
आखिर बाबूलाल की पिच पर क्यों बल्लेबाजी करना चाहते रघुवर-मुंडा
उत्तरी छोटानागपुर की गढ़ में भाजपा को और मजबूत करना या प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी है लक्ष्य
देवभूमि झारखंड न्यूज की विशेष रिपोर्ट
दिलीप सिन्हा, धनबाद : राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी का गृह जिला उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल का गिरिडीह है और विधानसभा क्षेत्र गिरिडीह जिले का राजधनवार। बाबूलाल का यह राजनीतिक पिच है। इस पिच पर लंबी पारी खेलने का बाबूलाल के पास अनुभव है। बाबूलाल के इस पिच पर आजकल ओडिशा के राज्यपाल की कुर्सी छोड़कर भाजपा में फिर से सक्रिय हुए पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास एवं एक और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा बल्लेबाजी करने की कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक गलियारे में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर रघुवर दास और अर्जुन मुंडा क्यों बाबूलाल की पिच पर बल्लेबाजी करना चाहते हैं। इस संबंध में कुछ का कहना है कि दोनों का लक्ष्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी है जिस पर बहुत जल्द केंद्रीय नेतृत्व मनोनयन करने वाला है। वहीं राजनीति के कुछ जानकार यह कहते हैं कि उत्तरी छोटानागपुर भाजपा का गढ़ रहा है। संकट की इस घड़ी में भी इस बार विधानसभा चुनाव में उत्तरी छोटानागपुर ने ही राज्य में भाजपा की लाज बचाई है। बहरहाल राज्य के दो दिग्गज भाजपा नेताओं की गिरिडीह जिले में सक्रियता ने भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश जरूर भर दिया है। राजधनवार विधानसभा क्षेत्र के घोड़थंबा में आक्रामक पारी से रघुवर ने किया था आगाज
बाबूलाल के राजधनवार विधानसभा क्षेत्र के घोड़थंबा में होली के दौरान दो समुदायों के बीच झड़प हुई थी। इस घटना के बाद सबसे पहले रघुवर दास घोड़थंबा पहुंचे थे। यहां पहुंचते ही अपने चिरपरिचित आक्रामक तेवर के साथ उन्होंने हिंदुओं के समर्थन में मोर्चा खोल दिया। अधिकारियों को भी फटकार लगाई। खुलेआम कहा कि-समाज में साैहार्द बनाने का ठेका हिंदुओं ने नहीं ले रखा है। प्रशासन और सरकार पर तुष्टीकरण का खुलकर आरोप लगाया। उनके आक्रामक तेवर को भाजपा के कार्यकर्ताओं ने काफी पसंद किया। जगह-जगह कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया।
रघुवर का दौरा खत्म होने के दूसरे दिन ही बाबूलाल घोड़थंबा पहुंचे थे और रघुवर की आक्रामक बल्लेबाजी का जारी रखा था। इस घटना के बाद अभी कुछ दिन पूर्व रघुवर ने फिर से गिरिडीह का दौरा किया। भाजपा के दो पुराने व समर्पित नेताओं के दिवंगत होने पर उनके परिवार से मिलकर सांत्वना देने पहुंचे थे। भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष बाबुल प्रसाद गुप्ता का पिछले महीने निधन हुआ था। रघुवर गिरिडीह के बरवाडीह स्थित उनके आवास पर गए और परिवार के लोगों से मिले। इसके अलावा वह पार्टी के पुराने नेता अशोक गुप्ता के घर बिरनी गए और अशोक गुप्ता को श्रद्धांजलि दी। इसके अलावा वह अपने एक निजी कर्मचारी दिगंबर प्रसाद सिंह के घर गिरी बरवाडीह राजधनवार गए। वहां उन्होंने दिगंबर प्रसाद सिंह के पिता के निधन पर श्रद्धांजलि दी। राजधनवार के साहू धर्मशाला में वह कार्यकर्ताओं एवं आम लोगों से मिले। एक तरह से अघोषित रूप से उन्होंने वैश्य एकजुटता का संदेश दिया।
अचानक सक्रिय हुए अर्जुन मुंडा, अलर्ट हुए प्रतिद्वंद्वी
लोकसभा चुनाव हारने के बाद से पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भाजपा की राजनीति में शांत पड़े थे। इधर, अर्जुन मुंडा अचानक राजनीति में रेस हो गए हैं। हालांकि वह विवाह समारोहों में शिरकत करने के नाम पर रेस हुए हैं। रेस भी ऐसे हुए कि मात्र दो दिनों में उन्होंने गिरिडीह से गढ़वा तक नाप दिया। अर्जुन मुंडा भी सक्रिय होते ही रघुवर की तरह बाबूलाल की पिच पर बल्लेबाजी करने सीधे गिरिडीह पहुंच गए। गिरिडीह से राज्य की हेमंत सरकार पर निशाना साधा। गिरिडीह के अलावा बोकारो, डालटनगंज, गढ़वा तक वह कार्यकर्ताओं को साध गए। इधर, उनके प्रतिद्वंद्वी अलर्ट हो गए हैं। मुंडा की इस सक्रियता को भी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से जोड़कर कार्यकर्ता देख रहे हैं।
झारखंड एवं भाजपा की राजनीति में उत्तरी छोटानागपुर का महत्व
झारखंड एवं भाजपा की राजनीति में उत्तरी छोटानागपुर का विशेष महत्व है। सबसे अधिक 25 विधानसभा सीट इसी प्रमंडल में है। इसके अलावा संथालपरगना प्रमंडल में 18, दक्षिणी छोटानागपुर में 15, कोल्हान में 14 एवं पलामू प्रमंडल में नौ विधानसभा सीटें हैं। छोटानागपुर प्रमंडल भाजपा का गढ़ रहा है। इस बार भी भाजपा को सर्वाधिक 12 सीटें उत्तरी छोटानागपुर में
मिली है। साथ ही यहां से भाजपा के दो सहयोगी दलों आजसू और लोजपा को एक-एक सीटें मिली है। इस तरह से देखें तो 25 में 14 सीटें भाजपा गठबंधन जीतने में सफल रहा है जबकि प्रचंड लहर के बावजूद झामुमो गठबंधन को यहां मात्र 10 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। एक सीट पर जेएलकेएम के प्रमुख जयराम महतो जीते हैं। यहां की सभी पांच लोकसभा सीटों पर 2014 से भाजपा एवं उसकी सहयोगी आजसू का कब्जा रहा है। लोकसभा चुनाव में झामुमो गठबंधन इस गढ़ को भेद नहीं सका है।
झारखंड की राजनीति के जानकार मानते हैं कि रघुवर दास और अर्जुन मुंडा के इस क्षेत्र में रेस होने के पीछे एक बात यह भी है कि दोनों इसका क्रेडिट अकेले बाबूलाल मरांडी को लेने देने के पक्ष में नहीं हैं।