दूर जाती कहां है बाबुल से, पास रहती है बेटी

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-कवि सम्मेलन में कभी जमकर लगे ठहाके तो कभी आंख से छलके आंसू
डीजे न्यूज, धनबाद : देश के ख्याति प्राप्त कवि डॉ कलीम कैसर ने कहा है कि इसी बात पर अड़ी बेटी मैं नहीं गिरी पड़ी बेटी। बाप भी, मां भाई भी, घर में होती है बड़ी बेटी। दूर जाती कहां है बाबुल से, पास रहती है हर घड़ी बेटी, मां को अच्छा नहीं लगा उस दिन बाप की ओर से लड़ी बेटी, बाप के वास्ते गुलाब है ये बेटी, ईद के दिन सेवई जैसी, है दिवाली में फुलझड़ी बेटी। डा कलीम कैसर सोमवार की रात टाउन हाल में दैनिक जागरण के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में कविता सुना रहे थे।
का। देर रात तके कवियों ने श्रोताओं को साहित्य की हर धार में बहाया। यह शाम कभी न भूलने वाली शाम श्रोताओं के लिए बन गई।
डा.कैसर ने बेटियों के बारे में जब बात शुरू की तो पूरा हाल भावविभोर हो गया। डा. कैसर ने बताया कि ईश्वर ने उन्हें बेटी नहीं दिया है। यह सब सुनाते हुए खुद डाक्टर कैसर भावुक हो गए। इसके अलावा उन्होंने भारत जैसा देश नहीं, युगों युगों तक गूंजे नारा। हर भारतीय भारत में ही दुबारा जन्म लेना चाहता है। यहां कविताओं की ऐसी रसधारा बही कि देर रात तक श्रोता इसमें गोता लगाते रहे। किसी का घड़ी की सुई की ओर ध्यान तक नहीं गया। बलराम श्रीवास्तव ने अपनी कविताओं में जिंदगी का दर्शन का अनुभव कराया तो लखनवी युवा कवि प्रख्यात मिश्र ने अपनी ओज की कविताओं से लोगों को वाह वाह करने पर मजबूर कर दिया। कवियों व शायरों की ये महफिल प्रवीण शुक्ल और कलीम कैसर की रचनाओं से पूरी तरह परवान चढ़ गई।
इसके पूर्व
कवि सम्मेलन की शुरुआत दिल्ली की पद्मिनी शर्मा की सरस्वती वंदे शारदे जगमग कर दे, तू दयानी, तू ही भवानी, तू ही सुखदायिनी मां शारदे से हुई। इसके पहले मुख्य अतिथि बीसीसीएल के सीएमडी समीरन दत्ता के साथ कवियों ने माता सरस्वती, दैनिक जागरण के संस्थापक पूर्णचंद्र गुप्त, पूर्व प्रधान संपादक नरेंद्र मोहन व समूह के चेयरमैन रहे योगेंद्र मोहन गुप्ता के चित्र पर श्रद्धासुमन व दीप प्रज्जवलित कर किया। कवि सम्मेलन शुरू होने के बाद एसएसपी संजीव कुमार ने कार्यक्रम का अंत तक लुत्फ उठाया।

कौमी सौहार्द, एकता व देश प्रेम में डूबी कविताओं को सुनकर श्रोताओं ने खूब तालियां बजाई। वहीं कवियों की हास्य व्यंग ने भी वाहवाही लूटी। प्रख्यात मिश्र ने राम वही जो केवट का अभिमान बढानेवाले हैं, राम वही जो शबरी का सम्मान बढ़ाने वाले हैं, से राजनीति में चल रही जाति धर्म पर कटाक्ष किया। वहीं भारत के स्वर्ग को संवारा गया खून, केशर की क्यारियों को लुटने नहीं दिया का पाठ कर उपस्थिति लोगों में राष्ट्रप्रेम का ज्वार उठाया। वहीं पद्मिनी शर्मा ने लकीरें खींच देता है मेरे चेहरे का मनमानी, मेरे काजल का दुश्मन है मेरे आंख का पानी से रूमानियत से शाम को और मखमली बनाने में सफल रही। इसे और आगे बढ़ाते हुए उन्होंने सांस आती, रही सांस जाती रही, मैं तूझे गुनगुनाती रही का पाठ कर एक ही साथ श्रोताओं को श्रृंगार और विरह की वेदना का अहसास कराया। बलराम श्रीवास्तव ने अपनी गीतों में हिंदी साहित्य की प्रमुख पुस्तकों को पिरो कर दर्शकों को हिंदी की समृद्ध रचना का अहसास कराया। प्रवीण शुक्ल ने केजरी ने कहा वोटरों से वाईफाई फ्री का दिलवाउंगा, जो तुम कह दो तो सूरज को उतर दिशा में छिपवाउंगा से राजनीति में चल रही मुफ्तखोरी के वादों को दर्शाया। जिसे दर्शकों को खूब वाहवाही मिली। वहीं उन्होंने अपने एक अन्य कविता से गठबंधन की राजनीति पर भी करारा व्यंग किया।

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