अतीत की यादों में खो गया जोगता हरित उद्यान का अस्तित्व, कोयला खनन की होड़ ने निगली वन्य प्राणियों की जिंदगी

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अतीत की यादों में खो गया जोगता हरित उद्यान का अस्तित्व, कोयला खनन की होड़ ने निगली वन्य प्राणियों की जिंदगी

डीजे न्यूज, कतरास (धनबाद):

बीसीसीएल के मोदीडीह कोलियरी अंर्तगत जोगता हरित उद्यान । भले ही कोयला खनन के बढ़ते दायरा के कारण आज उद्यान का नामोनिशान मिट गया है, लेकिन लोगों के जेहन में अतीत की यादों की तरह अभी भी बसा हुआ है।

आइए विश्व पर्यावरण दिवस पर आपको जोगता हरित उद्यान से रूबरू कराते हैं।

कोयला खनन जोगता हरित उद्यान और उसमें रह रहे वन्य जीव के लिए घातक साबित हुआ। उचित देखभाल के अभाव में एक-एक कर वन्य प्राणियों ने दम तोड़ दिया। वहीं कोयला उत्खनन के लिए जंगल की हुई कटाई से उद्यान का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। इस उद्यान की भूमि में आउटसोर्सिंग के जरिए कोयला खनन हुआ था।

तत्कालीन पीओ ने नींव रखी थी

बीसीसीएल के मोदीडीह कोलियरी अंर्तगत जोगता फायर प्रोजेक्ट एरिया के तत्कालीन पीओ केके मल्होत्रा के प्रयास से जोगता हरित उद्यान की नींव रखी ग ई थी। करोड़ों रुपए खर्च कर अग्नि प्रभावित क्षेत्र में मिट्टी डालकर आग पर काबू पाया गया था। इसके बाद जमीन को समतल किया गया।

आकर्षण का केंद्र था जोगता हरित उद्यान

जमीन को समतल करने के बाद बड़े भू-भाग में हजारों पौधे लगाकर इसे न सिर्फ पार्क का रूप दिया गया बल्कि हिरण उद्यान व गुलाब उद्यान के रूप में विकसित किया गया। तालाब का भी निर्माण कराया गया। उस समय यहां हिरण, खरगोश, सांप, बंदर बिलायती चूहा बहुतायत में थे, जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र था। तालाब में मत्स्य पालन भी किया जाता था।

पिकनिक मनाने जुटती थी भीड़

जोगता हरित उद्यान के आकर्षण का आलम यह था कि जनवरी माह में यहां पिकनिक मनाने वालों का तांता लगा रहता था। कालांतर में वर्ष 2007-08 में कोयला खनन करने की गतिविधियां तेज हुई और पेड़ों की कटाई शुरू की ग ई। जानवरों की उचित रखरखाव प्रभावित होने लगा। अंततोगत्वा कोयला उत्पादन की जिम्मेवारी आउटसोर्सिंग कंपनी को दी ग ई और हरित उद्यान का नामोनिशान मिट गया।

वर्तमान में खुली खदान और ओबी का पहाड़

वर्तमान में यहां सिर्फ खुली खदान, ओबी के पहाड़ का ही दृश्य नजर आता है। विकास को रफ्तार देने के चक्कर में भले ही पेड़ों की कटाई कर दी ग ई, लेकिन दुबारा यहां इस तरह की उद्यान की स्थापना व पौधरोपण करना जरुरी नहीं समझा गया।

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