78 वर्षों से न्याय की राह देख रहे जामताड़ा के विस्थापितों का फूटा दर्द

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78 वर्षों से न्याय की राह देख रहे जामताड़ा के विस्थापितों का फूटा दर्द

 डीवीसी स्थापना दिवस पर धरना देकर जताया विरोध

हमारा बलिदान अब और नहीं होगा अनसुना, जामताड़ा के 11 पंचायतों से विस्थापित ग्रामीणों की हुंकार

डीजे न्यूज, जामताड़ा : जहां एक ओर मैथन स्थित दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) ने अपने 78वें स्थापना दिवस को धूमधाम से मनाया, वहीं दूसरी ओर इसी दिन को जामताड़ा विधानसभा क्षेत्र के 11 पंचायतों से विस्थापित हुए ग्रामीणों ने ‘बलिदान दिवस’ के रूप में मनाया। डीवीसी गेट के समक्ष सैकड़ों की संख्या में जुटे ग्रामीणों ने धरना-प्रदर्शन कर अपनी पीड़ा, उपेक्षा और आक्रोश को बुलंद आवाज़ में सामने रखा।

डीवीसी विस्थापित संघर्ष समिति के बैनर तले आयोजित इस आंदोलन में महिलाएं, बुज़ुर्ग, युवा, छात्र-छात्राएं सभी एकजुट दिखे। समिति के संयोजक अकबर अंसारी ने कहा, “हमारे पूर्वजों ने देश के विकास के लिए अपनी उपजाऊ जमीन डीवीसी को दी, लेकिन बदले में हमें केवल धोखा और आश्वासन मिला। 78 साल बीत गए, लेकिन न नौकरी मिली, न मुआवजा, और न ही शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं। अब हम चुप नहीं बैठेंगे।”

विस्थापितों की प्रमुख मांगें:

तत्काल मुआवज़े का भुगतान

सभी पात्र परिवारों को नौकरी

शिक्षा एवं स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना

स्थायी पुनर्वास की व्यवस्था

डीवीसी प्रबंधन से सीधी वार्ता

धरने में मौजूद लोगों ने कहा कि उनकी हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन पर डीवीसी की स्थापना हुई, लेकिन जिन लोगों ने बलिदान दिया, उन्हें आज तक न्याय नहीं मिला। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या विकास की कीमत पर उनके अधिकार कुचले जाते रहेंगे?

भावुक ग्रामीणों ने कहा:

“हमारे पूर्वजों की कुर्बानी को भुला दिया गया है। अब हमारी अगली पीढ़ी को भी अपने हक के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। यह केवल जमीन की लड़ाई नहीं, यह हमारे अस्तित्व, सम्मान और अधिकार की लड़ाई है।”

धरनास्थल पर लगे बैनर-पोस्टरों पर “हमारे बलिदान को सम्मान दो”, “वादे पूरे करो”, “विकास चाहिए, लेकिन न्याय के साथ” जैसे नारे गूंजते रहे।

सवाल जो अब जवाब मांग रहे हैं:

क्या 78 वर्षों बाद भी विस्थापितों को न्याय नहीं मिलेगा?

क्या सरकार और डीवीसी प्रबंधन इन पीड़ित परिवारों की आवाज़ सुनेंगे?

क्या विकास की बुनियाद पर कुर्बान हुए लोगों की पहचान यूं ही मिटा दी जाएगी?

यह विरोध केवल एक आंदोलन नहीं, बल्कि ऐतिहासिक अन्याय के खिलाफ जन-चेतना का प्रतीक बन चुका है। अब समय है कि सरकार और डीवीसी प्रबंधन संवेदनशीलता दिखाते हुए संवाद स्थापित करें और एक स्थायी समाधान की दिशा में ठोस पहल करें। क्योंकि विकास तभी पूर्ण माना जाएगा, जब उसकी नींव में शामिल लोगों को भी न्याय और सम्मान मिले।

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