
मिदनापुर की लोक कलाकार विजोली मुर्मू ने पारंपरिक संथाली नृत्य से किया मंत्रमुग्ध
हूल दिवस समर्पित है उन वीर सपूतों को जिन्होंने जल-जंगल-जमीन की रक्षा में अपनी जान न्योछावर कर दी
टुंडी के पण्डुगरी में हूल दिवस पर संथाली संस्कृति का भव्य उत्सव
डीजे न्यूज, टुंडी(धनबाद) : हूल क्रांति की गूंज एक बार फिर सुनाई दी जब सोनोत संथाल समाज द्वारा सोमवार को टुंडी प्रखंड के पण्डुगरी गांव स्थित सिद्धू-कान्हू स्मारक के समक्ष हूल दिवस पर एक भव्य सांस्कृतिक एवं स्मृति कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत स्मारक पर माल्यार्पण और पूजा-अर्चना के साथ हुई, जिसमें समिति के पदाधिकारियों और अतिथियों ने वीर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल के सलमानी थाना अंतर्गत पश्चिमी मिदनापुर से आए लोक कलाकार विजोली मुर्मू ने अपने पारंपरिक संथाली नृत्य से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने हूल दिवस के महत्व पर बोलते हुए कहा, यह दिन समर्पित है उन वीर सपूतों को जिन्होंने जल-जंगल-जमीन की रक्षा में अपनी जान न्योछावर कर दी। आज की पीढ़ी को इन महान बलिदानों की कहानी जाननी चाहिए, और ऐसे आयोजनों से ही यह परंपरा जीवित रहती है।
आयोजन में संथाली अस्मिता की झलक
कार्यक्रम में सोनोत संथाल समाज के केंद्रीय सचिव अनिल टुडू, रमेश टुडू, जिला परिषद सदस्य दिव्या बास्की, मुखिया सोनदी मंझियांन, गुरुचरण बास्की, अध्यक्ष लखींद्र हांसदा, सचिव किशुन हांसदा, श्यामल किस्कू, शहादत अंसारी, बबलू टुडू, राजेश हांसदा, हराधन हांसदा, मानेल मुर्मू, महेंद्र टुडू, राम मुर्मू, कालीपद मुर्मू, शहजाद अंसारी सहित बड़ी संख्या में समाज के बुद्धिजीवी, कार्यकर्ता व ग्रामीण उपस्थित रहे।
ग्रामीणों की ऐतिहासिक भागीदारी
सिद्धू-कान्हू स्मारक समिति के सदस्यों के साथ-साथ आसपास के सैकड़ों गांवों से हजारों की संख्या में पुरुष और महिलाएं कार्यक्रम में शामिल हुए। पारंपरिक पोशाकों में सजे-संवरे संथाल समुदाय के लोगों ने अपनी संस्कृति और पहचान को गर्व के साथ प्रस्तुत किया।
एकता, जागरूकता और सम्मान का संदेश
हूल दिवस पर आयोजित यह कार्यक्रम न केवल शहीदों को श्रद्धांजलि देने का माध्यम बना, बल्कि सांस्कृतिक एकता, सामाजिक जागरूकता और ऐतिहासिक स्मृति को संजोने का सशक्त मंच भी साबित हुआ। कार्यक्रम में हर पीढ़ी के लोगों ने भाग लिया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि सिद्धू-कान्हू की विरासत आज भी जन-जन के हृदय में जीवित है।
कार्यक्रम का समापन संकल्प के साथ हुआ कि जल, जंगल, जमीन और संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष और जागरूकता की यह मशाल निरंतर जलती रहेगी।