बिरसा मुंडा जी के शोषण मुक्त समाज की कल्पना

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बिरसा मुंडा जी के शोषण मुक्त समाज की कल्पना

बिरसा मुंडा जी के शोषण मुक्त समाज की कल्पना आज भी संघर्ष की राह पर है हम चाह कर भी जनता को उनके मौलिक अधिकार का सुख नहीं दे पाए। आज भी जीवन जीने के न्यूनतम आवश्यकताओं के लिए जन समुदाय संघर्ष कर रहा है। इस चिंता को अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत (एबीजीपी) के दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो समाज में आर्थिक समानता का ना होना और एक दूसरे के शोषण करने की प्रवृत्ति का हावी होना भी एक महत्वपूर्ण कारक नजर आता है। झारखंड के सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य में बिरसा मुंडा का शोषण-मुक्त समाज की स्थापना ग्राहक पंचायत की दृष्टि से भी झारखंड की एक आवश्यकता है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि

“उलगुलान” केवल विद्रोह नहीं था, वह एक सामाजिक चेतना थी—शोषण, अन्याय और असमानता के विरुद्ध एक संवेदनशील जन आंदोलन था।

बिरसा मुंडा ने जिस “शोषण-मुक्त समाज” की कल्पना की थी, वह आज के उपभोक्तावादी समाज में भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी 19 वीं सदी में थी। उनका संघर्ष केवल जमींदारी और अंग्रेजी शासन के खिलाफ नहीं था, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में न्याय, समानता और स्वावलंबन की स्थापना के लिए था।

दिनकर जी ने भी कहा था कि

“शांति नहीं तब तक जब तक

सुख भाग न नर का सम हो,

नहीं किसी को बहुत अधिक हो

नहीं किसी को कम हो ।”

देखा जाये तो ग्राहक पंचायत का मूलभूत दर्शन और भगवान बिरसा मुंडा की सोच की दिशा और दृष्टिकोण बिल्कुल एक है।

अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत का मूल मंत्र “ग्राहकः एव राजा” है और बिरसा मुंडा की सामाजिक चेतना दोनों ही जनसत्ता, अधिकार और जागरूकता के स्तंभों पर आधारित हैं।

बिरसा मुंडा ने जीवन के हर स्तर पर शोषण के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। आज झारखंड में ग्राहक भी एक ऐसे ही शोषण तंत्र से जूझ रहा है—चाहे वह महंगे दामों पर मिलावटी सामान हो या मुनाफाखोरी, घटिया सेवा, नकली उत्पाद, या डिजिटल धोखाधड़ी।

“झारखंड के उपभोक्ताओं की आज की स्थिति चिंताजनक है। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की भारी कमी है। उपभोक्ता अधिकारों के बारे में जानकारी का अभाव है। मूलभूत आवश्यकताओं में मिलावट, जैसे राशन, दूध, दवा, खाद-बीज आदि में व्यापक शोषण देखने को मिलता है। आदिवासी समुदाय, जो बिरसा मुंडा की विरासत को आगे बढ़ाते हैं, सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। उनके संसाधनों का दोहन, बाजार में ठगी और जानकारी का अभाव उनके आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी शोषण को गहरा करता है।

अब यह प्रश्न उठ सकता है कि

बिरसा मुंडा के विचारों को ग्राहक पंचायत कैसे आगे बढ़ा सकती है? इसके लिए न्यायसंगत बाजार व्यवस्था की स्थापना करनी होगी क्योंकि बिरसा मुंडा “समानता” के पक्षधर थे। ग्राहक पंचायत भी मुनाफाखोरी और भेदभावपूर्ण मूल्य निर्धारण के खिलाफ कार्य कर रही है। हर वर्ग को गुणवत्तायुक्त, सही दाम पर वस्तुएं मिलें, यही उसका लक्ष्य है।

स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना भी आवश्यक है। बिरसा ने स्वदेशी जीवनशैली और प्रकृति के अनुरूप जीवन को महत्व दिया। ग्राहक पंचायत स्थानीय उत्पादों, पारंपरिक ज्ञान और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भरता की दिशा में कार्य कर सकती है।

शिक्षा और जागरूकता अभियान जारी रखना होगा। बिरसा ने समाज को जगाया था। ग्राहक पंचायत भी झारखंड में उपभोक्ता शिक्षा को मिशन के रूप में ले रही हैं , विद्यालयों, पंचायतों, बाजारों और आदिवासी क्षेत्रों में जन-जागरूकता फैलाकर।

शोषण के विरुद्ध संगठनात्मक शक्ति को एकजुट होना होगा। बिरसा मुंडा ने जनसंगठन खड़ा किया था। ग्राहक पंचायत भी ग्राहकों का ऐसा संगठित मंच है जो प्रशासन, उत्पादक और व्यापारियों के समक्ष उपभोक्ताओं के अधिकारों की आवाज बुलंद करता है।

नव झारखंड की ओर अग्रसर होना है तो बिरसा मुंडा की प्रेरणा से ग्राहक पंचायत की दिशा को अंगीकार करना ही होगा।

आज झारखंड को एक ऐसे जन आंदोलन की आवश्यकता है जो शोषण के आधुनिक रूपों उपभोक्ता ठगी, डिजिटल धोखाधड़ी, अनियंत्रित मूल्य वृद्धि, मिलावट और कॉर्पोरेट वर्चस्व के विरुद्ध संगठित हो।

अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत इस भूमिका को निभाने में सक्षम है,

क्योंकि वह न केवल एक संस्था है बल्कि जनजागरण पर आधारित सामाजिक आंदोलन है। यह एक ऐसा उलगुलान है, जो ग्राहकों को राजा बना सकता है, और बाजार को सेवा का माध्यम।

लेखक : शिवाजी क्रांति 

अखिल भरतीय ग्राहक पंचायत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र (बिहार, झारखंड) के संगठन मंत्री

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