सांप्रदायिक सौहार्द और एकता की मिसाल है गिरिडीह के खरगडीहा का लंगटा बाबा का समाधि स्थल

0
IMG-20240102-WA0003

सांप्रदायिक सौहार्द और एकता की मिसाल है गिरिडीह के खरगडीहा का लंगटा बाबा का समाधि स्थल

इस बार 25 जनवरी को लगेगा लंगटा बाबा मेला 

हजारों की संख्या में जुटेंगे श्रद्धालु, चादरपोशी कर मांगेंगे मन्नतें

सुधीर सिन्हा, गिरिडीह : गिरिडीह जिले के खरगडीहा लंगटा बाबा समाधि स्थल सांप्रदायिक सौहार्द और एकता की मिसाल है। इनकी ख्याति झारखंड के अलावा विभिन्न राज्यों में भी है। हजारों लोग बाबा की समाधि स्थल पर चादरपोशी के लिए पहुंचते हैं, मन्नतें मांगते हैं। उनकी मुरादें भी पूरी होती है। इस अवसर पर लंगटा बाबा मेला का आयोजन होता है। विभिन्न धर्मों के लोग प्रति दिन माथा टेकने आते हैं। इस वर्ष लंगटा बाबा मेला पौष पूर्णिमा 25 जनवरी को है। आम जनों के साथ साथ प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी मंत्री, सांसद, विधायक व जनप्रतिनिधियों का आगमन होता है। साधु संतो का जमावड़ा लगता है।

 

जमुआ प्रखंड मुख्यालय से सात किमी. दूर देवघर मुख्यमार्ग के किनारे खरगडीहा में स्थित लंगटा बाबा की समाधि पर सभी धर्म के लोगों की अटूट श्रद्धा है। यही वजह है कि प्रति दिन हिन्दू-मुस्लिम, सिख ईसाई सभी धर्माें के लोग यहां आकर माथा टेकते हैं। प्रत्येक वर्ष पौष पूर्णिमा के दिन यहां भक्ति व आस्था का जन सैलाब उमड़ पड़ता है। विभिन्न राज्यों के श्रद्धालु चादरपोशी करने यहां पहुंचते हैं। काल जयी संत लंगेश्वरी बाबा उर्फ लंगटा बाबा ने वर्ष 1910 में महासमाधि में प्रवेश किया था। तब से लेकर अब तक बाबा के भक्तों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। लंगटा बाबा के खरगडीहा आगमन के बारे में कहा जाता है कि 1870 के दशक में नागा साधुओं की एक टोली के साथ वे यहां पहुंचे थे। उस वक्त खरगडीहा परगना हुआ करता था। कुछ दिन के पड़ाव के बाद नागा साधुओं की टोली अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गयी, लेकिन एक साधु खरगडीहा थाना परिसर में ही नंगधडंग अवस्था में धुनी रमाये बैठा रहा। कालांतर में अपने चमत्कारिक गुणों के कारण यही साधु लंगटा बाबा के नाम से विख्यात हुआ। बाबा की अद्भुत शक्तियों के बारे में बताया जाता है कि एक दिन एक कुत्ता इनके पास आया उसका शरीर जख्मों से भरा हुआ था। शरीर से बह रहे मवाद को देखकर उन्होंने उसके पास कुछ फेंका और कहा ले महाराज तें भी खाले। उसके बाद कुत्ता पूरी तरह निरोग हो गया। लंगेश्वरी बाबा सिर्फ पीड़ित मानवता के लिए ही नहीं बल्कि समस्त प्राणियों के लिए दया की मूर्ति थे। उनके समय में एक बार खरगडीहा में भंयकर रूप से प्लेग रोग फैला। लोग अपने अपने घरों को छोड़कर भागने लगे। बाबा के सेवक भी भागने की तैयारी में थे। तभी उन्होंने कहा देखो घर दवाओं से भरा है। इसके बाद क्षेत्र में प्लेग रोग समाप्त हो गया था। कहते हैं कि श्रद्धालुओं से प्राप्त खाने पीने या अन्य सामानों को उनके स्वीकार करने के तरीके भी नायाब थे। बाबा जिसे स्वीकार नहीं करते उसे ठंढी करो महाराज की आज्ञा के साथ एक कुएं में फेंकवाते थे। वह कुआं आज भी समाधि परिसर में है। वर्ष 1910 में पौष पूर्णिमा के दिन जीव आत्माओं के साधक संत लंगटा बाबा ने अपना भौतिक शरीर का त्याग किया था। इस वक्त क्षेत्र के हिन्दू एवं मुसलमानों को ऐसा लग रहा था कि उनका सब कुछ लुट गया। बाबा के शरीर के अंतिम संस्कार के लिए भी दोनों समुदाय के लोग आपस में उलझ पड़े थे। बताते हैं कि तब क्षेत्र के प्रबुद्ध लोगों ने विचार विमर्श के बाद दोनों धर्म के रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया था। उसके बाद से प्रत्येक वर्ष पौष पूर्णिमा के दिन यहां मेला लगता है। मेला में उमड़ने वाली भीड़ को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि पीडि़त मानवता की रक्षा करने वाले संत आज भी आमजनों के हृदय में जीवित हैं।

इस खबर को शेयर करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *