दुःखहरणनाथ धाम: मनोकामना को ले यहां पहुंचते हैं शिवभक्त

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दीपक मिश्रा 

दुःखहरणनाथ धाम, एक ऐसा धाम जहां लोग इस उम्मीद के साथ पहुंचते हैं कि यहां मत्था टेकते ही उनका दुःख समाप्त हो जायेगा। गिरिडीह जिला मुख्यालय से लगभग लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर उसरी नदी तट पर स्थित इस मंदिर में दूर-दूर से भक्तगण पूजोपासना करने पहुंचते हैं। खास कर सोमवार को यहां भारी भीड़ उमड़ती है। कोलाहल से दूर इस शांत वातावरण में असीम शांति की अनुभूति होती है।

गिरिडीह जिला मुख्यालय से इस धाम की दूरी लगभग आठ किलोमीटर की है। जैसे आप गिरिडीह से धनबाद की ओर बढ़ते हैं लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर बायीं तरफ एक अलग मार्ग मिलता है। इस स्थल पर एक प्रवेश द्वार बना हुआ है। इस मार्ग में प्रवेश करते ही आपको कई फैक्ट्रियां मिलेगी । आपको आगे बढते जाना है फैक्ट्रियों का क्षेत्र समाप्त होते ही मंदिर का दर्शन होने लगता है। शांत क्षेत्र में यह मंदिर स्थित है। यह आस्था व विश्वास है कि लोग दूर दराज क्षेत्रों से इस स्थल पर अपनी मनोकामना लेकर आते है।

यहां का माहौल पूरी तरह शांत है। यह अलग बात है कि सावन मास, शिवरात्रि व अन्य खास अवसरों पर भारी भीड होती है। पर आमतौर पर यहा का माहौल शांतिपूर्ण होता है। मंदिर के ठीक सामने ही उसरी नदी बहती है। इस नदी  तक पहुंचने के लिए पक्की सीढ़ी बनायी गयी है। सीढी के दोनों किनारे लगे कतारबद्ध अशोक के पेड़ काफी सुहावने हैं। मंदिर परिसर में जहां एक ओर भगवान शिव का मंदिर है वहीं ठीक उसके सामने माता पार्वती का मंदिर है। इसके अलावा मंदिर परिसर में कई अन्य देवी देवताओं का भी मंदिर है। बताया जाता है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है। शिवभक्त पूरी आस्था व भक्तिभाव से अपनी मनोकामना को ले यहां पूजा अर्चना करने पहुचते हैं। प्रत्येक सोमवार के अलावा सावन पूर्णिमा व महाशिवरात्रि जैसे विशेष अवसरों पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

सुविधा बहाल के लिए कई लगा चुके हैं गुहार

दुःखहरणनाथ धाम आस्था का केन्द्र है पर श्रद्धालुओं के लिए सुविधा का नाम की कोई भी चीज नहीं है। यहां की सबसे बड़ी समस्या शौचालय की है। शौचालय के अभाव में श्रद्धालुओं को खुले में शाैच जाने की विवशता है। खासकर महिलाओं के लिए यह सबसे बड़ी समस्या है। स्नान करने के बाद वस्त्र बदलने के लिए भी महिलाओं को कोई सुविधा नही है। इसके अलावा शौचालय नहीं होने के कारण उसरी नदी प्रदूषित हो रही है और बालु का उठाव भी खुले तौर पर चल रहा है। जिसके कारण नदी का अस्तित्व खतरे में है। उस क्षेत्र में कई फैक्ट्री वातावरण को प्रदूषित कर रखा है। बाबा दुखहरणनाथ मंदिर में प्रतिवर्ष सैकड़ों विवाह होती है। लेकिन विवाह में आए बरातियों के रहने बैठने के लिए पानी की कोई सुविधा नहीं है। अंधेरा होने के बाद सभी को मंदिर से जाना पड़ता है। यहां के पंडीत भी रुकना उचित नहीं समझते हैं।

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