यात्रा वृतांत : यात्रा अपनी महिमा के लिए प्रसिद्ध पथरोल शक्तिपीठ की
वासंतिक नवरात्र पर विशेष
दीपक मिश्रा : पथरोल शक्तिपीठ अपनी महिमा के लिए प्रसिद्ध है। भारी संख्या में प्रतिदिन श्रद्धालु पूरी आस्था व विश्वास के साथ यहां पूजा अर्चना करने पहुंचते है। मंगलवार और शनिवार को यहां भारी भीड़ उमड़ती है। लोगों में विश्वास है कि यहां आकर पूरी श्रद्धा भाव से मांगी गयी मनोकामनायें हर हाल में पूरी होती है। इस बार मैंने भी माता के दरबार में जानें की योजना बना ली और बाइक से यात्रा शुरू कर दिया।
बाइक यात्रा की सबसे बड़ी खासियत यह कि समय का निर्धारण आप खुद से कर सकते हैं। सुबह छह बजे मैं अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गया। मुझे केवल सौ किलोमीटर की ही यात्रा करनी थी। वहीं आपकी गति अगर धीमी हो तो इसका एक और फायदा यह होता है कि रास्ते में आनेवाले किसी खुबसूरत नजारों को भी मिस नहीं करते है।
झारखंड की सड़कों पर सफर कर रहे हैं तो प्रकृतिक नजारों का साक्षात्कार सहज ही होता रहेगा। कभी घनें जंगलों के बीच से होकर गुजरेंगे तो कभी पथरीली नदियों के उपर बने पुल से।
लगभग आधे घंटे की यात्रा के बाद मैं गिरिडीह जिला मुख्यालय पहुंच चुका था। गूगल मैप के अनुसार मुझे जामताड़ा जाने वाले मार्ग की ओर मुड़ना था। सुबह का समय होने के कारण कहीं भी ट्रैफिक नहीं थी ओर सड़क भी खाली थी। आगे बढ़ने पर महेशमुंडा रेलवे स्टेशन मिला ठीक उसके बाद गांडेय प्रखंड मुख्यालय मिला जहां थोड़ी चहलपहल दिखी। गांडेय में जवाहर नवोदय विद्यालय है जो इसे एक नयी पहचान देता है। जमताड़ा मार्ग पर चलता रहा इसी क्रम में एक मोड़ जहां धमनी की ओर जाने वाली एक नयी सड़क मिली।वहीं गूगल मैप से भी ‘टर्न लेफ्ट’ का निर्देश मिलने लगा यानी मुझे अब धमनी जाने वाली सड़क पर चलना था। लगभग आठ बजे मैं मधुपुर पहुंच चुका था। मधुपुर झारखंड राज्य का एक प्रमुख शहर है।
मधुपुर से पथरोल काली माता मंदिर की दूरी महज सात किलोमीटर ही है। मधुपुर से निकलकर मंदिर की और चल पड़ा। जैसे ही आप मंदिर के नजदीक पहुंचते हैं। मोड़ पर थोड़ी चलहपल व बाजार का माहौल देखकर ही अहसास हो जाता है कि आसपास ही कहीं मंदिर है।
सामने ही एक प्रवेश द्वार दिखा जिसमें बड़े अक्षरों से ‘मां काली द्वार पथरोल’ लिखा हुआ था। अब मेरी यात्रा लगभग समाप्त होने को थी। मौसम काफी सुहावना था फलस्वरूप मेरी यात्रा काफी आनंददायक रही।
प्रवेश द्वार से दो तीन मोड़ लेने के बाद मार्ग के दोनों तरफ प्रसाद, फूल, अगरबत्ती आदि की दुकानें मिलने लगी। सभी दुकानदार मुझे पुकारने लगे थे तथा बाइक अपनी- अपनी दुकानों के सामने ही लगाने को बोल रहे थे। अनुभव के अधार पर इन दुकानों के सामनें अपनी बाइक लगाना ठीक नहीं समझा। खाली जगह थी उसी ओर बढने लगा तभी मंदिर का मुख्य द्वार दिख गया।
मुख्य द्वार पर कई पंडा यानी पुजारी मिल जायेंगे जो पूजा करवाने को ले तैयार रहेंगे। हलांकि अन्य मंदिरों की अपेक्षा इस मंदिर के पुजारियों का व्यवहार काफी अच्छा है। पूजा के क्रम में काफी सहयोग करते है। प्रवेश करते ही आप एक बड़े आंगन में पहुंच जाते हैं। जहां काली माता के मुख्य मंदिर के अलावा भी कई अन्य मंदिर हैं। सबसे पहले जो मंदिर मिलता है वह काली माता का ही मंदिर है। यहां पर भक्तों की भीड़ होती है। खासकर मंगलवार व शनिवार को ज्यादा भीड़ होती है। यहां पर बलि देने की भी परंपरा है। मंदिर परिसर के बाहर सजी दुकानों से प्रसाद लेकर आयें तथा माता को अर्पित करें। यहां भक्तगण मन की मुरादें माता से मांगते हैं। लोगों में विश्वास है कि जो भी पूरी आस्था व श्रद्धा से कुछ मांगता है उसकी मनोकामना पूरी होती है।
बताया जाता है कि यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है तथा इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। इस मंदिर का निर्माण राजा दिग्विजय सिंह ने कराया था।
मंदिर प्रांगण में दुर्गा मंदिर, शिव मंदिर, गणेश मंदिर, सूर्य मंदिर समेत अन्य मंदिर भी है। विशेष पूजन के सामने यज्ञ कुंड भी बना है।
कैसे पहुंचे – मधुपुर जंक्शन सबसे निकटतम स्टेशन है। स्टेशन से मंदिर तक जाने के लिए हर समय आटो रिक्शा समेत अन्य गाड़ियां उपलब्ध रहती है। मधुपुर जंक्शन देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।