

अच्छी मानसिक सेहत के लिए सकारात्मक सोच, पर्याप्त नींद, संतुलित भोजन, व्यायाम और समय-समय पर विश्राम जरूरी
मानसिक बीमारियां, जैसे डिप्रेशन, एंग्जायटी, तनाव व याददाश्त की कमजोरी उतनी ही गंभीर हैं जितनी अन्य शारीरिक बीमारियां
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर विशेष
आलिया तहसीन, धनबाद : विश्व भर में 10 अक्टूबर को मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। पहली बार इसकी घोषणा 1992 में विश्व मानसिक स्वस्थ महासंघ के तत्कालीन महासचिव रिचर्ड हंटर ने की थी। इसी साल 10 अक्टूबर को पहली बार विश्व मानसिक स्वस्थ दिवस के रूम में मनाया गया था। तभी से प्रत्येक साल यह दिवस मनाया जाता है।
इसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाना और लोगों में मानसिक बीमारियों को लेकर बनी गलत धारणाओं को दूर करना था।
2025 में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day)का थीम है
“Access to Services–Mental Health in Catastrophes and Emergencies” (सेवाओं तक पहुँच-आपदाओं और आपात स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य)
मानसिक स्वास्थ्य का सीधा संबंध हमारी सोच, भावनाओं और व्यवहार से है। यह हमारे जीवन का वह पहलू है जो यह तय करता है कि हम तनाव का सामना कैसे करते हैं। दूसरों के साथ किस तरह के संबंध बनाते हैं और रोजमर्रा के फैसले कितनी समझदारी से लेते हैं। जिस प्रकार शारीरिक स्वास्थ्य के बिना इंसान कमजोर पड़ जाता है, उसी तरह मानसिक स्वास्थ्य की मजबूती के बिना जीवन असंतुलित हो जाता है। समाज में अक्सर मानसिक बीमारी को नजरअंदाज किया जाता है, क्योंकि बहुत से लोग इसे बीमारी नहीं बल्कि एक कमजोरी समझते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि मानसिक बीमारियाँ, जैसे अवसाद (डिप्रेशन), चिंता (एंग्जायटी), तनाव (स्ट्रेस) या याददाश्त की कमजोरी आदि, उतनी ही गंभीर हैं जितनी अन्य शारीरिक बीमारियाँ। इनका इलाज समय पर न किया जाए तो व्यक्ति के जीवन और कामकाज दोनों पर बुरा असर पड़ता है।
मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए सबसे पहले हमें यह स्वीकार करना होगा कि मानसिक समस्याएँ आम हैं और कोई भी इनका सामना कर सकता है। अच्छी मानसिक सेहत के लिए सकारात्मक सोच, पर्याप्त नींद, संतुलित भोजन, व्यायाम और समय-समय पर विश्राम बहुत जरूरी है। इसके अलावा, अपनी भावनाओं को साझा करना और जरूरत पड़ने पर मनोवैज्ञानिक या काउंसलर की मदद लेना कमजोरी नहीं, बल्कि समझदारी की निशानी है।
बच्चों और युवाओं में मानसिक तनाव का बढ़ना आज एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। पढ़ाई का दबाव, सामाजिक तुलना और डिजिटल जीवनशैली ने उनके मन पर गहरा असर डाला है। माता-पिता और शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों की मानसिक स्थिति को समझें, उनसे खुलकर बात करें और उन्हें यह एहसास दिलाएं कि वे अकेले नहीं हैं।
एक स्वस्थ समाज के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति सबसे जरूरी है। मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ डॉक्टरों का नहीं, बल्कि हर इंसान का विषय है। जब तक हम मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य जितनी ही अहमियत नहीं देंगे, तब तक समाज सच्ची तरक्की हासिल नहीं कर पाएगा।
