
करमाली का पार्थिव शरीर लेकर एंबुलेंस के दाखिल होते ही टूटा गांव का सन्नाटा
नाइजर में बंदूकधारियों ने की थी हत्या, शव पहुंचते ही गमगीन हुआ गांव, परिवार का रो-रोकर बुरा हाल
डीजे न्यूज, गोमिया(बोकारो) : पश्चिम अफ्रीकी देश नाइजर में 15 जुलाई को मारे गए प्रवासी मजदूर गणेश करमाली (39 वर्ष) का पार्थिव शरीर सोमवार रात 13 दिन बाद उनके पैतृक गांव कारीपानी (प्रखंड गोमिया, जिला बोकारो) लाया गया। जैसे ही एम्बुलेंस गांव में दाखिल हुई, सन्नाटा टूट गया। परिजनों के करुण क्रंदन और ग्रामीणों के आँसूओं से माहौल गमगीन हो उठा।
गणेश करमाली ट्रांसरेल लाइटिंग लिमिटेड कंपनी में काम करते थे। 15 जुलाई को नाइजर में अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर उनकी और उत्तर प्रदेश के कृष्णा गुप्ता की हत्या कर दी थी। साथ ही जम्मू-कश्मीर के रणजीत सिंह का अपहरण कर लिया गया, जिनका अब तक कोई सुराग नहीं मिला है। गणेश करमाली के परिवार में उसकी मां गोलकी देवी, पिता धनाराम करमाली, पत्नी यशोदा देवी, दो बेटियां राजकुमारी (17) और ज्योति (5), तथा एक बेटा अंशु (2) हैं। उनका एक और बेटा, जो अब जीवित नहीं है, की मृत्यु पांच साल पहले ट्रेन हादसे में हुई थी। गणेश परिवार के इकलौते कमाऊ सदस्य थे। एक माह पूर्व ही उनकी बड़ी बेटी की शादी हुई थी, लेकिन नौकरी की मजबूरियों के चलते वह शादी में भी शामिल नहीं हो पाए थे। गांव के लोगों ने बताया कि गणेश मेहनती और जिम्मेदार इंसान थे, जो अपने परिवार के बेहतर भविष्य के लिए विदेश में मजदूरी कर रहे थे।घटना की सूचना मिलते ही प्रवासी मजदूरों के मुद्दों पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली कारीपानी पहुंचे और शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह कोई पहली घटना नहीं है। विदेश में काम कर रहे हमारे मजदूर लगातार असुरक्षा के साये में जी रहे हैं। अप्रैल में नाइजर से ही गिरिडीह के पांच मजदूरों के अपहरण की खबर आई थी, जिनका अब तक कोई अता-पता नहीं है। सरकार को इन घटनाओं पर गंभीरता से ध्यान देना होगा। गांव में अंतिम दर्शन को लेकर लोगों की भीड़ लगी रही। हर आंख नम थी और हर मन में सवाल क्या केवल पेट पालने के लिए जान गंवाना अब नियति बन चुका है?