आस्था व विश्वास का प्रतीक है सवालडीह का उग्र चंडी काली मंदिर, वार्षिक पूजनोत्सव 20 को, तैयारी अंतिम चरण में

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आस्था व विश्वास का प्रतीक है सवालडीह का उग्र चंडी काली मंदिर,

वार्षिक पूजनोत्सव 20 को, तैयारी अंतिम चरण में

डीजे न्यूज, कतरास(धनबाद): बाघमारा प्रखंड के कुमारजोरी पंचायत अंर्तगत सवालडीह गांव में स्थापित उग्र चंडी मां काली मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था व विश्वास का प्रतीक है। मान्यता है कि यहां जो भक्त सच्चे मन से मुरादें मांगते हैं मां अवश्य उनकी मनोकामना पूरी करती हैं। यूं तो हर अमावस्या को यहां पूजा का आयोजन किया जाता है, लेकिन कार्तिक अमावस्या की रात सवालडीह में भव्य पूजनोत्सव का आयोजन होता है। 20 अक्टूबर सोमवार की रात होने वाले वार्षिक पूजनोत्सव में सवालडीह के अलावा पतराकुल्ही, चैनपुर, देवग्राम, वैद्यनवाडीह, रामपुर, कंचनपुर, पासीटांड़, मलकेरा, कपुरिया, टाटा सिजुआ, धनबाद के श्रद्धालुओं की भीड़ यहां जुटती है। पूजनोत्सव की तैयारी को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

यहां कब से मां काली की पूजा हो रही इसका सही-सही पता किसी को नहीं है, लेकिन ग्रामीणों के मुताबिक सवालडीह निवासी पूर्वज घनश्याम सुपकार ने ताल बागड़ा की झोपड़ी बनाकर पूजा शुरू की थी। उस समय इलाका जंगलों से घिरा हुआ था। कालांतर में यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया।

प्रतिमा निर्माण
मां काली की प्रतिमा का निर्माण मलकेरा निवासी भुवनेश्वर कुंभकार करते हैं। पहले उनके पूर्वज मूर्ति बनाया करते थे।

दंडवत प्रणाम करने की परंपरा
सोमवार को आयोजित होने वाले पूजनोत्सव में दोपहर से ही श्रद्धालुओं का मंदिर आना-जाना शुरू हो जाता है। उपवास में रहकर महिला-पुरुष व बच्चे सवालडीह के तालाबों में स्नान कर जमीन में लेटकर दंडवत प्रणाम करते हुए मां काली के दरबार पहुंचते हैं। दंडवत प्रणाम करते हुए ही मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। मां के दरबार में शीश नवाकर सुख, शांति व समृद्धि की कामना करते हैं। सवालडीह गांव के ब्राह्मण (सुपकार) परिवार के द्वारा पूजा संपन्न कराया जाता है।

पाठा बलि की प्रथा

पूजनोत्सव की रात यहां पाठा बलि की प्रथा है। सबसे पहले टाटा सिजुआ 12 नंबर के दिवंगत कालीपद महतो (काली मुंशी) के परिजनों की ओर से उपलब्ध कराई गई पाठा की बलि दी जाती है। यह परंपरा काली मुंशी के पूर्वजों के समय से चली आ रही है। इसे चक्षु दान का पाठा कहा जाता है। इसके बाद पतराकुल्ही फिर आसपास गांव के पाठा की बलि दी जाती है।

मेला का आयोजन

पूजनोत्सव के दौरान यहां दो दिनी मेला का भी आयोजन किया जाता है।

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