कौन यकीन करेगा कि उनका बैंक बैलेन्स शून्य था

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कौन यकीन करेगा कि उनका बैंक बैलेन्स शून्य था

कॉमरेड एके राय का अंतिम समय तक इलाज करने वाले धनबाद के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ सुनील सिन्हा के कलम से

“हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है !

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा !!”

… अल्लामा इक़बाल

 

कौन यकीन करेगा कि उनका बैंक बैलेन्स शून्य था? लेकिन यह एक हक़ीकत है। तीन बार विधायक और तीन बार सांसद रह चुके कॉमरेड एके राय के पास न कोई कार, न बंग्ला कुछ भी नहीं था। उन्होंने न कभी वेतन लिया और न पेंशन। पेंशन की राशि राष्ट्रपति कोष में डालने की स्वीकृति दे दी।

शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी महतो के साथ झारखंड के संस्थापकों में से एक कॉमरेड एके राय ने जब धनबाद में कदम रखा, उस वक्त चारों ओर केवल माफिया का बर्चस्व था। जहां के गरीब आदिवासी, सूदखोर महाजनों के हाथों परेशान थे। चारों ओर गुण्डागर्दी का साम्राज्य था।आसान काम नहीं था इनके खिलाफ शोषितों पीड़ितों को संगठित करना।

 

इंक़लाब आएगा रफ़्तार से मायूस न हो,

बहुत आहिस्ता नहीं है जो बहुत तेज नहीं

 

… अली सरदार जाफ़री

 

लेकिन धनबाद जिले में राय बाबू और साथियों के नेतृत्व में आंदोलन ने करीब 40 साल तक वहां के कोल माफियाओं और गाँवों के सूदखोर महाजनों की नींद हराम कर दी।

सफेद कुर्ता, तंग पैजामा, टायर का चप्पल, सफेद रंग की दाढ़ी में कुछ काले बाल, साथ में एक कपड़े का झोला; मार्क्सवाद-लेनिनवाद और भारतीय संस्कृति में गहरी आस्था। ताऊम्र उनके सह-योद्धा (comrade-in-arms) रहे कॉमरेड एस के बक्सी मजाकिया लहजे में उन्हें गांधीवादी संत कहते थे।

जब भी उनकी तबीयत खराब होती, बक्सी दा का फोन आता और हम उन्हें देखने जाते थे। यह मेरा सौभाग्य रहा कि उनके पास बैठकर उनसे बहुत सारे सवालों पर गुफ़्तगू करते और उनसे सीखा। झोपड़ीनुमा बिहार कोलियरी कामगर यूनियन के ऑफिस में निवास। ऑफिस में एक टेबुल, दो कुर्सी और कुछ किताबें. ऑफिस की स्वयं सफाई करना, चटाई पर सोना, खाने में मुख्य भोजन सत्तू. कार्यक्रमों में पैदल जाना और दर्जनों गांव पैदल ही घूम जाते थे। जहां पर खड़े होते थे वहीं गरीब मजदूर किसानों की भीड़ लग जाती थी।

 

क्रांति के लिये जुनून और दुस्साहस दोनों जरूरी है -अर्नेस्टो चे ग्वेरा

 

क्रांति कोई फूलों का सेज नहीं। एक गजब का अनुशासन, साहस, संकल्प और विश्वास से लबरेज थे कॉमरेड राय।

उन्होंने कई किताबें लिखी- ‘आजादी की लड़ाई अब मजदूर वर्ग को ही लड़नी है’, ‘नयी जन-क्रान्ति’, ‘मनमोहन सिंह के भारत में भगत सिंह की खोज’, ‘धर्म और राजनीति’, ‘साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, अलगाववाद की समस्या पर एक मार्क्सवादी विवेचन’ ‘योजना और क्रांति’, ‘झारखण्ड और लालखण्ड’, ‘बिरसा से लेनिन’ और ‘नयी दलित क्रांति’ आदि।

मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति है उसका जीवन। मनुष्य को जीवन केवल एक बार मिलती है। उसे यह जीवन इस तरह जीना चाहिए कि अंतिम क्षण आने पर वह कह सके, “मैंने अपना समस्त जीवन, अपनी समूची शक्ति को, संसार के श्रेष्ठतम कर्तव्य की पूर्ति के लिए, मानवता की मुक्ति के लिए अर्पित किया है। … निकोलाई आस्त्रोवस्की के उपन्यास अग्नि-दीक्षा (How the steel was tempered) से उद्धरित

 

आज जब भारतीय राजनीति सबसे निम्नतम स्तर पर है, ऐसे वक्त में कोयला खदान के दहकते अंगारों से निकल कर हीरा की तरह चमकते वामपंथी आंदोलन के सितारे कॉमरेड एके राय जरूर हमें राह दिखाते हैं। लाल सलाम दादा !

डॉ सुनील सिन्हा, प्रसिद्ध चिकित्सक धनबाद

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