डिजिटल भ्रमजाल के बीच अधिकारों की नई जंग और तंत्र की कसौटी

Advertisements

डिजिटल भ्रमजाल के बीच अधिकारों की नई जंग और तंत्र की कसौटी

राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस : औपचारिकता या संकल्प ?
हर साल 24 दिसंबर को हम ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस’ मनाते हैं। यह वही ऐतिहासिक तारीख है जब 1986 में उपभोक्ताओं को पहली बार कानूनी संरक्षण का कवच मिला था। लेकिन आज, लगभग चार दशक बाद, जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो एक यक्ष प्रश्न सामने खड़ा होता है-क्या यह दिवस केवल एक सरकारी औपचारिकता बनकर रह गया है या वास्तव में यह भारतीय ग्राहक के सशक्तीकरण का उत्सव है? आज का ग्राहक 1986 का ग्राहक नहीं है जो केवल ‘मिलावटी राशन’ या ‘कम वजन’ से जूझ रहा था।

आज का ग्राहक एक ‘डिजिटल नागरिक’ है और उसका शोषण अब तराजू के बाट से नहीं, बल्कि एल्गोरिदम (Algorithm),आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)और डेटा के खेल से हो रहा है। शोषण का बदलता स्वरूप: ‘डार्क पैटर्न’ और अदृश्य बेड़ियांबाजार का चरित्र बदल चुका है। ई-कॉमर्स और डिजिटल पेमेंट की सुविधा के साथ-साथ शोषण के नए और जटिल तरीके सामने आए हैं। आज ग्राहकों को ‘डार्क पैटर्न’ (Dark Patterns) के जरिए फंसाया जा रहा है—जहां वेबसाइट्स जानबूझकर ऐसा डिज़ाइन बनाती हैं कि ग्राहक न चाहते हुए भी सामान खरीद ले या कोई सब्सक्रिप्शन ले ले।फ्लैश सेल की नकली जल्दबाजी, ‘ड्रिप प्राइसिंग’ (अंत में छिपे हुए शुल्क जोड़ना), और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स द्वारा भ्रामक विज्ञापन—ये आज के शोषण के हथियार हैं। डेटा गोपनीयता (Data Privacy) का उल्लंघन अब सामान्य बात हो गई है। हम मुफ्त ऐप्स के बदले अपनी निजता बेच रहे हैं, और हमारी ही पसंद-नापसंद का इस्तेमाल हमारे खिलाफ विपणन युद्ध में किया जा रहा है।केंद्रीय कानून सशक्त, पर प्रशासन नतमस्तक क्यों? भारत सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 लागू कर एक क्रांतिकारी कदम उठाया। इसमें केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) का गठन, भ्रामक विज्ञापनों पर दंड, और ई-कॉमर्स के लिए कड़े नियम शामिल हैं। कागज पर यह कानून दुनिया के बेहतरीन कानूनों में से एक है।लेकिन विडंबना यह है कि कानून की धार को प्रशासन की ‘उदासीनता’ ने कुंद कर दिया है।आयोगों में रिक्तियां: जिला और राज्य उपभोक्ता आयोगों में जजों और सदस्यों के पद महीनों खाली रहते हैं। ‘तारीख पे तारीख’ की संस्कृति ने उपभोक्ता अदालतों को भी दीवानी अदालतों जैसा सुस्त बना दिया है।बुनियादी ढांचे का अभाव: डिजिटल इंडिया के दौर में भी कई उपभोक्ता फोरम फाइलों के अंबार और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं।ई-दाखिल की जटिलता: घर बैठे शिकायत दर्ज करने की ‘ई-दाखिल’ व्यवस्था अभी भी आम ग्रामीण ग्राहक की समझ और पहुंच से दूर है।जब प्रशासन का तंत्र ही सुस्त हो, तो एक अकेला ग्राहक विशाल कॉर्पोरेट कंपनियों से कैसे लड़ सकता है?आशा की किरण: कुछ ऐतिहासिक निर्णयइन तमाम अंधेरों के बीच न्यायपालिका और कुछ आयोगों ने उम्मीद के दीये जलाए हैं। हाल के वर्षों में कुछ बेहतरीन निर्णय आए हैं:सेवा शुल्क (Service Charge): रेस्टोरेंट द्वारा जबरन सर्विस चार्ज वसूलने को ‘अनुचित व्यापार व्यवहार’ माना गया।बिल्डर-बायर्स संघर्ष: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि फ्लैट देने में देरी होने पर बिल्डर को मुआवजा देना ही होगा, और एकतरफा एग्रीमेंट मान्य नहीं होंगे। मेडिकल नेग्लिजेंस: अस्पतालों को जवाबदेह ठहराते हुए भारी मुआवजे के आदेश दिए गए हैं।
ये निर्णय सिद्ध करते हैं कि यदि ग्राहक धैर्य के साथ लड़े, तो जीत संभव है। समाज और ग्राहक संगठनों की भूमिका: केवल नारा नहीं, ‘दबाव समूह’ बनना होगाराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस की सार्थकता तभी है जब हम इसे ‘जागरूकता सप्ताह’ से आगे ले जाएं। अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत जैसे संगठनों की भूमिका आज और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। हमें केवल शिकायत केंद्र नहीं बनना है, बल्कि एक ‘नीतिगत दबाव समूह’ (Policy Pressure Group) के रूप में उभरना होगा।
सामूहिक कार्रवाई (Class Action): अब समय आ गया है कि छोटे-छोटे नुकसान के लिए अलग-अलग लड़ने के बजाय, ‘क्लास एक्शन सूट’ के माध्यम से बड़ी कंपनियों को जवाबदेह ठहराया जाए।डिजिटल साक्षरता: संगठनों को अब गांवों में जाकर केवल कानून नहीं, बल्कि डिजिटल सुरक्षा और साइबर ठगी से बचने के उपाय भी सिखाने होंगे।नैतिकता का आग्रह: समाज को यह समझना होगा कि ‘बिल मांगना’ केवल अधिकार नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण में योगदान है। टैक्स चोरी रोकना भी ग्राहक धर्म है।
निष्कर्ष : औपचारिकता या संकल्प?अगर राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस केवल सेमिनार करने, माला पहनाने और भाषण देने तक सीमित रह गया, तो यह उन करोड़ों ग्राहकों के साथ अन्याय होगा जो न्याय की आस में बैठे हैं।सरकार के लिए यह दिवस अपने तंत्र (System) के ‘ऑडिट’ का दिन होना चाहिए—कि आखिर मामले पेंडिंग क्यों हैं? और हम ग्राहकों के लिए यह दिवस ‘संकल्प’ का दिन होना चाहिए—कि हम अपनी चुप्पी तोड़ेंगे। याद रखिए, एक जागरूक ग्राहक ही एक ईमानदार बाजार और विकसित राष्ट्र की नींव रखता है। शोषण का विरोध करना केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी है।”जागो ग्राहक जागो” अब केवल नारा नहीं, बल्कि डिजिटल युग में अस्तित्व बचाने की चेतावनी है।
बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में, जहां ग्रामीण आबादी अधिक है, वहां नकली दवाओं, खाद-बीज में मिलावट और बैंकिंग सेवाओं में गड़बड़ी की समस्याएं विकराल हैं। यहाँ प्रशासन की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि वे पटना या रांची के एसी कमरों से निकलकर प्रखंड स्तर तक उपभोक्ता संरक्षण को पहुंचाएं।

लेखक शिवाजी क्रांति अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के क्षेत्र संगठन मंत्री हैं।

Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial
Scroll to Top