. जब बिनोद बाबू को छुड़ाने गिरिडीह जेल का ताला तोड़ने पहुंचे थे शिबू सोरेन 

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... जब बिनोद बाबू को छुड़ाने गिरिडीह जेल का ताला तोड़ने पहुंचे थे शिबू सोरेन 

झामुमो के संस्थापक अध्यक्ष बिनोद बिहारी महतो की पुण्यतिथि पर विशेष 

गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, हजारीबाग से लेकर दुमका तक से हजारों लोग पैदल चलकर पहुंचे थे झंडा मैदान, गैंता-कुदाल और परंपरागत हथियारों से थे लैस 

डीजे न्यूज डेस्क, गिरिडीह : झामुमो के संस्थापक और झारखंड आंदोलनकारी बिनोद बिहारी महतो को बुधवार 18 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि पर गिरिडीह, धनबाद समेत पूरे झारखंड में लोगों ने श्रद्धांजलि दी। जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित कर समर्थकों ने उन्हें याद किया और उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लिया। बिनोद बाबू की पुण्यतिथि पर उनसे जुड़ी गिरिडीह की एक कहानी हम आपके साथ यहां साझा कर रहे हैं। यह कहानी हम उनके दिवंगत पुत्र व गिरिडीह के पूर्व सांसद राजकिशोर महतो की पुस्तक झारखंड आंदोलन के मसीहा बिनोद बिहारी महतो एवं झारखंड आंदोलनकारी शंकर किशोर महतो के साथ बातचीत के आधार पर पेश कर रहे हैं।

बात 70 के दशक की है। बिनोद बाबू एवं झामुमो के संस्थापक महासचिव दिशोम गुरु शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड आंदोलन चरम पर था। संघर्ष में आदिवासियों ने एक महाजन को मार डाला था। इस मामले में झामुमो नेता दुर्गा तिवारी के साथ बिनोद बाबू को भी अभियुक्त बनाया गया था। सो, सरेंडर कर बिनोद बाबू को गिरिडीह जेल जाना पड़ा था। उनके जेल जाने से लोगों में भारी आक्रोश फैल गया था। बिनोद बाबू को अपना धर्म पिता मानने वाले दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने नारा दिया था-जेल का ताला टूटेगा, बिनोद बाबू छूटेगा। तय हुआ कि गिरिडीह के झंडा मैदान में बड़ी सभा होगी। इसके बाद बिनोद बाबू को जेल से छुड़ा लिया जाएगा। तब जेल झंडा मैदान के नजदीक ही था। फिर क्या था-गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, हजारीबाग से लेकर संथालपरगना तक से हजारों लोग जिसमें आदिवासियों की संख्या सर्वाधिक थी पैदल चलकर झंडा मैदान जुट गए। सभी एक ही नारा लगा रहे थे-जेल का ताला टूटेगा, बिनोद बाबू छूटेगा। शंकर किशोर महतो ने बताया कि आदिवासी इतने आक्रामक थे कि वे गैंता-कूदाल लेकर पहुंचे थे। उनकी इच्छा थी कि गुरुजी आदेश दें तो वे जेल की दीवार को तोड़ डालेंगे। शिबू सोरेन ने काफी जोरदार भाषण दिया था। स्थिति यह थी कि पूरा गिरिडीह शहर थम गया था। जिला प्रशासन से लेकर बिहार सरकार तक हिल गई थी। जिला प्रशासन ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बिनोद बाबू को गुप्त रूप से गिरिडीह जेल से सेेंट्रल जेल हजारीबाग भेज दिया। सभा के दौरान यह संदेश पहुंचा दिया गया कि बिनोद बाबू को पहले ही हजारीबाग जेल भेज दिया गया था। आक्रोशित लोगों को जब पता चला कि बिनोद बाबू यहां हैं ही नहीं तो लोग सभा के बाद अपने-अपने घरों को लौट गए। इसके साथ ही प्रशासन ने राहत की सांस ली।

 

हत्या के मामले में बिनोद बाबू हुए थे बरी, झामुमो नेता दुर्गा तिवारी समेत पांच को हुई थी उम्रकैद

 

पूर्व सांसद राजकिशोर महतो की पुस्तक झारखंड आंदोलन के मसीहा बिनोद बिहारी महतो में बताया गया है कि गोमिया प्रखंड के आदिवासी बहुल गांव गोनियाटो में आदिवासियों की जमीन वहां के महाजन कब्जा कर रहे थे। गांव में जाकर आदिवासियों पर फायरिंग किया जा रहा था। आदिवासी भागकर जान बचा रहे थे। इस क्रम में झामुमो नेता दुर्गा तिवारी वहां पहुंचे और मोर्चा संभाल लिया। फिर आदिवासियों की ओर से जवाबी कार्रवाई में तीर चलाया गया। आदिवासियों ने तीर चलाकर वहां के एक वकील के भाई को मार डाला। फिर उसका सिर भी काट डाला। इस कांड में दुर्गा तिवारी के साथ बिनोद बाबू को भी अभियुक्त बनाया गया। इस मामले में अदालत ने लंबी सुनवाई के बाद दुर्गा तिवारी एवं चार आदिवासियों को उम्रकैद की सजा दी वहीं बिनोद बाबू को रिहा कर दिया। सजा के दौरान हजारीबाग जेल में ही चारों आदिवासियों की मौत हो गई जबकि दुर्गा तिवारी पूरी सजा काटकर जेल से रिहा हुए।

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