



एलआईसी व बैंक-बीमा कर्मियों ने किया गेट प्रदर्शन

बीमा कानून (संशोधन) विधेयक 2025 का विरोध
डीजे न्यूज, गिरिडीह : बीमा उद्योग तथा बैंकिंग उद्योग में कार्यरत तमाम श्रमिक संगठनों के आह्वान पर भारत सरकार द्वारा संसद में पारित बीमा कानून (संशोधन) विधेयक, 2025 के विरोध में भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के सभी शाखा कार्यालयों में गुरुवार को द्वार प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इसी क्रम में गिरिडीह शाखा कार्यालय परिसर में भी अखिल भारतीय बीमा कर्मचारी संघ के नेतृत्व में भोजनावकाश के दौरान द्वार प्रदर्शन आयोजित किया गया।
इस कार्यक्रम में अखिल भारतीय बीमा कर्मचारी संघ के अलावा एलआईसी क्लास-वन ऑफिसर्स एसोसिएशन, एलआईसी पेंशनर्स एसोसिएशन, अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ, बैंक एम्पलॉइज फेडरेशन ऑफ इंडिया, एसबीआई बैंक कर्मचारी संघ (एनसीबीई), बीएसएसआर यूनियन, झारखंड कोल मजदूर यूनियन सहित कई संगठनों के पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने भाग लिया।
इस अवसर पर वक्ताओं ने बीमा कानून (संशोधन) विधेयक, 2025 की कड़ी निंदा करते हुए कामकाजी लोगों, पॉलिसीधारकों और सभी लोकतांत्रिक ताकतों से इस प्रतिगामी और राष्ट्रीय हितों के लिए हानिकारक कानून के विरोध का आह्वान किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए धर्म प्रकाश, संयुक्त सचिव, बीमा कर्मचारी संघ, हजारीबाग मंडल ने कहा कि सरकार द्वारा जनहितैषी भाषा और शब्दावली का उपयोग कर एक ऐसी नीति को वैध ठहराने की कोशिश की जा रही है, जो वास्तव में जनहित को कमजोर करती है। संसद में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत इस विधेयक को चालाकी से “सबका बीमा – सबकी रक्षा (बीमा क़ानूनों का संशोधन) विधेयक 2025” नाम दिया गया है। उन्होंने कहा कि संशोधनों के घोषित उद्देश्य बीमा क्षेत्र की वृद्धि तेज करना, पॉलिसीधारकों की सुरक्षा बढ़ाना, कारोबार में सुगमता लाना तथा विनियामक पारदर्शिता और निगरानी को मजबूत करना बताए गए हैं, किंतु वास्तविक मंशा भारत की बहुमूल्य घरेलू बचत को विदेशी पूंजी के हवाले करने की है। यह विधेयक भारतीय बीमा कंपनियों में, पोर्टफोलियो निवेशकों सहित, 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देने का प्रस्ताव करता है। धर्म प्रकाश ने कहा कि 100 प्रतिशत एफडीआई से न तो भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ होगा और न ही बीमाधारकों को। इससे केवल विदेशी पूंजी को देश की घरेलू बचत पर अधिक नियंत्रण मिलेगा। वर्तमान में 74 प्रतिशत एफडीआई सीमा निजी क्षेत्र के विकास में कोई बाधा नहीं है। वास्तविकता यह है कि बीमा क्षेत्र में 74 प्रतिशत एफडीआई सीमा के मुकाबले केवल 32.67 प्रतिशत ही विदेशी निवेश हुआ है।
उन्होंने आगे कहा कि एफडीआई सीमा 74 प्रतिशत किए जाने के बाद जीवन बीमा क्षेत्र में केवल चार कंपनियों—फ्यूचर जेनराली लाइफ, एजियास, एविवा और क्रेडिट एक्सेस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी—ने ही इस सीमा का उपयोग किया है। विदेशी पूंजी अधिक मुनाफे की तलाश में आती है, इसलिए 74 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति देने का कोई औचित्य नहीं है।
वक्ताओं ने कहा कि एलआईसी और सार्वजनिक क्षेत्र की सामान्य बीमा कंपनियों ने कठिन आर्थिक परिस्थितियों में भी बेहतर प्रदर्शन किया है, जिससे भारत की बीमा पैठ विकसित देशों के बराबर दिखाई देती है। सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत करना चाहिए, न कि कमजोर। अखिल भारतीय बीमा कर्मचारी संघ ने बीमा क्षेत्र में एफडीआई बढ़ाने और आईआरडीए को अत्यधिक शक्तिशाली बनाए जाने के फैसले का कड़ा विरोध करते हुए इसे वापस लेने की मांग की।
इस कार्यक्रम में अनुराग मुर्मू, विजय कुमार, उमानाथ झा, कुमकुम वाला, वर्मा, राजेश कुमार उपाध्याय, रोशन कुमार, सुश्री श्वेता, राजेश कुमार, अजय कुमार के के, कुटुंब विकास पांडे, अंशु कुमारी सिंघानिया, प्रभास कुमार शर्मा, राजा राम, सबा परवीन, अनिल कुमार वर्मा, नीतीश कुमार गुप्ता, प्रीतम कुमार मेहता, गौरव कुमार सिंह, माहेश्वरी वर्मा, सुनील कुमार वर्मा, संजय कुमार शर्मा, प्रदीप कुमार, प्रदीप प्रसाद, घनश्याम साव, पंकज कुमार, बीएसएसआर यूनियन के मृदुल कांति दास, अभिजीत डान, पेंशनर्स एसोसिएशन के संत कुमार रॉय, रविन्द्र सिंह, बिकास कुमार सरकार, बीबी लाल, एसबीआई के अभिषेक कुमार सहित बड़ी संख्या में कर्मचारी उपस्थित थे।
