क्या गुरुजी के वृहत झारखंड के सपने को पूरा सकेंगे हेमंत  ज्वलंत सवाल  बिहार, मध्य प्रदेश, बंगाल और ओडिशा के झारखंडी सांस्कृतिक पहचान वाले तत्कालीन 26 जिलों को मिलाकर वृहत झारखंड बनाने का गुरुजी का सपना था। इसके लिए उग्र आंदोलन हुआ। पर, वर्ष 2000 में सिर्फ बिहार के 18 जिलों को मिलाकर झारखंड राज्य बना, इसके साथ ही सपना बनकर रह गया था वृहत झारखंड।  शैलेंद्र महतो, अजीत महतो व सूर्य सिंह बेसरा का तर्क-वृहत झारखंड बनने से आदिवासियों और मूलवासियों का होगा राज 

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क्या गुरुजी के वृहत झारखंड के सपने को पूरा सकेंगे हेमंत

ज्वलंत सवाल 

बिहार, मध्य प्रदेश, बंगाल और ओडिशा के झारखंडी सांस्कृतिक पहचान वाले तत्कालीन 26 जिलों को मिलाकर वृहत झारखंड बनाने का गुरुजी का सपना था। इसके लिए उग्र आंदोलन हुआ। पर, वर्ष 2000 में सिर्फ बिहार के 18 जिलों को मिलाकर झारखंड राज्य बना, इसके साथ ही सपना बनकर रह गया था वृहत झारखंड। 

शैलेंद्र महतो, अजीत महतो व सूर्य सिंह बेसरा का तर्क-वृहत झारखंड बनने से आदिवासियों और मूलवासियों का होगा राज 

दिलीप सिन्हा, देवभूमि झारखंड न्यूज :

झारखंड आंदोलन के महानायक दिशोम गुरु शिबू सोरेन दिवंगत हो चुके हैं। पूरा झारखंड उनके निधन से शोक में डूबा हुआ है। क्या सत्ता पक्ष क्या विपक्ष, क्या खास क्या आम, सभी दिशोम गुरु को श्रद्धांजलि देने पैतृक आवास रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के नेमरा गांव पहुंच रहे हैं। दिशोम गुरु शिबू सोरेन के पुत्र व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उनकी पत्नी गांडेय की विधायक कल्पना सोरेन, छोटे पुत्र व दुमका के विधायक बसंत सोरेन, बड़ी बहू व पूर्व विधायक सीता सोरेन समेत पूरा परिवार गुरुजी के श्राद्ध में जुटा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी विधायक कल्पना सोरेन जिस तरह पुत्र धर्म का पालन करते हुए आदिवासी संस्कृति के तहत गुरुजी का श्राद्ध कर रहे हैं, उसे देख लोग उनके कायल हो गए हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पिता के दिवंगत होने के बाद बिलखते हुए कहा कि बाबा, अब आप आराम कीजिए। आपने अपना धर्म निभा दिया। अब हमें चलना है आपके नक्शे कदम पर। आपने जो सपने देखे, उनको पूरा करूंगा, यह मेरा वादा है। इधर झारखंड अलग राज्य तो बन गया, मगर दिशोम गुरु ने जो बड़ा सपना वृहत झारखंड राज्य का देखा था, वह अधूरा है। नेमरा पहुंच रहे लोग गुरुजी को याद कर भावुक हो रहे हैं, सवाल भी कर रहे हैं- क्या हेमंत गुरुजी के सपने को पूरा करने के लिए आगे आएंगे। कई पुराने लोगों ने उम्मीद जताई कि श्राद्ध के बाद जब हेमंत संगठन में सक्रिय होंगे, तब वृहत झारखंड के लिए कदम बढ़ाएंगे।

 

सपना पूरा करना आसान नहीं, कई राज्य सरकारों से टकराना होगा

 

वहीं जानकारों का कहना है कि यह सपना पूरा करना आसान नहीं है। कारण, इसके लिए झामुमो को बंगाल, ओडिशा, बिहार और छत्तीसगढ़ की सरकारों से टकराना होगा। कुछ का मानना है कि शुरुआती चरण में हेमंत सोरेन वृहत झारखंड के इलाकों में झामुमो का संगठन मजबूत करने के लिए काम करें। एक समय था जब तत्कालीन वृहत झारखंड जिसमें बिहार, मध्य प्रदेश (अब छत्तीसगढ़) , बंगाल और ओडिशा के झारखंडी सांस्कृतिक पहचान वाले 26 जिले थे। उनमें झामुमो का सिक्का चलता था। ओडिशा में तो झामुमो के दो-दो सांसद और आठ विधायक चुनाव जीते थे।

 

झामुमो ने ही डाल दिया ठंडे बस्ते में 

 

वर्ष 2000 में जैसे ही सिर्फ बिहार के 18 जिलों को मिलाकर झारखंड बना झामुमो ने वृहत झारखंड के मुद्​दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया। नतीजा हुआ कि झारखंड अलग राज्य के लिए उग्र आंदोलन करने वाले इन राज्यों के नेताओं ने झामुमो से किनारा कर लिया। ओडिशा के झामुमो नेता बीजद व भाजपा, बंगाल के नेता टीएमसी व भाजपा, छत्तीसगढ़ के नेता भाजपा व कांग्रेस तो बिहार के नेता भाजपा व राजद में शामिल हो गए। झारखंड राज्य की लड़ाई में सबसे अधिक शहादत पुरुलिया ने दी कभी झामुमो के केंद्रीय उपाध्यक्ष व बंगाल प्रदेश झामुमो के अध्यक्ष रहे फायर ब्रांड नेता अजीत महतो अब झामुमो से अलग होकर कुर्मी समाज की राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने देवभूमि झारखंड न्यूज को बताया कि 18 जिलों का झारखंड बनते ही झामुमो ने वृहत झारखंड की मांग छोड़ दी। जबकि अलग झारखंड राज्य की लड़ाई में सबसे अधिक शहादत बंगाल के पुरुलिया के लोगों ने दी है। झारखंड बंद, आर्थिक नाकेबंदी समेत उग्र आंदोलनों में हमारे कई साथी पुलिस फायरिंग में शहीद हुए हैं। पुरुलिया के हर चौक-चौराहे में आपको झारखंड आंदोलन के शहीदों की प्रतिमा और चौक मिलेंगे। पुरुलिया में झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़कर वह खुद 64 हजार वोट ला चुके हैं। झामुमो हो या फिर आजसू कोई भी अब वृहत झारखंड के लिए आवाज नहीं उठाता है। अजीत महतो ने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि पुरुलिया के चास रोड सिंदरी में वृहत झारखंड के लिए गुरुजी ने गोहाल में बैठक की थी। स्टीफन मरांडी, साइमन मरांडी भी शामिल हुए थे। गुरुजी, बिनोद बिहारी महतो और एके राय के नेतृत्व में पुरुलिया में झारखंड आंदोलन को बड़ा रूप दिया गया था। यदि हेमंत सोरेन अपने पिता गुरुजी के सपनों को पूरा करने की बात करते हैं तो उन्हें वृहत झारखंड राज्य के निर्माण के लिए फिर से आवाज बुलंदी करनी चाहिए। झारखंड आंदोलनकारी व पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो का कहना है कि वृहत झारखंड के निर्माण से ही आदिवासियों एवं मूलवासियों का राज कायम हो सकेगा। फायर ब्रांड नेता पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने भी वृहत झारखंड के निर्माण के लिए आगे आने पर जोर दिया है। बेसरा ने बताया कि राजीव गांधी की सरकार ने झारखंड आंदोलन के तेवर को देखते हुए केंद्र की एक समिति बनाई थी। इस समिति ने वृहत झारखंड के समर्थन में रिपोर्ट दी थी। बिहार के जमुई, मुंगेर एवं भागलपुर जिले को भी शामिल करने की बात कही थी। कारण, यह इलाका तिलका मांझी के आंदोलन का इलाका था। यह है वृहत झारखंड शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो के नेतृत्व में जो झारखंड आंदोलन शुरू हुआ था, उसकी मूल भावना थी 26 जिलों को मिलाकर वृहत झारखंड राज्य की स्थापना। इसमें बिहार के अलावा बंगाल के पुरुलिया, मेदिनीपुर व बांकुड़ा, ओडिशा के मयूरभंज, क्योंझर, सुंदरगढ़ व संबलपुर एवं छत्तीसगढ़ के रायगढ़ एवं सरबुजा जिले को शामिल करने की मांग थी। तर्क है कि आज के झारखंड के अलावा ओडिशा, बंगाल एवं छत्तीसगढ़ के इन इलाकों की पहचान झारखंडी सांस्कृतिक पहचान है।

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