यात्रा वृतांत: भारत का दूसरा बड़ा शक्तिपीठ है छिन्नमस्तिका मंदिर

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वासंतिक नवरात्र पर विशेष

दीपक मिश्रा : छिन्नमस्तिका मंदिर भारत का दूसरा बड़ा शक्तिपीठ होने के कारण एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। न केवल झारखंड बल्कि दूसरे राज्यों से भी भारी संख्या में भक्तगण यहां पहुंचकर पूजा अर्चना करते हैं। छिन्नमस्तिका मंदिर झारखंड राज्य के रामगढ़ जिला जिला स्थित रजरप्पा में है। यह मंदिर भैरवी और दामोदर नदी के संगम स्थल पर स्थित है। मंदिर के ठीक सामने भैरवी नदी अनवरत रूप से बह रही है।
माता के दर्शन को ले मैं भी छिन्नमस्तिाका पहुंचा। पहली बार जा रहा था सो मन में काफी उत्साह था। जंगलों के बीच सड़क पर गाड़ी सरपट अपनी मंजिल की ओर दौडी जा रही थी। कभी दामोदर नदी की जलधारा तो कभी वनों से आच्छाादित पहाड़ियांे का मनोरम दृश्य इस यात्रा को ओर सुखद बना रहा था। लगभग दस बज रहे थे और हमारी गाड़ी मंदिर क्षेत्र में पहुंच गयी।


आगे बढ़ने के बाद सर्वप्रथम हमारा साक्षात्कार भैरवी नदी से होता है। नदी का जल काफी स्वच्छ व निर्मल था। नदी तट पर कई दुकानें लगी है जहां आप अपना सामान रखकर स्नान कर सकते हैं। पत्थरों से टकराते तेज बहाव वाले पानी में नहाने का आनंद अद्वितीय है। हलांकि कई बार ऐसा होता है कि आपका वास्तां जूठे पत्तलों के ढेर से भी हो सकता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों पर नियंत्रण लगाने की जरूरत है जो जूठा पत्तल, दोना, प्लास्टिक ग्लास व अन्य सामग्री पानी में ही फेंक देते हैं। इन सब छोटी बातों कों दरकिनार करें तो इस नदी में स्नान करने का अनुभव अनुपम है।
मंदिर जाने के क्रम मंे कई दुकानें लगी है जहां प्रसाद, श्रृंगार सामग्री समेत अन्य चीजों की दुकानें है। मंदिर परिसर में भक्तों की काफी भीड़ थी लिहाजा मैं भी कतार में शामिल हो गया। अपनी बारी आते ही मैं भी मंदिर के अदर चला गया। दर्शन करने के लिए पर्याप्त समय मिला। मुख्य मंदिर से निकलने के बाद अन्य मंदिरों का भी दर्शन किया। रजरप्पा मंदिर की कला और वास्तुकला असम के प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर के समान है।

काफी प्राचीन है यह मंदिर
इस मंदिर का निर्माण कब हुआ था इसे ठीक ठीक बताना आसान नहीं है। इस संबंध में मैनें कई लोगों से बात की परिणामस्वरूप सटीक समय नहीं बताया जा सकता है। विभिन्न जगहों पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ था। यह देष का दूसरा सबसे बड़ा षक्ति पीठ है। प्रथम स्थान में असम का कामाख्या मंदिर है। भक्तों के बीच इस मंदिर के प्रति आस्था देखते ही बनती है। सुबह चार बजे से ही भक्तों की भीड़ उमड़ने लगती है। विशेष अवसरों पर तो भक्तें की लंबी कतार लग जाती है।

छिन्नमस्तिका मंदिर से संबंधित पौराणिक कथा
एक बार पूर्णिमा की रात में शिकार की खोज में राजा दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर पहुंचे। रात्रि विश्राम के दौरान राजा ने स्वप्न में लाल वस्त्र धारण किए तेज मुख मंडल वाली एक कन्या देखी। उसने राजा से कहा. हे राजन ! इस आयु में संतान न होने से तेरा जीवन सूना लग रहा है। मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी की गोद भर जाएगी।

राजा की आंखें खुलीं तो वे इधर.उधर भटकने लगे। इस बीच उनकी आंखें स्वप्न में दिखी कन्या से जा मिलीं। वह कन्या जल के भीतर से राजा के सामने प्रकट हुई। उसका रूप अलौकिक था। यह देख राजा भयभीत हो उठे।
राजा को देखकर देख वह कन्या कहने लगी. हे राजनए मैं छिन्नमस्तिके देवी हूं। कलियुग के मनुष्य मुझे नहीं जान सके हैं जबकि मैं इस वन में प्राचीनकाल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूं। मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि आज से ठीक नौवें महीने तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। देवी बोली. हे राजनए मिलन स्थल के समीप तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा। इस मंदिर के अंदर शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी। तुम सुबह मेरी पूजा कर बलि चढ़ाओ। ऐसा कहकर छिन्नमस्तिके अंतर्ध्यान हो गईं। इसके बाद से ही यह पवित्र तीर्थ रजरप्पा के रूप में विख्यात हो गया।

कैसे पहुंचे

हवाईमार्ग – सबसे निकटतम हवाई अड्डा बिरसा मुंडा एयरपोर्ट, रांची है।

रेलवे स्टेशन – रामगढ़ कैंट व रांची रोड नजदीकी रेलवे स्टेषन हैं जिनकी दूरी क्रमषः 28 व 30 किलोमीटर है।

सड़क मार्ग – सड़क मार्ग की बात करें तो यह स्थल सूबे के विभिन्न षहरों से जुड़ा हुआ है।

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