
गुरुजी ने एक ऐसी समानांतर सरकार बनाई जो न सिर्फ व्यवस्था चलाती थी बल्कि विकास का अपना मॉडल भी पेश करती थी
तरूण कांति घोष, धनबाद : आज झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जिस राज्य की कमान संभाल रहे हैं, उसकी राजनीतिक नींव दशकों पहले उनके पिता और झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन ने डाली थी, वह भी अनोखे अंदाज़ में। 1970 के दशक में, भूमिगत रहते हुए, शिबू ने गिरिडीह और धनबाद जिले में एक ऐसी समानांतर सरकार बनाई, जो न सिर्फ व्यवस्था चलाती थी बल्कि विकास का अपना मॉडल भी पेश करती थी। उस दौर में उन्होंने शराबबंदी, सामूहिक खेती और रात्रि पाठशाला जैसे कदम उठाकर एक मिसाल कायम की थी।
ऐसी थी समानांतर सरकार का ढांचा
1972 में संयुक्त बिहार की कांग्रेस सरकार के समय शिबू ने अपनी “सरकार” खड़ी की। खुद मुख्यमंत्री की भूमिका में रहते हुए उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में गृह व उत्पाद मंत्री गांडेय के बसंत पाठक, कृषि मंत्री जामताड़ा के झगरू पंडित, और शिक्षा मंत्री टुंडी के राजेंद्र तिवारी को शामिल किया। विधानसभा अध्यक्ष थे टुंडी के कोशवा टुडू और महामंत्री थे कीनू मांझी।
शराबबंदी से लेकर खेती और शिक्षा तक
शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लागू करना इस सरकार का पहला बड़ा फैसला था। शराबियों को शारीरिक और आर्थिक दंड दिया जाता था। नतीजतन पूरा क्षेत्र शराब मुक्त हो गया—यह प्रयोग बिहार में नीतीश कुमार की शराबबंदी से कई दशक पहले का था।
खेती में शिबू ने सामूहिक मॉडल अपनाया
बंजर ज़मीन को उपजाऊ बनाकर आधुनिक तकनीक से खेती कराई गई। रात्रि पाठशालाओं के माध्यम से निरक्षर आदिवासियों को पढ़ना-लिखना सिखाया गया। इन प्रयासों ने ग्रामीण समाज में शिक्षा और जागरूकता की लहर पैदा की।
आंदोलन और विकास का संगम
शिबू की समानांतर सरकार महज राजनीतिक विरोध का प्रतीक नहीं थी, बल्कि यह विकास का एक ऐसा मॉडल थी जिसमें आंदोलन और समाज सुधार एक साथ चलते थे। शिक्षा मंत्री रहे राजेंद्र तिवारी का कहना है कि अगर मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने पिता के इस मॉडल को आगे बढ़ाएं, तो झारखंड में वास्तविक परिवर्तन संभव है।
अब बेटे के हाथों में झारखंड की कमान
2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो गठबंधन की जीत के बाद हेमंत सोरेन ने 29 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यह संयोग ही है कि जिस राज्य के लिए उनके पिता ने भूमिगत रहकर समानांतर सरकार चलाई, आज उसी राज्य की वैधानिक सरकार उनके बेटे के हाथों में है।