

त्याग, समर्पण व राष्ट्र साधना के 100 वर्ष: पंकज, सह विभाग कार्यवाह धनबाद विभाग (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ )
डीजे न्यूज, धनबाद: विजयादशमी (2 अक्तूबर 2025) आज के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर लिया। संघ की स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने विक्रमी संवत् 1982 की विजयादशमी को नागपुर (महाराष्ट्र) में की थी। डॉ. हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे। स्वाधीनता आन्दोलन के सभी प्रयासों में वे सक्रिय थे। कोलकाता में मेडिकल की पढ़ाई के समय अनुशीलन समिति के सदस्य के रूप में सक्रिय थे। 1921 में अंग्रेज़ सरकार ने राजद्रोह का मुक़दमा चलाया और एक वर्ष के कारावास की सजा हुई। 1930 में जंगल सत्याग्रह करके जेल गए, जिसमें उन्हें 9 महीने का कारावास हुआ।
लक्ष्य
डॉ. हेडगेवार ने संघ स्थापना का लक्ष्य सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित कर हिन्दुत्व के अधिष्ठान पर भारत को समर्थ और परमवैभवशाली राष्ट्र बनाना रखा। इस महत्वपूर्ण कार्य हेतु वैसे ही गुणवान, अनुशासित, देशभक्ति से ओत-प्रोत, चरित्रवान एवं समर्पित कार्यकर्ता आवश्यक थे। ऐसे कार्यकर्ता निर्माण करने के लिए उन्होंने एक सरल, अनोखी किन्तु अत्यंत परिणामकारक दैनन्दिन ‘शाखा’ की कार्यपद्धति संघ में विकसित की। संघ ने इस कार्यपद्धति से लाखों योग्य कार्यकर्ता तैयार किए जो इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए गत 100 वर्षों से समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं।
कार्य विस्तार
इस यात्रा में संघ उपहास, विरोध के मार्ग पार कर स्वीकृति एवं समर्थन की प्राप्ति की स्थिति में पहुँच गया है। संघ अपने श्रेष्ठ अधिष्ठान, उत्तम कार्यपद्धति और स्वयंसेवकों के नि:स्वार्थ देशभक्ति से भरे, समरसतायुक्त आचरण के कारण समाज का विश्वास जीतने में सफल हुआ है। आज संघ कार्य सर्वदूर, सभी क्षेत्रों में दिखाई देता है और प्रभावी भी है। आज सम्पूर्ण भारत में 98 प्रतिशत जिलों और 92 प्रतिशत खण्डों (तालुका) में संघ की शाखाएं चल रही हैं। देशभर में 51740 स्थानों पर 83,129 दैनिक शाखाएं तथा अन्य 26460 स्थानों पर 32147 साप्ताहिक मिलन चल रहे हैं, जो लगातार बढ़ रहे हैं। इनमें 59 प्रतिशत शाखाएं युवाओं (छात्रों) की हैं।
समाज परिवर्तन की दिशा में अग्रसर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये पहले चरण में संगठन खड़ा करने पर ही ध्यान केंद्रित किया। समाज में यह विश्वास निर्माण किया कि हिन्दू समाज संगठित हो सकता है, एक दिशा में कदम से कदम मिलाकर एकसाथ चल सकता है। एक स्वर में भारत माता की जय-जयकार कर सकता है। संघ को इसमें सफलता भी मिली।
1940 के नागपुर वर्ग में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए देश के हर राज्य से स्वयंसेवक उपस्थित हुए थे। डॉ. हेडगेवार ने वर्ग में आए स्वयंसेवकों को अपने अंतिम भाषण में संबोधित करते हुए कहा था, “आज मेरे सामने मैं हिन्दू राष्ट्र की छोटी-सी प्रतिमा देख रहा हूँ।”
स्वाधीनता के पश्चात् 1948 में राजनीतिक कारणों से तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संघ पर प्रतिबन्ध लगाकर समाप्त करने का दुस्साहस किया, जिसे स्वयंसेवकों ने लोकतांत्रिक पद्धति से सत्याग्रह करके सरकार को झुकने के लिये मजबूर किया और सरकार को संघ से प्रतिबन्ध हटाना पड़ा।
भारत के स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा ‘स्व’ के आधार पर थी, उसी ‘स्व’ के आधार पर समाज जीवन का प्रत्येक क्षेत्र खड़ा हो, यह आवश्यक था। इस हेतु संघ की प्रेरणा से स्वयंसेवकों ने दूसरे चरण में शिक्षा, विद्यार्थी, मजदूर, राजनीति, किसान, वनवासी, कला आदि क्षेत्रों में विविध संगठनों के माध्यम से कार्य प्रारम्भ किया। आज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विद्या भारती, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती, संस्कार भारती, लघु उद्योग भारती, स्वदेशी जागरण मंच जैसे 32 से अधिक संगठन समाज जीवन में सक्रिय हैं और अपने-अपने क्षेत्र में प्रभावी भी हैं। ये सभी संगठन स्वायत्त, स्वतन्त्र और स्वावलंबी हैं।
सेवा कार्य
स्वयंसेवक अपनी योग्यता, क्षमता के अनुसार सामाजिक समस्याओं व चुनौतियों के समाधान करने के लिए हमेशा सक्रिय रहते हैं। देशभक्ति और सेवाभाव से ओत-प्रोत स्वयंसेवक समाज के दुःख देखते ही दौड़ पड़ते हैं, तभी आज किसी भी प्राकृतिक अथवा अन्य आपदाओं के समय वहाँ तुरन्त पहुँचते हैं और समाज की सेवा में जुट जाते हैं। केवल आपदा के समय ही नहीं, नियमित रूप से समाज में दिखने वाले अभाव, पीड़ा, उपेक्षा को दूर करने के लिए सर्वत्र प्रयास करते हैं। इसलिए संघ ने अपने तीसरे चरण में 1988-89 में संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार की जन्मशताब्दी में सेवा कार्यों को अधिक गति और व्यवस्थित रूप देने का निर्णय लिया। 1990 में विधिवत सेवा विभाग आरंभ हुआ। आज संघ स्वयंसेवक अभावग्रस्त क्षेत्र व लोगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार और स्वावलंबन के विषयों पर ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में 1,29,000 सेवा कार्य चला रहे हैं। समाज परिवर्तन के इन प्रयासों में स्वयंसेवकों को समाज का भरपूर सहयोग और समर्थन मिल रहा है।
इसके अतिरिक्त स्वयंसेवक प्रशासन अथवा सरकार पर निर्भर न रहते हुए अपने ग्राम का सर्वांगीण विकास सभी ग्रामवासी मिलकर करें, इस उद्देश्य से ‘ग्राम-विकास’ का कार्य भी कर रहे हैं। भारतीय नस्ल की गायों का संरक्षण, संवर्धन एवं नस्ल सुधार करते हुए जैविक खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षण, प्रबोधन एवं प्रोत्साहन देने की दृष्टि से ‘गौ संरक्षण एवं संवर्धन’ का कार्य भी करते हैं।
पंच परिवर्तन
स्वयंसेवक अपने परिवार में संघ जीवन शैली को अपनाते हुए समाजानुकूल परिवर्तन करने का निरन्तर प्रयास करते हैं। साथ ही व्यापक समाज परिवर्तन के लिए विभिन्न प्रकार के उपक्रम नियमित रूप से करते रहते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शताब्दी वर्ष के पश्चात समाज परिवर्तन के अगले चरण में प्रवेश कर रहा है। और यह समाज जागरण का एक बड़ा और व्यापक अभियान होगा। इस चरण में स्वयंसेवक समाज की सज्जन शक्ति के साथ मिलकर कार्य करने की दिशा में अग्रसर होंगे। इस हेतु समाज में जागरूकता निर्माण करने के लिए और व्यक्तिगत, पारिवारिक जीवन में व्यवहार में लाने के लिए पाँच विषयों का आग्रह है। इसे पंच परिवर्तन कहा गया।
ये पाँच विषय हैं सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन, कुटुम्ब प्रबोधन, स्व आधारित जीवन और नागरिक कर्तव्यबोध। ये विषय समाज की एकता, अखण्डता और मानवता की भलाई के लिए आज की परिस्थितियों में आवश्यक हैं।
गत सौ वर्षों से यह महायज्ञ अविरत रूप से चल रहा है। सम्पूर्ण समाज संगठन के द्वारा देश के सामने आने वाली सभी समस्याओं और चुनौतियों का समाधान कर, समाज में स्थायी परिवर्तन लाने हेतु समाज की व्यवस्थाओं का युगानुकूल निर्माण करना, यही संघ कार्य का उद्देश्य है। किन्तु अपना देश बहुत विशाल है, और कोई एक संगठन इसमें स्थायी परिवर्तन नहीं ला सकता है। अमृतकाल का यह समय अपनी पवित्र मातृभूमि को पुनः विश्वगुरु सिंहासन पर आरूढ़ करने के लिए सभी मतभेद भुलाकर, एकसाथ आकर, पुरुषार्थ करने का समय है।
