इनामी नक्सली नुनुचंद और श्याम मांझी पर खुखरा कांड में चलेगा केस

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डीजे न्यूज, गिरिडीह : संगठन से बगावत कर पुलिस के समक्ष सरेंडर करने वाले पांच लाख रुपए के इनामी नक्सली नुनुचंद महतो और पुलिस के हत्थे चढ़े नक्सली श्याम मांझी पर खुखरा थाना क्षेत्र में हुए वारदात में केस चलाने की तैयारी की गई है।खुखरा पुलिस ने साल 2017 में हुए मामले में पुलिस ने नामजद आरोपित बनाया है।पुलिस ने दोनों को इस मामले उपस्थापन कराने के लिए न्यायालय में आवेदन दिया है।न्यायालय के आदेश पर दोनों को 29 अगस्त को खुखरा कांड में प्रोडक्शन कराएगी।साल 2021 तक नुनुचंद संगठन में काफी सक्रिय था।25 लाख के इनामी अजय महतो उर्फ टाइगर का काफी करीबी बताया जाता था।संगठन में उसकी धाक ऐसी थी कि पारसनाथ क्षेत्र में किसी भी गांव मे उसकी एक फरमान को कानून मानकर लोग चलते थे।उसके नाम से क्षेत्र में काफी दहशत था।
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हत्या के बाद नक्सली बना था नुनुचंद :
पुलिस के समक्ष सरेंडर करने वाला पांच लाख रुपये का इनामी एवं भाकपा माओवादी के पूर्व सब जोनल सदस्य नुनूचंद महतो उर्फ गांधी माओवाद की विचारधारा से प्रभावित होकर नक्सली नहीं बना था। अपने चचेरे भतीजे की हत्या का आरोप लगने के बाद गांव वालों के डर से घर से भाग गया था। करीब दो साल बाद नक्सली दस्ते में शामिल होकर ही गांव लौटा था। हत्यारोपित उसके चचेरे भाई झगरू महतो की आज तक घर वापसी नहीं हुई है। नुनूचंद एवं उसके चचेरे भाई दोनों का ससुराल पीरटांड़ की सीमा से सटे टुंडी के बंगारो में है। यह एक संयोग ही है कि कभी गांव वालों के डर से माओवादी बनने वाला नुनूचंद आज माओवादियों के डर से सरेंडर कर खुद को पुलिस संरक्षण में सुरक्षित महसूस कर रहा है। एक संयोग यह भी हे कि झगरू के घर पर ग्रामीणों ने और नुनूचंद के घर पर सरकार ने ताला जड़़ा है। ग्रामीणों से बातचीत में यह बात सामने आई है।नुनूचंद एवं उसका परिवार अंध विश्वास पर भरोसा करता है। अंध विश्वास के ही कारण डायन को लेकर मासूम बच्चे की हत्या की गई थी। पीरटांड़ के भेलवाडीह गांव के निवासी पुनीत महतो का आठ साल का मासूम बेटा घर से गायब था। खोजबीन करने के बाद पता चला कि आखिरी बार उसे पुनीत के चचेरे भाई झबरू महतो के साथ देखा गया था। गांव में पंचायत हुई। ग्रामीणों ने सख्ती की तो झबरू महतो टूट गया। स्वीकार किया कि जामुन खिलाने के बहाने नदी की ओर ले गया था। इसके बाद वहां हत्या कर दी। ग्रामीणों को शक था कि इस हत्या में पुनीत के दूसरे चचेरे भाई नुनूचंद महतो का भी हाथ है। इसके बाद ग्रामीण उग्र हो गए और झबरू के साथ-साथ नुनूचंद पर भी हमला कर दिया। नुनूचंद किसी तरह जान बचाकर भागने में सफल रहा था।
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सब जोनल कमेटी सदस्य बनने के बाद पांच लाख का इनाम :
नुनुचंद के चचेरे भाई झबरू को पंचायत में शारीरिक दंड के साथ-साथ आर्थिक दंड भी दिया गया। इसके बाद झबरू को गांव छोड़ना पड़ा। उसके घर पर ताला जड़ दिया गया। आज भी उसके घर में ताला जड़ा हुआ है। यह मामला वर्ष 2008 का है। वर्ष 2010 में माओवादी दस्ता में शामिल होने के बाद नुनूचंद आराम से घर आने-जाने लगा। फिर किसकी मजाल थी जो उसे निशाना बनाता। दस्ता में शामिल होते ही नुनूचंद सुर्खियों में आ गया। कई हिंसक घटनाओं को अंजाम देने के बाद उसे पारसनाथ सब जोनल कमेटी का सदस्य बना दिया गया। सरकार ने भी उसकी गिरफ्तारी के लिए पांच लाख रुपये का इनाम घोषित कर दिया।श्याम मांझी को भी नुनुचंद के साथ कई नक्सली घटनाओं में शामिल रहने का आरोप है।

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