गिरिडीह के ये जलाशय लुभाते हैं विदेशी मेहमान

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पर्यटन

दिसंबर माह के शुरू होते ही गिरिडीह में विदेशी मेहमानों का आगमन शुरू हो जाता है। ये मेहमान और कोई नहीं बल्कि प्रवासी पक्षी साइबेरियन बर्ड है जो इन दिनों गिरिडीह के विभिन्न जलाशयों में समय व्यतीत कर रहे हैं। हजारों मीलों दूर से आये इन मेहमानों के कलरव से पूरा क्षेत्र गुंजायमान है। यू ंतो पूरे झारखंड में कई ऐसे जलाशय हैं जो इन प्रवासी पक्षियों का बसेरा बनते हैं। पर बात केवल गिरिडीह की करें तो जिला मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर दूर खंडोली जलाशय इन प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा ठिकाना है। इन दिनों खंडोली डैम प्रवासी पक्षियों की अठखेलियों से गुलजार है।

खास बात यह कि खंडौली डैम एक पर्यटक स्थल है लिहाजा भारी संख्या में सैलानी यहां पहुंचते है। ऐसे में इन प्रवासी पक्षियों का समूह डैम की प्राकुतिक सुंदरता में चार चांद लगा देती है। खंडौली के अलावा जिला के डेलिया डैम, पारसनाथ पहाड की तराई, छोटी पहाडिया, बगोदर के बाडीबांध, रामसागर बांध  आदि ऐसे स्थल हैं जो प्रवासी पक्षियों का ठीकाना बनते जा रहे है। विभिन्न प्रजातियों के पक्षी यहां आते हैं। जानकारों का मानना है कि वर्ष के सितंबर अक्टूबर माह से प्रवासी पक्षियों स्ट्रोक बिल, साइबेरियन केन, कुरंजी यानि डेमास्सेल क्रेन, साइबेरियन क्रेन, साइबेरियन डक, रू डी शेल्डक आदि प्रजाति के पक्षियों का आना शुरू हो जाता है। मार्च माह तक यहीं रहते हैं और फिर लौट जाते हैं।

सर्दियां आते ही इनके मूल स्थान का वातावरण अनुकूल नहीं रह जाता है इसलिए वे एक आरामदायक स्थल की ओर रवाना होते हैं। वहां का तापमान माइनस मे चला जाता है जिससे इन पक्षियों के भोजन का संकट उत्पन्न हो जाता है। पर सर्दियोे में भी यहां प्रचुर मात्रा में भोजन उपलब्घ है। यही वजह है कि ये पक्षी हर वर्ष सर्दियों में इस ओर रूख करते हैं। बताया जाता है कि मुख्य रूप से जलीय पौधे ही इन पक्षियों का मुख्य आहार होता है।

पक्षी अध्येताओं की मानें तो इन पक्षियों की स्मरण शक्ति मानव से दस गुणा ज्यादा होता है। उसी की बदौलत वे चार हजार किलोमीटर का सफर बिना भटके ही पूरा कर लेते हैं। इस साल भी इन पक्षियों का दीदार इन जलाशयों में आसानी से किया जा सकता है।

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