सरना धर्म कोड की प्रधानमंत्री उलिहातू में 15 को करें घोषणा : सलखन
सरना धर्म कोड की प्रधानमंत्री उलिहातू में 15 को करें घोषणा : सलखन
डीजे न्यूज, जमशेदपुर : आदिवासी सेंगेल अभियान की कोर कमेटी ने ऑल इंडिया संताली एजुकेशन काउंसिल (aisec) के प्रांगण करनडीह, जमशेदपुर में सरना धर्म कोड जनसभा रांची की समीक्षा की। जिसकी पुष्टि विभिन्न राज्यों में कार्यरत सेंगेल के 174 नेताओं के साथ संध्या को प्रतिदिन चालू जूम मीटिंग में की गई। इसकी जानकारी आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने दी। उन्होंने बताया कि बैठक में
निम्न प्रमुख फैसले लिए गए।
रांची के मोरहाबादी मैदान में 8 नवंबर को हुए सरना धर्म कोड जनसभा की रिपोर्ट पर विचार कर इसे ऐतिहासिक सफल बताया गया।
15 नवंबर बिरसा जयंती के दिन प्रधानमंत्री बिरसा के गांव उलिहातू पधार रहे हैं। अतः 15 नवंबर को सभी राज्यों में बिरसा की मूर्ति और अन्य शहीदों के मूर्ति के समक्ष प्रात: 10 बजे से 1 बजे तक अनशन कार्यक्रम रखा जाएगा। प्रधानमंत्री से दो मांगों पर ध्यान आकर्षण किया जाएगा
सरना धर्म कोड देना होगा
आदिवासी राष्ट्र बनाना होगा।
सेंगेल के दो जुझारू नेता कान्हू राम टुडू, सोनुवा प्रखंड, पश्चिम सिंहभूम जिला और चंद्र मोहन मार्डी, पेटरवार प्रखंड, बोकारो जिला, झारखंड ने घोषणा की है कि यदि प्रधानमंत्री 15 नवंबर को उलिहातू में सरना धर्म कोड के मान्यता की घोषणा नहीं करेंगे तो 15 नवंबर को संध्या 4 बजे दोनों आत्मदाह करेंगे। सेंगेल इनकी बलिदानी भावना की सराहना करता है। मगर यह उनका व्यक्तिगत फैसला है।
रांची जनसभा में घोषित निम्न कार्यक्रमों की भी तैयारी तेज करने का फैसला लिया गया
10 दिसंबर : मरांग बुरु ( पारसनाथ पहाड़, मधुबन, गिरिडीह) बचाओ सेंगेल यात्रा।
22 दिसंबर : दुमका में हासा भाषा विजय दिवस मनाना।
30 दिसंबर 2023: सरना धर्म कोड के लिए भारत बंद- रेल रोड चक्का जाम करना।
आदिवासी समाज और उसका धर्म आदि आदिवासी विरोधी राजनीतिक शक्तियों का शिकार बन गया है। जबकि गैर आदिवासी समाज और धर्म अपने हित में राजनीतिक शक्ति का उपयोग करता है। आदिवासी विरोधी राजनीति के लिए अधिकांश आदिवासी नेता, आदिवासी जनसंगठन और आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के अगुआ दोषी हैं। सेंगेल “आदिवासी राष्ट्र” की परिकल्पना के साथ किसी भी पार्टी और उसके वोट बैंक को बचाने की अपेक्षा आदिवासी समाज को बचाने का संघर्ष तेज करेगा। आदिवासी समाज का दुर्भाग्य है कि आदिवासी समाज पर (गलत) राजनीति हावी है जबकि गैर- आदिवासी समाज (सही) राजनीति पर हावी है।