बंदियो के मौलिक अधिकार से नही किया जा सकता है वंचित

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डीजे न्यूज, गिरिडीह:
सेंट्रल जेल में रविवार को मासिक लोक अदालत सह कानूनी जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें कई लंबित मामलों को लाया गया। तकनीकी कारणों से एक ही बंदी की रिहाई हो पाई। एसडीजेएम के न्यायालय में लंबित था। बंदी इस दौरान बंदियो को कानून की जानकारी देते हुए एसडीजेएम श्रुति सोरेन ने कहा कि सभी बंदियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना न्याय प्रशासन एवं कारा प्रशासन का दायित्व है। नालसा और झालसा के मार्गदर्शन में प्रत्येक माह विचाराधीन बंदियों के लिए जेल अदालत का आयोजन किया जाता है ताकि उन बंदियों को कानूनी प्रावधानों के तहत उनके मामलों का निष्पादन कर लाभ प्रदान किया जा सके। उन्होंने बंदियों को प्रदान किए जाने वाले विभिन्न विधिक सहायता के बारे में बतते हुए कहा कि काराधीन बंदियों के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम समय-समय पर चलाए जा रहे हैं।जिनके माध्यम से उन बंदियों को उचित विधिक सहायता प्रदान की जाती है। इसी के तहत प्रत्येक महीने जेल अदालत का आयोजन किया जाता है। जिला विधिक सेवा प्राधिकार के माध्यम से कारा में संसीमित बंदियों को निरंतर विधिक सहायता उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बंदियों के बीच से ही पारा लीगल वॉलिंटियर्स की नियुक्ति की गई है जो निरंतर बंदियों के संपर्क में रहकर उनकी समस्याओं को कारा प्रशासन के माध्यम करते हैं। वैसे बंदीगण जो स्वयं के खर्च पर अपना अधिवक्ता रख पाने में असमर्थ हैं, उन्हें जिला विधिक सेवा प्राधिकार के पैनल से निःशुल्क अधिवक्ता उपलब्ध कराया जाता है।जो उनके केस में संबंधित न्यायालय में निरंतर पैरवी करते हैं। उनके इन मामलों की निरंतर मॉनिटरिंग भी जिला विधिक सेवा प्राधिकार, गिरिडीह के माध्यम से की जाती है।जेलर प्रमोद कुमार ने काराधीन बंदियों को संबोधित करते हुए कहा कि जो बन्दी शिक्षा चाहते हैं।आगे पढ़ने की इच्छा है।जो केस का कारण नही हो पाया है।वे सीधे जेल प्रशासन से मिले।उन बंदियो को उच्च शिक्षा दिलाया जाएगा।साथ ही बंदियो के उसके संवैधानिक अधिकार को हर हाल में बरकरार रखा जाएगा।जेल मेनुअल के अनुसार उन्हें सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है।

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