आदिवासी संस्कृति, भाषा और अधिकारों पर हो रहे हमलों के विरोध में हो रहे संघर्ष में सभी तबकों को साथ आना होगा

Advertisements

आदिवासी संस्कृति, भाषा और अधिकारों पर हो रहे हमलों के विरोध में हो रहे संघर्ष में सभी तबकों को साथ आना होगा
बगोदर में हूल दिवस पर विचार गोष्ठी और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन
डीजे न्यूज, बगोदर(गिरिडीह) : हूल दिवस के अवसर पर सोमवार को खोरठा जन भाषा केंद्र, बगोदर की ओर से +2 उच्च विद्यालय बगोदर में “झारखंड में सामाजिक सांस्कृतिक एकता और हूल दिवस की प्रासंगिकता” विषयक विचार गोष्ठी सह सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत हूल क्रांति के महानायक सिद्दू, कान्हू, चांद, भैरव, फूलो और झानो के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित कर की गई।
कार्यक्रम की शुरुआत में भूगोल के शिक्षक अरविंद कुमार पटेल ने “गांव छोड़ब नाहीं, जंगल छोड़ब नाहीं” गीत प्रस्तुत कर माहौल को क्रांतिकारी ऊर्जा से भर दिया।
इस अवसर पर खोरठा जन भाषा केंद्र द्वारा शोध कार्य में उत्कृष्ट योगदान देने वाले तीन विशिष्ट शिक्षकों
डॉ. रमेश कुमार (मगध विश्वविद्यालय, बोधगया)
अभिषेक कुमार (विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग)
प्रो. सुधीर कुमार राम (विनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय, धनबाद)
को सम्मानित किया गया। सम्मानित अतिथियों में वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह, जनमत पत्रिका के संपादक केके पांडेय और एसोसिएट प्रोफेसर प्रेम शंकर शामिल थे।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह ने कहा, “हूल विद्रोह आज भी प्रासंगिक है क्योंकि यह हर प्रकार की गुलामी और शोषण के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है। हमें आदिवासी संस्कृति, भाषा और अधिकारों पर हो रहे हमलों का विरोध करना होगा और समाज के सभी तबकों को इस संघर्ष में साथ आना होगा।”
के. के. पांडेय ने कहा, “सिद्दू-कान्हू ने जिस ‘अबुआ राज, अबुआ दिशोम’ की कल्पना की थी, वह आज भी अधूरी है। वर्तमान विकास मॉडल आदिवासियों और प्रकृति दोनों के खिलाफ है। हमें इस विद्रोह को याद कर प्रकृति और समता मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए।”
डॉ. रमेश कुमार ने हूल क्रांति को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की प्रथम संगठित क्रांति बताते हुए कहा, “1855 में साल की टहनी के जरिए संचार क्रांति शुरू हुई थी, जिसे 1857 की क्रांति में कमल और रोटी ने आगे बढ़ाया। गांधीजी का ‘करो या मरो’ का नारा भी हूल से प्रेरित है।”
प्रो. सुधीर कुमार राम, गौतम मंडल, देवेंद्र यादव, शिशिर कुमार सहित कई शिक्षकों ने अपने विचार रखे और हूल आंदोलन की वैचारिक एवं ऐतिहासिक गहराई पर चर्चा की।
सांस्कृतिक कार्यक्रम में झारखंडी रंग
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में छात्राओं द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने सभी को झूमने पर मजबूर कर दिया।
उत्क्रमित +2 उच्च विद्यालय, खम्भरा की छात्राओं — पूजा, खुशबू, पुष्पा, प्रियंका, प्रीति, यशोदा, अंजू आदि ने “मोर सुन्दर झारखंड” और मधु मंसूरी के गीत “नागपुर कर कोरा पर” पर सुंदर नृत्य प्रस्तुत किया।
घाघरा इंटर साइंस कॉलेज की छात्राएं आरती टुडू, प्रमिला टुडू, कौशल्या टुडू ने संथाली गीत “देलांग देलांग लहा ते देलांग” प्रस्तुत कर मन मोह लिया।
कारवां टीम के गायक लालमोहन महतो ने “झारखंड के माटी के रंग जोहार” और “जंगल जमीन पर करा आपन अधिकार” गीत से कार्यक्रम को ऊर्जावान बना दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सहायक अध्यापक संघ के अध्यक्ष नारायण महतो ने की, जबकि संचालन शिक्षक अरविंद कुमार पटेल ने किया।
प्रमुख उपस्थिति
हेमलाल महतो, विवेक मंडल, सुधीर कुमार महतो, देवेंद्र कुमार यादव, गौतम कुमार मंडल, शंकर दयाल, भागीरथ महतो, गिरधारी महतो, लखन महतो, भीम महतो, मनोज कुमार, राजेश रविदास, कौलेश्वर महतो, बासुदेव विद्यार्थी, लालमोहन महतो, पूनम मंडल, रेखा कुमारी, प्रीति यादव, रिंकी कुमारी, विद्या कुमारी, सपना कुमारी, लक्ष्मी कुमारी, पूजा कुमारी, गुड़िया कुमारी, काजल कुमारी समेत सैकड़ों विद्यार्थी, शिक्षक और प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित रहे।
कार्यक्रम ने हूल क्रांति की विरासत को नमन करते हुए शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक चेतना के संकल्प को फिर से मजबूत किया।

Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial
Scroll to Top