

देवभूमि झारखंड न्यूज की विशेष रिपोर्ट 

दिलीप सिन्हा, देवभूमि झारखंड न्यूज, धनबाद : झारखंड में सांगठनिक चुनाव को लेकर भाजपा पूरी तरह से ऊहापोह में फंसी हुई है। सांगठनिक चुनाव का टाइम लाइन खत्म हो चुका है, लेकिन भाजपा अब तक प्रदेश अध्यक्ष तो छोड़िए मंडल अध्यक्षों की भी घोषणा नहीं कर सकी है। गिरिडीह और पलामू जिला में ग्रामीण जिला संगठन बनाने एवं 80 से अधिक बूथों वाले मंडलों में दो-दो मंडल बनाने का मुद्​दा भी ठंडा पड़ गया है। सांगठनिक चुनाव को लेकर प्रदेश भर के कार्यकर्ता असमंजस में हैं। स्थिति यह है कि मंडल अध्यक्ष बनने की चाह रखने वाले पार्टी के कार्यकर्ता जिला, जिलाध्यक्ष की दौड़ में शामिल नेता रांची और प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल नेता दिल्ली दरबार में लॉबिंग कर रहे हैं। लंबे समय से चल रहे चुनाव प्रक्रिया के कारण संगठन शिथिल पड़ चुका है। नतीजा है कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ भाजपा न कोई बड़ा आंदोलन खड़ा कर पा रही है और न ही सरकार को घेर पा रही है।

मार्च तक पूरा होना था मंडल अध्यक्षों का चुनाव, एक की भी नहीं हुई घोषणा  

केंद्रीय नेतृत्व ने जो दिशा-निर्देश दिया था उसके तहत राज्य के सभी 516 मंडलों में अध्यक्ष का चयन मार्च तक हो जाना था। अाज नौ मई है, लेकिन एक भी मंडल अध्यक्ष की घोषणा नहीं हो सकी है जबकि सभी मंडलों से चार-चार दावेदारों के नाम प्रदेश नेतृत्व को मिल चुके हैं। मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी 33% महिला आरक्षण लागू होने के बाद भाजपा यह चाहती है कि संगठनात्मक चुनाव में भी महिलाओं को महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा जाए। सूत्र बताते हैं कि इस बार प्रत्येक मंडल से एक महिला कार्यकर्ता का भी नाम मंगवाया गया है। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में कम से कम एक मंडल अध्यक्ष महिला को बनाने का निर्देश नेतृत्व का है। अभी जब मंडल अध्यक्षों का ही चयन नहीं हो सका है तो जिलाध्यक्ष के लिए अभी और इंतजार करना पड़ सकता है। जानकार बताते हैं कि सांसद और विधायक अपने-अपने क्षेत्र में अपने पसंद का मंडल अध्यक्ष चाहते हैं। वहीं पार्टी के पुराने नेता चाहते हैं कि मंडल अध्यक्ष पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता को ही बनाया जाए। इसके साथ ही 50 वर्ष से कम उम्र के कार्यकर्ता को ही मंडल अध्यक्ष बनाना है। इन तमाम कारणों से चयन में विलंब हो रहा है।

गिरिडीह में ग्रामीण जिला और नए मंडल बनाने का मुद्​दा पड़ा ठंडा 

सांगठनिक दृष्टि से गिरिडीह राज्य का सबसे बड़ा जिला है। दूसरा बड़ा जिला पलामू है। गिरिडीह जिले में 34 और पलामू में 30 मंडल है। रांची, जमशेदपुर और धनबाद की तरह गिरिडीह में भी ग्रामीण जिला बनाने का निर्णय पार्टी ले चुकी थी। यह निर्णय फिलहाल ठंडा पड़ गया है। इसी तरह वैसे मंडल जहां 80 से अधिक बूथ हैं, वहां दो मंडल बनाने पर सहमति बनी थी। यह भी ठंडा पड़ गया है।

जिला कमेटी के गठन में विलंब और मंडल अध्यक्षों के बार-बार बदलने से संगठन पड़ा सुस्त 

भाजपा ने अगस्त 2023 में बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया लेकिन प्रदेश कमेटी बनाने में काफी विलंब हो गई। इसके बाद जिलाध्यक्षों की तो घोषणा कर दी गई लेकिन, जिला कमेटी नहीं बन सकी। इससे प्रदेश व जिला कमेटी के पदाधिकारी असमंजस में रहे कि वह नई कमेटी में जगह पा सकेंगे या नहीं। लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा की प्रदेश व जिलों में टीम बनी। इसके बाद विधानसभा चुनाव के तीन महीने पहले मंडल अध्यक्षों को बदल दिया गया। अब एक साल भी नहीं हुए और फिर से मंडल अध्यक्षों का चयन हो रहा है। भाजपा के जानकार बताते हैं कि इससे संगठन के अंदर ऊहापोह की स्थिति है।

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