झारखंड भाजपा में कब टूटेगा सन्नाटा  प्रदेश अध्यक्ष छोड़िए मंडल अध्यक्ष तक घोषित नहीं कर पा रही पार्टी  पांच महीने से प्रदेश अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष दोनों जिम्मेवारी निभा रहे बाबूलाल मरांडी  कार्यकर्ता असमंजस में, जमीन पर जड़ें मजबूत करने की कवायद ठप

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झारखंड भाजपा में कब टूटेगा सन्नाटा

प्रदेश अध्यक्ष छोड़िए मंडल अध्यक्ष तक घोषित नहीं कर पा रही पार्टी

पांच महीने से प्रदेश अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष दोनों जिम्मेवारी निभा रहे बाबूलाल मरांडी

कार्यकर्ता असमंजस में, जमीन पर जड़ें मजबूत करने की कवायद ठप

दिलीप सिन्हा, धनबाद : झारखंड भाजपा इस वक्त सांगठनिक असमंजस के सबसे लंबे दौर से गुजर रही है। सांगठनिक चुनाव की निर्धारित समय-सीमा खत्म हो चुकी है, लेकिन न तो प्रदेश स्तर पर अध्यक्ष की तस्वीर साफ हो सकी है और न ही 516 मंडलों में से किसी एक का अध्यक्ष ही घोषित किया गया है। पूरे भाजपा में इस वक्त सन्नाटा पसरा हुआ है। राज्य की हेमंत सरकार को घेरने में पार्टी पूरी तरह से नाकाम साबित हो रही है। भाजपा कार्यकर्ता अब सवाल करने लगे हैं कि पार्टी संगठन की बुनियाद आखिर कब मजबूत होगी? और क्या सांगठनिक ठहराव का असर आगामी विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा? बाबूलाल मरांडी पिछले पांच महीने से प्रदेश अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष दोनों की जिम्मेवारी निभा रहे हैं। अगला प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा और कब होगा, यह अभी तय नहीं है। मार्च महीने में बाबूलाल नेता प्रतिपक्ष चुने गए थे। अनुमान लगाया जा रहा था कि इसके तुरंत बाद झारखंड भाजपा को नया अध्यक्ष मिल जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब जुलाई महीना भी खत्म होने को है। इससे पार्टी के भीतर कार्यकर्ताओं की बेचैनी बढ़ती जा रही है और नेतृत्व पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सांगठनिक शून्यता के कारण किसी भी जिले में भाजपा सक्रिय रूप से काम नहीं कर पा रही है। यह जरूर है कि विधानसभा के सत्र को देखते हुए पार्टी ने मुख्य सचेतक और दो सचेतक की नियुक्ति जरूर कर दी है। धनबाद के विधायक राज सिन्हा सचेतक बनाए गए हैं।

यहां हम आपको बता दें कि मंडल अध्यक्षों के चुनाव मार्च तक पूरे हो जाने चाहिए थे, लेकिन अब तक सिर्फ नामों की सूची प्रदेश नेतृत्व के पास है। चर्चा है कि कई जिलों से मंडल अध्यक्षों की सूची भी नहीं आई है। गिरिडीह, पलामू जैसे बड़े जिलों में नए ग्रामीण जिला संगठन बनाने की योजना पर भी अभी मुहर नहीं लगी है। वहीं, 80 से अधिक बूथों वाले मंडलों को दो भागों में बांटने का प्रस्ताव है।

सियासी जोड़-तोड़ और लॉबिंग का दौर तेज

भाजपा के सांगठनिक चुनाव अब केवल आंतरिक प्रक्रिया नहीं रह गए हैं, बल्कि यह अब राजनीतिक लॉबिंग और समीकरणों की लड़ाई में तब्दील हो चुके हैं। मंडल से लेकर प्रदेश स्तर तक नेता दिल्ली और रांची दरबार में अपनी-अपनी गोटियां फिट करने में जुटे हैं। सांसदों और विधायकों की दखलअंदाजी के चलते चयन प्रक्रिया लगातार खिंचती जा रही है। प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी से होगा, यह लगभग तय माना जा रहा है।

प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी भाजपा को अब सांगठनिक स्तर पर स्थिरता की जरूरत है, लेकिन लगातार बदलती कमेटियों ने कार्यकर्ताओं के बीच भ्रम और निष्क्रियता का माहौल पैदा कर दिया है। पहले जिलाध्यक्षों की नियुक्ति हुई, लेकिन जिला कमेटियां नहीं बनीं। फिर लोकसभा चुनाव के ठीक पहले मंडल अध्यक्ष बदले गए और अब एक साल के अंदर फिर से नए अध्यक्षों का चयन लटका हुआ है।

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