सरना कोड के लिए भाजपा को विश्वास में लेना जरूरी : सालखन
डीजे न्यूज, रांची : आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि विधायक चमरा लिंडा के नेतृत्व में 16 फरवरी को आदिवासी अधिकार महारैली, पांच मार्च झारखंड बचाओ महारैली और बंधन तिग्गा के नेतृत्व वाली 12 मार्च की सरना धर्म कोड महारैली कई मामलों में सफल रहा है। आदिवासी समाज को अपने अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी को बचाने की नियत से की गई सभी रैलियां निश्चित आदिवासी समाज को उर्जा प्रदान किया है। इसके केंद्र में प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड की मांग, मरंग बुरू (पारसनाथ पहाड़) को जैनों की कैद से मुक्त करना, कुरमी को एसटी नहीं बनने देना, आदिवासी हितों में प्रदत संविधान- कानून को लागू करना आदि प्रमुख मुद्दे थे। यह सभी मुद्दे अहम हैं। इन अहम आदिवासी मुद्दों के लिए भीड़ और जन जागरण ठीक-ठाक रहा। परंतु क्या नेतृत्व के पास सफलतामूलक रणनीति और संदेश की झलक दिखाई दिया? शायद नहीं।
भारतीय जनतंत्र में सभी अहम मुद्दों का हल राजनीति में निहित है। अतः सरना धर्म कोड यदि हर हाल में 2023 में लेना है तो केंद्र की भाजपा सरकार को मजबूर करना ही होगा। जिसके लिए – “सरना कोड दो, आदिवासी वोट लो” जैसे नारे के साथ भाजपा को विश्वास में लेना होगा। संयुक्त तत्वावधान में जल्द अनिश्चितकालीन रेल-रोड चक्का जाम जैसे कार्यक्रम भी लेने होंगे। अन्यथा सब कुछ बेकार साबित हो सकता है। भाजपा से दूरी बनाना या उसके खिलाफ यूपीए (झामुमो प्लस कांग्रेस) का साथ लेना अर्थात सरना कोड चाहने वालों के साथ धोखेबाजी ही साबित होना है। सरना कोड के अलावा दूसरे नाम से प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए धर्म कोड मांगना भी धर्म कोड आंदोलन को कमजोर करना है। “सरना कोड नहीं तो वोट नहीं” के पीछे भी भाजपा विरोधी मानसिकता है। वोट के बहिष्कार से कोई लाभ नहीं होगा। चूँकि बाकी तो वोट देंगे ही। यह नकारात्मक रणनीति है, संविधान और लोकतंत्र विरोधी भी है। फिलवक्त तमाम आदिवासी वोट को सरना धर्म कोड को हासिल करने में उपयोग करना जरूरी है। किसी पार्टी विशेष के साथ बेवजह चिपकना भी गलत है। फिलहाल यदि 2023 में सरना धर्म कोड लेना है तो एक ही विकल्प है- भाजपा। मगर जो आदिवासी विदेशी भाषा- संस्कृति और धर्म से जुड़े हैं या प्रभावित हैं या राजनीतिक वोट बैंक के लिए मजबूर हैं, वे वास्तव में सरना धर्म कोड के नाम पर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। भाजपा का विरोध कर निजी या पार्टी स्वार्थ में यूपीए के साथ चलना चाहते हैं। ऐसे लोग डिलिस्टिंग के प्रस्ताव का भी विरोध करते हैं।
अतएव समय कम है, सरना कोड चाहने वाले सभी छोटे-बड़े संगठनों के नेतृत्व और जनता को एकजुट होकर भाजपा की केंद्र सरकार को विश्वास में लेना ही होगा और निर्णायक दबाव बनाने हेतु जल्द संयुक्त रूप से अनिश्चितकालीन रेलरोड चक्का जाम का घोषणा करना होगा। आदिवासी जनता तैयार है। नेतृत्व को राजनीति और रणनीति दोनों पर समझदारी और दूरदर्शिता का परिचय देना होगा अन्यथा जनता के साथ धोखा और सब कुछ बेकार साबित हो सकता है। सेंगेल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा है। सेंगेल ने सरना धर्म कोड की मान्यता हेतु 11 फरवरी को 5 प्रदेशों में जोरदार रेलरोड चक्का जाम किया था। अब सेंगेल बाकी सभी संगठनों के साथ मिलकर अनिश्चितकालीन रेलरोड चक्का जाम के लिए तैयार हैं। सरना धर्म कोड आंदोलन की सफलता आदिवासियों के अस्तित्व रक्षा की गारंटी है। इस सामाजिक आंदोलन को अब राजनीतिक तड़का लगाए बगैर सफल बनाना असंभव है।