जब ज्योतिन बाबू बागी बन साइकिल लेकर निकल पड़े थे…  कांग्रेस को कराया था अपनी ताकत का एहसास, अगले चुनाव में पार्टी ने टिकट दिया तो भाकपा के ओमीलाल आजाद को हराकर बने थे विधायक  सादगी और ईमानदारी के मिसाल गिरिडीह के पूर्व विधायक ज्योतिन प्रसाद ने गुरुवार की सुबह ली अंतिम सांस

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जब ज्योतिन बाबू बागी बन साइकिल लेकर निकल पड़े थे…

कांग्रेस को कराया था अपनी ताकत का एहसास, अगले चुनाव में पार्टी ने टिकट दिया तो भाकपा के ओमीलाल आजाद को हराकर बने थे विधायक 

सादगी और ईमानदारी के मिसाल गिरिडीह के पूर्व विधायक ज्योतिन प्रसाद ने गुरुवार की सुबह ली अंतिम सांस

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह : गिरिडीह के पूर्व कांग्रेस विधायक ज्योतिन प्रसाद का गुरुवार की सुबह बक्सीडीह रोड पर निधन हो गया। वह काफी समय से बीमार थे। देवभूमि झारखंड न्यूज परिवार उनके निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए उनके बारे में कुछ जानकारी आपके साथ शेयर कर रहा है।

युवा कांग्रेस से अपनी राजनीतिक कैरियर शुरू करने वाले ज्योतिन प्रसाद 1980 तक गिरिडीह

में कांग्रेस के एक कद्​दावर नेता बन चुके थे। माइका मजदूरों की वह आवाज थे। समर्थकों के बीच ज्योतिन दा के नाम से वह लोकप्रिय हो चुके थे। तभी 1985 का विधानसभा चुनाव आ गया। कांग्रेस से गिरिडीह विधानसभा सीट से टिकट के सबसे प्रबल दावेदार ज्योतिन प्रसाद थे। इधर पार्टी ने विधायक उर्मिला देवी को फिर से प्रत्याशी बना दिया। ज्योतिन बाबू का कहना था कि माहौल उर्मिला देवी के खिलाफ है। वह चुनाव जीत नहीं सकेंगी। इधर माइका मजदूरों एवं गिरिडीह की जनता ने ज्योतिन बाबू को बगावत के लिए तैयार कर लिया। मजदूरों ने चंदा कर चुनाव लड़ने का खर्च इन्हेंं दिया। ज्योतिन बाबू अपनी ईमानदारी, जुझारूपन एवं सादगी के लिए जाने जाते थे। कांग्रेस नेतृत्व के समझाने के बावजूद वह नहीं माने और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में गिरिडीह विधानसभा सीट से नामांकन कर दिया। चुनाव आयोग ने इन्हें साइकिल चुनाव चिन्ह दिया। फिर क्या था-ज्योतिन बाबू साइकिल लेकर चुनाव प्रचार को निकल पड़े। उनके पीछे-पीछे समर्थक भी बड़ी संख्या में साइकिल लेकर चल पड़े। ज्योतिन बाबू ने उस जमाने में करीब साढ़े आठ हजार से अधिक वोट लाकर कांग्रेस नेतृत्व को अपनी ताकत का एहसास करा दिया। चुनाव न तो जोतिन बाबू जीते और न ही उर्मिला देवी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के ओमीलाल आजाद ने उस चुनाव में जीत का झंडा लहराया। चुनाव के बाद कांग्रेस नेतृत्व को अपनी गलतियों का एहसास हुआ। इसके बाद हुए 1990 के चुनाव मेंं कांग्रेस ने ज्योतिन प्रसाद को गिरिडीह विधानसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया। ज्योतिन प्रसाद ने विधायक ओमीलाल आजाद से गिरिडीह सीट छीनकर कांग्रेस का परचम लहरा दिया। हालांकि बाद में फिर कभी ज्योतिन प्रसाद चुनाव जीत नहीं सके। तब भाजपा के चंद्रमोहन प्रसाद चुनाव जीते थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता व गांडेय के पूर्व विधायक लक्ष्मण स्वर्णकार ने ज्योतिन प्रसाद के निधन पर गहरा दुख जताते हुए कहा है कि ईमानदारी के वह मिसाल थे। उन्होंने एक रुपया भी कभी घूस नहीं लिया। इस तरह का कट्टर ईमानदार नेता गिने चुने होंगे। वह बराबर पदयात्रा करते थे और हर वक्त मजदूरों के लिए चिंता करते थे। उनका जाना मजदूरों के लिए और ईमानदार तथा स्वच्छ राजनीति के लिए बड़ा झटका है। प्रदेश कांग्रेस के सचिव व वरिष्ठ अधिवक्ता अजय कुमार सिन्हा मंटू ने ज्योतिन बाबू के कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया था। अजय सिन्हा ने बताया कि 1985 के चुनाव में जब ज्योतिन बाबू निर्दलीय लड़ रहे थे तो वह उनके पोलिंग एजेंट थे। अजय सिन्हा ने बताया कि उनके जैसा ईमानदार और जुझारू नेता नहीं देखा। कार्यकर्ताओं के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहते थे। विधायक के रूप में मिलने वाले वेतन, टीए और डीए की राशि भी वह गरीब कार्यकर्ताओं के बीच बांटते थे।

अजय सिन्हा ने बताया कि बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से भिड़ गए थे। खुलेआम कह दिया था कि आप भी विधायक बनकर यहां हैं और मैं भी। दुर्भाग्य से आप मुख्यमंत्री बन गए हैं। गिरिडीह के तत्कालीन डीसी कृष्णा प्रसाद के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सामने आने पर वह विधानसभा में धरना पर बैठ गए थे। मामला सलटाने के लिए कई प्रस्ताव उन तक आया लेकिन वह नहीं माने। एक मामला रतन माइका के आंदोलन का था। प्रबंधन ने कई मजदूरों को बर्खास्त कर दिया था। ज्योतिन बाबू ने रतन माइका में हड़ताल करवा दी। उन्हें मैनेज करने का कई प्रस्ताव आया। एक शुभचिंतक तो अटैची लेकर पहुंच गया लेकिन जोतिन बाबू टस से मस नहीं हुए। दो टूक कहा-मुझे तुम जीवन में कभी भी खरीद नहीं सकते हो। हां-अगर समझौता चाहते हो तो बर्खास्त सभी मजदूरों को तत्काल वापस नौकरी पर लो। अंतत: प्रबंधन ने यही किया और हड़ताल खत्म हो गई। ऐसे अनगिनित मामले जोतिन बाबू से जुड़े हैं।

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