प्रेमचंद जयंती पर विचार गोष्ठी का आयोजन
प्रेमचंद जयंती पर विचार गोष्ठी का आयोजन
अभिनव संस्था ने मनाई प्रेमचंद जयंती
डीजे न्यूज, गिरिडीह : अभिनव साहित्यिक संस्था की ओर से सोमवार देर शाम महान उपन्यासकार प्रेमचंद की 143वीं जयंती मनाई गई। शहर के अशोकनगर स्थित सुमन वाटिका में आयोजित जयंती समारोह के अवसर पर विचार गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मौजूद साहित्य प्रेमियों और लेखकों ने सर्वप्रथम प्रेमचंद की तस्वीर पर पुष्प चढ़ाकर श्रद्धा सुमन अर्पित किया।
प्रेमचंद साहित्य में यथार्थवाद विषय पर आयोजित परिचर्चा क संचालन युवा लेखक लवलेश वर्मा ने किया। परिचर्चा की शुरुआत में आलोक रंजन ने धनबाद के लेखक डॉ महेंद्र नाथ गोस्वामी का आलेख पढ़कर सुनाया। परिचर्चा में भाग लेते हुए लेखक राजेश कुमार पाठक ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में यथार्थ के रूप में समाज में व्याप्त विभिन्न विसंगतियां दिखती हैं जो आज भी मौजूद हैं। लेकिन प्रेमचंद साथ ही एक आदर्श भी प्रस्तुत करते हैं, उसी आदर्श की पुनर्स्थापना करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने कहा कि अब प्रेमचंद से आगे की भी बात होनी चाहिए। लेखक और हिंदी शिक्षक डॉ विनय कुमार ने प्रेमचंद की कई कहानियों और उपन्यासों के पात्रों को रेखांकित करते हुए तत्कालीन समाज में व्याप्त जातिगत एवं अन्य असंतुलन एवं उससे उपजे कई ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने विशेषकर प्रेमचंद की अंतिम कहानी कफन और अंतिम उपन्यास गोदान की चर्चा की। समीक्षक शंकर पांडेय ने कहा कि प्रेमचंद का पूरा साहित्य सामंतवाद के खिलाफ उद्घोषणा है। उन्होंने कहा कि उत्कृष्ट साहित्य अपने समय के यथार्थ का आईना होता है और प्रेमचंद साहित्य भी हमें आदर्श समाज निर्माण करने की सीख देता है। पत्रकार आलोक रंजन ने कहा कि स्कूली जीवन में ही प्रेमचंद की लिखी ठाकुर का कुआं और बड़े घर की बेटी जैसी उत्कृष्ट कहानियों ने मन पर ऐसा असर डाला है कि उसका प्रभाव आज तक बना हुआ है। उन्होंने उपस्थित साहित्य प्रेमियों से साहित्यिक भ्रमण करने की बात कही और इसकी शुरुआत प्रेमचंद के गांव लमही से ही करने का सुझाव रखा। अभिनव संस्था के अध्यक्ष डॉ छोटू प्रसाद चंद्रप्रभ ने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में अगर किसी को आगे बढ़ना है तो प्रेमचंद को साथ लेकर चलना ही होगा। उन्होंने प्रेमचंद साहित्य में यथार्थवाद को वस्तुनिष्ठ नजरिए से देखने की बात कही। उन्होंने कहा कि तत्कालीन समाज में जो शब्दावली प्रचलित थी और जो लेखक ने देखा उसे ही अपने साहित्य में उतार दिया। आज वर्तमान समय में कई जातिगत एवं पेशागत संबोधन से लेखक परहेज करते हैं, लेकिन इसके कारण किसी भी पुराने साहित्य में उस लेखक के मूल शब्दों को नहीं बदलना चाहिए। क्योंकि कोई भी साहित्य उस समय का दस्तावेज होता है। कार्यक्रम के अध्यक्ष उदय शंकर उपाध्याय ने प्रेमचंद को आदर्शवादी लेखक बताया। उन्होंने कहा कि समाज में असमानता हमेशा थी और रहेगी। उसी स्थिति में हमें बेहतर मनुष्य बनने की सीख प्रेमचंद साहित्य देता है। कार्यक्रम के अंत में अभिनव के सचिव रीतेश सराक ने धन्यवाद ज्ञापन किया।