कहीं ले न डूबे यह लापरवाही

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संपादकीय

ओमिक्रॉन वैरिएंट के बढ़ते मामलों ने विभिन्न राज्य सरकार व स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड.े लोगों की चिंता बढ़ा दी है। टी.वी, अखबार, साॅशल मिडिया जहां भी देखें कोरोना की भयावह तस्वीरों को दर्शाती खबरें भरी पड़ी हैं। यही नहीं जगह-जगह लगे बैनर पोस्टर लोगों से चीख-चीखकर मास्क लगाने को बोल रहे हैं। पर कई ऐसे लोग हैं जिनके कान में जूं तक नहीं रेंग रहा। बिना मास्क लगाये सड़कों पर घूमना अपनी शान समझ रहे हैं। जब मास्क लगाना ही मुश्किल है तो ऐसे लोगों के लिए साॅशल डिस्टेंसिंग के नियमों के पालन की बात बेमानी होगी। ऐसे में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इनकी लापरवाही दूसरों को भी लेकर डूब सकती है।

आम तौर खुद की करनी खुद ही भरनी पड़ती है। पर कोरोना संक्रमण के मामले में खुद की गलती का खामियाजा पूरे परिवार को भुगतना पड़ सकता है। एक छोटी सी गलती पूरे परिवार को तबाह कर सकती है।एक छोटी सी गलती पूरे परिवार को तबाह कर सकती है। यही नहीं विभिन्न सब्जी मंडियों या बाजार में उमड़ रही भीड. संक्रमण का सुपर स्प्रेडर बन सकती है। लोगों को समझना चाहिए कि खरीददारी के क्रम में कहीं ऐसा न हो कि सामान लाने के साथ.साथ संक्रमण भी घर ले आयें। रेल में हो या बस में या फिर बाजार में कोरोना के नियमों की धज्जिया उड़ते आसानी से देख सकते हैं। वैसे भी कुछ लोग मिल जायेंगे जो मास्क तो लगाये मिलेंगे पर मास्क मुहं, नाक को कवर न करते हुए ठोढ़ी में लटका रहता है। लोगों को समझने की जरूरत है कि मास्क लगाने से ये किसी पर अहसान नहीं कर रहे हैं बल्कि खुद व अपने परिवार की रक्षा कर रहे हैं।

यह अच्छी बात है कि मामलों में सुधार की खबरें सामने आ रही हैं पर अभी भी जागरूक रहने की जरूरत है। सबकुछ सही मान कर बेपरवाह हो जाना बीमारी को निमंत्रण देने के बराबर होगा। तो जरूरत है संभलने की। अब तक जो नहीं कर रहे थे वह अब भूल जाइये। मास्क को एक अभिन्न अंग बनाइये तथा साॅशल दूरी का पालन करिये जिससे आप तो सुरक्षित रहेंगे ही हम सब अर्थात परिवार व समाज सुरक्षित रहेगा।

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