…जब मैंने बिहार विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था

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...जब मैंने बिहार विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था

 

झारखंड के झरोखे 

 

जानिए सूर्य सिंह बेसरा की जुबानी

ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू ) द्वारा गोर

खालैंड और बोडोलैंड आंदोलन में हिंसक वारदातों के तर्ज पर 1999 में 72 घंटे की झारखंड बंद से संपूर्ण परिकलित झारखंड धधकता हुआ ज्वालामुखी की तरह विस्फोट होकर विकराल रूप धारण किया हुआ था।

झारखंड बंद और आर्थिक नाकाबंदी ने 50 साल पुरानी मृत: प्राय झारखंड आंदोलन की न सिर्फ दशा और दिशा ही बदल दिया बल्कि झारखंड आंदोलन के इतिहास में पहली बार झारखंड अलग राज्य के मुद्दे पर तत्कालीन भारत सरकार यानी प्रधानमंत्री राजीव गांधी केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह के साथ सूर्य सिंह बेसरा और प्रभाकर तिर्की के नेतृत्व में दिल्ली में ऐतिहासिक समझौता वार्ता हुई थी। यह वार्ता 1988 मैं गोरखालैंड समझौता के बाद 1989 में आशु और भारत सरकार के साथ लिखित समझौता हुई थी। तीन चरणों में वार्ता संपन्न होने के पश्चात 11 अगस्त 1999 को भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा झारखंड विषयक समिति का गठित कर अधिसूचित किया गया था।

बिहार विधानसभा के सदन पटल पर झारखंड क्षेत्र विकास परिषद विधायक 1991 प्रस्तावित होना था। मैंने विधानसभा के स्पीकर गुलाम सरवर को एक नोटिस जारी कर अवगत किया था, जिसमें लिखा था झारखंड का मामला है इसलिए सदन में परिषद पर चर्चा के दरमियान झारखंड विषयक समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत किया जाए। इसके पूर्वी मैं दिल्ली जाकर तत्कालीन गृह राज्य मंत्री सुबोध कांत सहाय से मिलकर झारखंड विषयक समिति की रिपोर्ट की एक प्रति ले लिए थे।

विधानसभा के सत्र के दरमियान जैसे ही ध्यान आकर्षण प्रस्ताव पर स्पीकर गुलाम सरवर ने कहा माननीय विधायक श्री सूर्य सिंह बेसरा आप अपना पक्ष रखिए और जैसी ही मैं झारखंड क्षेत्र विकास परिषद विधेयक के खिलाफ बोलने के लिए खड़े हुए मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने कहा बेसरा जी बैठो। आप परिषद के खिलाफ नहीं बोल सकते हैं। स्पीकर महोदय मैंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायको के साथ समझौता कर लिया। वह सभी झारखंड क्षेत्र विकास परिषद की गठन के पक्षधर हैं। माननीय सूर्य सिंह बेसरा अकेले विधायक हैं उनके विरोध का कोई मायने नहीं है। कोई फर्क नहीं पड़ता है।

मैं बार-बार अपना पक्ष रखते हुए भारत सरकार द्वारा गठित झारखंड विधेयक समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत करना चाहता था।

लेकिन मुख्यमंत्री बोलने से टोका टोकी करते रहे। मैंने अध्यक्ष महोदय से सदन की गरिमा और नियमावली कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा किया। इस पर स्पीकर ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जी आप अपनी कुर्सी पर बैठ जाइए और माननीय विधायक सूर्य सिंह बेसरा को बोलने दीजिए।

क्योंकि उन्होंने इस विषय पर ध्यान आकर्षण प्रस्ताव दिया है। उसके बाद सत्ता पक्ष सदस्यों के हो हल्ला के बीच मैं करीब 1 घंटे तक झारखंड की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर तथा झारखंड वार्ता की रिपोर्ट पर बोलते रहा। अंत में मुख्यमंत्री ने सदन वोट करने का प्रस्ताव दिया। फिर वोट की प्रक्रिया शुरू हुई सत्ता पक्ष के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा के 19 विधायक और झारखंड पार्टी के विधायक एनई होरो ने परिषद के पक्ष में मतदान किया।

इस प्रकार बहुमत से झारखंड क्षेत्र विकास परिषद विधायक पारित हुआ। तब लालू प्रसाद यादव ने दोहराया कि मेरी लाश पर झारखंड बनेगा।

लालू ने ललकारा… मैंने भी उनको करारा जवाब दिया। मैं सदन में मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव को चुनौती दी मैं रहूं न रहूं आप रहे न रहें एक इतिहास बनेगा। आज नहीं तो कल बनेगा बिहार से झारखंड अलग राज्य बनेगा।

यह कहते हुए मैं स्पीकर महोदय के नाम इस्तीफा पत्र सौंप दिया तत्पश्चात 12 अगस्त 1991 को विधायक पद से मेरा त्यागपत्र स्वीकार कर लिया गया।

मैं विधायक बनकर एक साल 5 महीने पद पर रहा।

निर्मल महतो का बलिदान, आजसू का उलगुलान और सूर्य सिंह बेसरा की कुर्बानी से झारखंड राज्य का निर्माण संभव हुआ।

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