विज्ञापनों में नल से जल, हकीकत में आज नहीं कल
दीपक मिश्रा : झारखंड सरकार के विज्ञापन दावा करते हैं कि हर घर को जल से नल मिलेगा। आप चार कदम चलेंगे तो सरकार दस कदम चलेगी। पर वास्तविकता इन लुभावनी बातों से ठीक विपरित है। इसका ज्वलंत उदाहरण है बंूद-बूदं को तरसता मधुबन। जैन धर्मावलंबियों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल मधुबन व चिरकी के निवासी पेयजल के लिए पीरटांड़ ग्रामीण पेयजलापूर्ति योजना पर निर्भर हैं। पर बीते बीस दिनों से जलापूर्ति ठप रहने के कारण क्षेत्र में हाहाकार मचा है। अन्य कार्यों की बात तो दूर पीने के पानी के लिए करीब सात हजार की आबादी बूंद-बूंद के लिए तरस रही है। पर विभाग को तो जैसे हलक सूख रहे आमजनों की समस्या से कोई फर्क ही नहीं पड़ता हैं। त्राहीमाम कर रहे लोगों को केवल आश्वासन मिल रहा है।
बताया जाता है कि लगभग सात वर्ष पहले पेयजलापूर्ति के तहत हर घर नल से जल पहुंचाने की कवायद शुरू की गयी थी। शुरूआती दौर में सबकुछ ठीक रहा, ग्रामीणों को सुबह-शाम दोनेां वक्त पानी मिलने लगा। लोगों को यह विश्वास हो गया कि अब उनकी पेयजल समस्या जड़ से दूर हो गयी पर कुछ माह बीतते ही यह विश्वास पानी के बुलबुले की तरह फूट गया। दो वक्त से कम होकर एक ही वक्त मिलने लगा अब तो आलम यह है कि महीने में 15 से 20 दिन पेयजलापूर्ति ठप रहती है।
बीते बीस दिनों से ठप है पानी की आपूर्ति
बीत बीस दिनों से मधुबन में पूर्णरूपेण जलापूर्ति ठप है। बराकर नदी तट में लगे ट्रांसफार्मर का तेल व क्वाइल चोरी हो जाने के कारण जलापूर्ति शुरू नहीं हो पाई है। विभागिय अधिकारियों द्वारा ट्रांसफार्मर दुरूस्त कर लिया गया है ऐसे में संभावना जतायी जा रही है कि एक दो दिनों में लोगों का पानी मिलना शुरू हो जायेगा। इस बाबत मधुबन के स्थानीय निवासी नागेंद्र सिंह का कहना है कि आए दिन कोई न कोई कारण से जलापूर्ति बंद ही रहती है। कभी मशीन खराब रहती है तो कभी बिजली गायब। किसी त्योहार के समय तो पानी मिलता ही नहीं है। ऐसे में प्रशासनिक अधिकारियों को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
समिति का व्यवस्थित संचालन ही समाधान
स्थानीय निवासियों की मानें तो समिति की कार्यशैली ही समस्या का सबसे बड़ा कारण है। आलम यह है कि समिति के अधिकारियों में ही आपसी समन्वय नहीं है। सभी मनमर्जी करते हैं। समस्याओं को गिनाने के बावजूद उस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। ग्रामीण एक स्वर में समिति भंग कर नयी समिति का गठन करने की मांग कर रहे है। ग्रामीणों का मानना है नयी समिति गठित होते ही ससमय उपभोक्ताओं से जलकर संग्रह किया जाय तथा छोटी-माूेटी समस्याओं का तुंरत ठीक करा लिया जाय तो जलापूर्ति कभी ठप नहीे होगी। वहीं वाटर ट्रीटमेंट प्लांट मंे कार्यरत कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें मेहनताना भी समय पर नहीं दिया जा रहा है।
क्या कहते हैं मुखिया
इस पूरे प्रकरण में मधुबन मुखिया निर्मल तुरी का कहना है कि समिति के कोषाध्यक्ष का रवैया ठीक नहीं है। किसी भी बैठक में उपस्थित नहीं होती है और नहीं कभी पूरा हिसाब दिया जाता है। यही कारण है ग्रामीणों को नियमित रूप से पानी नहीं मिल पाता है। आगे कहा कि ट्रांसफार्मर ठीक हो गया है जल्द ही जलापूर्ति बहाल हो जायेगी।
मधुबन के अन्य क्षेत्रों में भी है पानी की समस्या
पीरटांड प्रखंड के कई इलाकों में पेयजल की समस्या व्याप्त है। पंचायत के आदिवासी बहुल क्षेत्र कानाडीह, बैकटपुर, मंडरो आदि गांवों में पेयजल की विकट समस्या उत्पन्न हो गयी है। इस बाबत पाीरटांड़ के सांसद प्रतिनिधि राकेश कुमार ने बताया कि जहां भी जलमीनार खराब है उसे ठीक करने की कोशिश की जा रही है। सासंद, उपायुक्त समेत कार्यपालक अभियंता को पत्र देकर जलमीनार ठीक करने की मांग की है।