भारत की गरम और भू-गतिकीय रूप से अस्थिर भूमंडलीय संरचना पर व्याख्यान अंतरराष्ट्रीय भूवैज्ञानिक डा.ओपी पांडेय ने कहा- 2.57 अरब वर्ष पुराना क्रिस्टलीय आधार चट्टानों से बना है, जिन पर तीव्र तापमान, दबाव और भू-रसायनिक बदलावों का असर पड़ा है

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भारत की गरम और भू-गतिकीय रूप से अस्थिर भूमंडलीय संरचना पर व्याख्यान

अंतरराष्ट्रीय भूवैज्ञानिक डा.ओपी पांडेय ने कहा-
2.57 अरब वर्ष पुराना क्रिस्टलीय आधार चट्टानों से बना है, जिन पर तीव्र तापमान, दबाव और भू-रसायनिक बदलावों का असर पड़ा है

डीजे न्यूज, धनबाद: आईआईटी (आईएसएम) धनबाद में मंगलवार को सौ वर्षीय व्याख्यान श्रृंखला के तहत अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भूवैज्ञानिक डॉ. ओ.पी. पांडे ने भारत की असामान्य रूप से गरम और भू-गतिकीय रूप से अस्थिर भूमंडलीय संरचना (लिथोस्फीयर) पर अपना व्याख्यान दिया।

कार्यक्रम की शुरुआत प्रो. सौमेन मैती, विभागाध्यक्ष, अनुप्रयुक्त भूभौतिकी विभाग ने अतिथि वक्ता का बायोनोट पढ़कर परिचय कराते हुए की। व्याख्यान में प्रो. सौरभ दत्ता गुप्ता, प्रोफेसर-इन-चार्ज (इंटरनेशनल रिलेशंस एवं एलुमनाई अफेयर्स), प्रो. मोहित अग्रवाल, प्रो. उपेंद्र कुमार सिंह सहित कई शिक्षक, शोधार्थी और छात्र मौजूद थे।

अपने व्याख्यान में डॉ. पांडे ने भारतीय शील्ड की जटिल संरचना के बारे में नए वैज्ञानिक निष्कर्ष साझा किए। उन्होंने हालिया भूभौतिकीय अध्ययन और गहरे वैज्ञानिक ड्रिलिंग—खासकर 617 मीटर गहरे केएलआर-1 बोरहोल (किलारी भूकंप क्षेत्र) से मिले डेटा के आधार पर बताया कि भारत का 2.57 अरब वर्ष पुराना क्रिस्टलीय आधार चट्टानों से बना है, जिन पर तीव्र तापमान, दबाव और भू-रसायनिक बदलावों का असर पड़ा है।

उन्होंने कहा कि मेंटल से आए हाइड्रोथर्मल द्रवों से हुई मेटासोमैटिज्म प्रक्रिया के कारण इन चट्टानों की भूकंपीय गति लगभग 15% तक कम हो जाती है, जिससे धरातलीय संरचना कमजोर होती है और भूकंप बनने की संभावना बढ़ती है।

व्याख्यान का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह था कि भारत के नीचे स्थित लिथोस्फीयर–एस्थेनोस्फीयर सीमा (LAB) असामान्य रूप से सिर्फ 100 किमी की गहराई पर पाई गई है, जबकि दुनिया के अन्य प्राचीन भूभागों में यह औसतन 250–350 किमी तक गहरी होती है। उन्होंने बताया कि इतनी उथली LAB भारत की लिथोस्फीयर को अत्यधिक गरम, पतला और भूकंपीय रूप से अस्थिर बनाती है।

आईआईटी (आईएसएम) के एलुमनस रहे डॉ. पांडे ने अपने दीर्घ शोध कार्य—हीट फ्लो, लिथोस्फीयर विकास, प्राचीन भू-घटनाओं और महाद्वीपीय संरचना—से जुड़े कई अहम बिंदु भी साझा किए।

कार्यक्रम में मौजूद शिक्षकों और शोधार्थियों ने इस व्याख्यान को अत्यंत उपयोगी, रोचक और ज्ञानवर्धक बताया। उन्होंने कहा कि यह व्याख्यान संस्थान की सौ वर्षीय यात्रा के दौरान उच्च स्तरीय वैज्ञानिक संवाद को बढ़ावा देने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

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