

मुराईडीह में 40 वर्षों से हो रही माता दुर्गा की पूजा,
सनातनी परंपरा विधिवत पूजन और भक्ति का अनुपम संगम है पूजनोत्सव
डीजे न्यूज, कतरास(धनबाद): धनबाद जिला के बरोरा क्षेत्र अंर्तगत मुराईडीह कॉलोनी में 40 वर्षों से दुर्गापूजा का आयोजन होते आ रहा है। यूं तो 1985 में मिट्टी की प्रतिमा बनाकर मां दुर्गा की पूजा शुरू हुई थी। कालांतर में वर्ष 2005 में यहां माता की अस्टभुजी प्रतिमा की स्थापना की ग ई। इस बार असम के प्रसिद्ध मां दुर्गा मंदिर की अनुकृति के पंडाल का निर्माण किया गया है। पंडाल की साज-सज्जा में लाइटिंग, फूल-मालाओं और पारंपरिक कलाकृतियों का शानदार उपयोग किया गया है, जिससे पूरा मंदिर परिसर दिव्य स्वरूप धारण कर चुका है।
पूजा समिति के अध्यक्ष नवीन सिंह के अनुसार, इस आयोजन का बजट करीब 10 लाख रुपये है, जिसमें स्वच्छता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। समिति के सदस्यों ने बताया कि पूजा का मुख्य उद्देश्य विधि-विधान से मां की आराधना करना है, ताकि भक्तों को शुद्ध और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त हो। “यहां स्वच्छता ही हमारी पहली पूजा है। हर कोने को साफ-सुथरा रखा जाता है, क्योंकि मां दुर्गा स्वच्छ मन और स्थान में ही वास करती हैं। समिति के अध्यक्ष ने कहा की पंडाल में स्थापित अष्टभुजी मां दुर्गा की स्थायी प्रतिमा भक्तों का केंद्र बिंदु बनी है, जो कॉलोनी के मूल मंदिर में विराजमान है।
सप्तमी से दशमी तक लगातार महाभंडारा का आयोजन किया है, जिसमें आसपास के दर्जनों गांवों से हजारों श्रद्धालु भाग लेंगे। भंडारे में शुद्ध शाकाहारी भोजन, फलाहार और प्रसाद का वितरण किया जाएगा। ढोल-नगाड़ों की थाप, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धून गूंजेगी। स्थानीय निवासियों का कहना है कि “यहां की पूजा केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि समुदाय की एकजुटता का प्रतीक है।”
विशेष रूप से अष्टमी के दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा के दौरान भक्त अपनी मन्नतें मांगते हैं। मान्यता है कि मां यहां सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। समिति ने यातायात और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं, ताकि श्रद्धालुओं को किसी तरह की असुविधा न हो।
परंपरा की जड़ें और भविष्य की झलक
मुराईडीह दुर्गा पूजा की परंपरा 1985 से चली आ रही है। जब कॉलोनी के निवासियों ने सामूहिक रूप से पहली बार मां की स्थापना की थी। तब से यह आयोजन साल दर साल भव्यता की ओर बढ़ता जा रहा है। असम के मां दुर्गा मंदिर से प्रेरित इस वर्ष का पंडाल न केवल स्थानीय संस्कृति को दर्शाता है, बल्कि पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का उपयोग कर सतत विकास का संदेश भी देता है। समिति के सचिव ने बताया, “हमारा लक्ष्य है कि यह पूजा न केवल धार्मिक हो, बल्कि सामाजिक सद्भाव और स्वच्छता अभियान का माध्यम भी बने।”
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में स्थानीय कलाकारों के नृत्य, संगीत और नाटक प्रस्तुतियां शामिल हैं, जो युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ रही हैं। मुराईडीह की यह दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्रीय एकता और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का माध्यम भी बन चुका है। यदि आप भी इस दिव्य दर्शन का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो बरोरा के मुराईडीह कॉलोनी अवश्य पहुंचें।
पूजनोत्सव को सफल बनाने में नवीन सिंह , रंधीर झा, शशि यादव, बिनोद मिस्त्री, शंकर बाउरी , संजय चौहान, पूर्व मुखिया संजय कुमार, सुरेश साव, संरक्षक देवानंद राजभर, रामनाथ सोरेन, संतोष चौहान, मीडिया एवं सूचना प्रभारी भोला झा, सक्रिय सदस्य बबलू महतो, सुजीत चौहान, शुभम सिंह, संतोष पेंटर, प्रभुनाथ प्रसाद, संतोष विश्वकर्मा, गौतम साव, सत्यम झा, जीतू चौहान, सूरज साव आदि सक्रिय हैं।
