सबसे अधिक डेंजर जोन में है आदिवासी भाषाएं, संताली को मिले झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा
डीजे न्यूज, रांची : आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि आज 21 फरवरी अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है जिसे 21 फरवरी 1952 को बांग्ला भाषा के लिए आंदोलनरत विद्यार्थियों को ढाका विश्वविद्यालय, तब पूर्वी पाकिस्तान में पुलिस प्रशासन द्वारा गोलियों से भून दिया गया था। अनेक भाषा प्रेमी आंदोलनकारी विद्यार्थी शहीद हो गए थे। जो उर्दू की जगह बांग्ला भाषा की मान्यता के लिए संघर्षरत थे। उन्हीं की स्मृति में यूनेस्को ने 1999 में यह प्रस्ताव पारित किया कि 21 फरवरी की तारीख को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रुप में मनाया जाए। तत्पश्चात संयुक्त राष्ट्र ने इसको मान्यता दिया। दिवस के पालन की परंपरा अब सर्वत्र हो रहा है। आज दुनिया की लगभग 7000 भाषाओं में से 40% भाषाएं विलुप्ति की कगार पर खड़ी हैं। आदिवासी भाषाएं सर्वाधिक खतरे की जोन में पहुंच चुके हैं। इनको भारत देश और राज्यों में कोई विशेष तवज्जो नहीं दी जाती है। सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति आदिवासी प्रदेश झारखंड की है। हमारी मांग है अविलंब सर्वाधिक बड़ी और राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त आदिवासी भाषा- संताली भाषा को झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा दिया जाय तथा बाकी झारखंडी आदिवासी भाषाओं को 8वीं अनुसूची में शामिल करते हुए समृद्ध किया जाय। दूसरी तरफ आदिवासी समाज को भी खुद अपनी भाषाओं को बचाने, बढ़ाने और समृद्ध करने के सभी उपायों को सार्थक बनाना होगा। चूंकि आदिवासियों के लिए उनकी हासा और भाषा ही लाइफ लाइन ( जीवन रेखा ) है। आदिवासी समाज को विदेशी भाषा, संस्कृति और धर्मों से सावधान होने की भी जरूरत है। संताली भाषा को 22 दिसम्बर 2003 को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के महान उपलब्धि में संताली भाषा मोर्चा का योगदान ऐतिहासिक रहा है। उसमें शामिल सहयोगी सभी आंदोलनकारियों को आज विशेष जोहार।