
दारोगा किचिंगिया ने शिबू को भूमिगत जीवन से निकालकर मुख्यधारा में कराया था शामिल
गांव-गांव माइक से गुरुजी की सुनवाई गई थी अपील कि कोई कानून व्यवस्था हाथ में नहीं ले
संजीत तिवारी, टुंडी(धनबाद) : झारखंड आंदोलन के इतिहास में एक नाम हमेशा याद किया जाएगा बी. किचिंगिया। 70 के दशक में जब पारसनाथ के जंगलों में भूमिगत रहकर शिबू सोरेन आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, तब उन्हें मुख्यधारा की राजनीति में लाने का सबसे बड़ा श्रेय इसी दारोगा को जाता है। तत्कालीन टुंडी थाना प्रभारी किचिंगिया ने संवैधानिक दायरे में रहते हुए शिबू को न केवल सरेंडर के लिए तैयार किया, बल्कि जेल जाने के बाद भी इलाके में शांति बनाए रखने की मिसाल पेश की।
किचिंगिया बाद में डीएसपी बनकर रिटायर्ड हुए थे।
वरिष्ठ अधिवक्ता देवी शरण सिन्हा के अनुसार, किचिंगिया और शिबू के बीच मित्रवत संबंध थे। उस समय टुंडी के पलमा में शिबू के एक इशारे पर हजारों आदिवासी जुट जाते थे। इसी दौरान धनबाद के तत्कालीन डीसी केबी सक्सेना ने शिबू से मिलने का निर्णय लिया और किचिंगिया उन्हें पलमा पहाड़ तक लेकर गए। कई दौर की बातचीत के बाद शिबू ने सरेंडर का फैसला किया। देवी शरण सिन्हा ने बताया कि प्रशासन को आशंका थी कि अगर यह खबर फैली कि शिबू को गिरफ्तार किया गया है, तो आदिवासी समाज भड़क सकता है। ऐसे में किचिंगिया ने शिबू से लिखित में सरेंडर की पुष्टि करवाई और टेप रिकॉर्डर में उनकी अपील भी रिकॉर्ड कराई, जिसमें शिबू ने लोगों से कानून को हाथ में न लेने की बात कही। यह अपील पुलिस ने गांव-गांव माइक से सुनवाई, जिससे शिबू के जेल जाने के बाद भी टुंडी की विधि-व्यवस्था नहीं बिगड़ी।