प्रेमचंद की रचनाशीलता के केंद्र में थी आजादी : डॉ. समदानी

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प्रेमचंद की रचनाशीलता के केंद्र में थी आजादी : डॉ. समदानी

 

प्रेमचंद हिंदी को ज्यादा हिंदी और उर्दू को ज्यादा उर्दू बनाने के पक्ष में बिल्कुल नहीं थे : डॉ. शैलेन्द्र शुक्ल

 

कलीम साजिद की गजलों में हमारे समय और समाज का यथार्थ दर्ज है : डॉ. बलभद्र

 

प्रेमचंद स्मृति व्याख्यान ( संदर्भ : प्रेमचंद) और काव्य पाठ का आयोजन

डीजे न्यूज, गिरिडीह : जन संस्कृति मंच गिरिडीह ने रविवार को ‘प्रेमचंद स्मृति व्याख्यान’ के तहत ‘हिंदी-उर्दू लेखन ( संदर्भ : प्रेमचंद) एवं कवि गोष्ठी’ कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम दो सत्रों में था। पहला सत्र व्याख्यान एवं दूसरा सत्र काव्य गोष्ठी का था। व्याख्यान सत्र के मुख्य वक्ता थे डॉ. गुलाम समदानी और डॉ. शैलेन्द्र कुमार शुक्ल। डॉ. समदानी ने कहा कि प्रेमचंद भारतीय जीवन के कथाकार थे और उनकी ख्याति अंतरराष्ट्रीय है। प्रेमचंद की रचनाशीलता के केंद्र में थी आजादी और उनकी कोशिश मानव हृदय में जड़ जमाई हर तरह की गुलामी को निकाल बाहर करना था। इसके लिए उन्होंने आम अवाम की भाषा को अपनाया। हिंदी-उर्दू के माध्यम से उन्होंने किसानों, मजदूरों, बच्चों, दलितों और महिलाओं के जीवन की वास्तविक तस्वीर प्रस्तुत की। डॉ. शैलेन्द्र कुमार शुक्ल ने कहा कि सांप्रदायिकता कभी धर्म को तो कभी भाषा को आधार बनाती है। उन्होंने प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू के उस वक्तव्य का जिक्र किया जिसमें उन्होंने लेखन के लिए आम आदमी की समझ की भाषा को जरूरी बताया था। शैलेन्द्र ने प्रेमचंद की भाषा को भारतीय समाज की भाषा कहा और बताया कि भाषा उनके लिए माध्यम है। वे हिंदी को ज्यादा हिंदी और उर्दू को ज्यादा उर्दू बनाने के पक्ष में बिल्कुल नहीं थे। डॉ. अंजर हुसैन ने कहा कि हिंदी और उर्दू दोनों हिंदुस्तान की भाषा है। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान की जितनी भाषाएं हैं, सबका संबंध हिंदी-उर्दू से है। अध्यक्षता गांडेय जिला परिषद के सदस्य मुफ्ती सईद आलम ने की। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद अपने समय में केवल अपने समय के लिए ही नहीं लिख रहे थे। उनसे हम आज भी अपने समय को समझने में मदद लेते हैं। व्याख्यान सत्र का संचालन जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य महेश सिंह ने किया।

कार्यक्रम का दूसरा सत्र सम्मान और काव्य गोष्ठी का था। इस अवसर पर जन संस्कृति, मंच गिरिडीह की तरफ से उर्दू के शायर कलीम साजिद को हिंदी-उर्दू लेखन सम्मान से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर कवि को अंगवस्त्र और प्रतीक चिन्ह सम्मान स्वरूप भेंट किया गया। सम्मानित कवि के बारे में डॉ. बलभद्र ने कहा कि कलीम साजिद की गजलों में हमारे समय और समाज का यथार्थ दर्ज हुआ है। वे बेहद सहज भाषा में अपनी बात कहते हैं। सम्मान के बाद काव्य पाठ में शहर के हिंदी उर्दू के कई कवियों और शायरों ने अपनी अपनी रचनाओं के पाठ किए। सरफराज चांद ने सुनाया कि ‘हमारे देश की मिट्टी में है खुशबू मुहब्बत की।’ सलीम परवाज ने फूलों के ख्वाब के साथ फूलों के प्यार की बात की। छोटू प्रसाद चंद्रप्रभ, प्रदीप कुमार गुप्ता, हलीम असद, क्रांति कुमार शर्मा, जावेद हुसैन जावेद, मशकूर मयकश, महेश सिंह आदि ने काव्य पाठ किए। कवि गोष्ठी के अध्यक्ष सम्मानित कवि कलीम साजिद ने भी अपनी कविताएं सुनाई। गोष्ठी का संचालन जसम के राष्ट्रीय पार्षद शंकर पाण्डेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रभात कृष्ण ने किया। कार्यक्रम में हीरा लाल मंडल, दिवाकर रविदास, विशाल, अजय, मनी, राजू, प्रदीप, ऋषि, साजन कुमार पाठक, विशाल की सक्रिय उपस्थिति एवं सहयोग रहा।

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