लंगटा बाबा की समाधि स्थल पर शुक्रवार को उमड़ेेगा आस्था का जनसैलाब
सुुधीर सिन्हा, गिरिडीह : लंगटा बाबा समाधि स्थल सांप्रदायिक सौहार्द और एकता का मिसाल है। इसकी ख्याति राज्य के अलावा विभिन्न राज्यों में भी है ,जहां से हजारों की संख्या में लोग बाबा के समाधि स्थल पर चादर पोशी के लिए पहुंचते हैं ,जहां लोग मन्नते मांगते हैं और उनकी मुरादें पूरी होती है। इस अवसर पर लंगटा बाबा मेला का आयोजन होता है। जहाॅ विभिन्न धर्मों के लोग 365 दिन मथा टेकने आते है। जहां पर सुदूरवर्ती क्षेत्रों से लोग पहुंचते हैं। इसके अलावा विभिन्न राज्यों से भी मंत्री ,सांसद, विधायक आदि का आगमन होता है। इस अवसर पर साधु संतों का समागम देखते ही बनता है। काफी दूर-दूर से साधु-संत फकीर बाबा के दरबार में पहुंचते हैं। इस मौके पर भंडारा का आयोजन होता है ,जिसमें बाबा के भक्तों द्वारा सहयोग किया जाता है । विभिन्न विद्यालयों से छात्र-छात्राएं यहां पहुंचती है और भंडारा में अपना योगदान देते हैं। लंगेश्वरी बाबा के मेला के एक दिन पूर्व से ही यहां पर मेला का रूप ले लेता है। कुछ श्रद्धालु एक दिन पूर्व भी बाबा के समाधि स्थल पर चादर पोशी करते देखे जाते हैं ।लंगेश्वरी बाबा और लंगटा बाबा के नाम से अपने भक्तों के बीच विख्यात जीवात्माओं के महान साधक लंगटा बाबा की समाधि साम्प्रदायिक सौहार्द के रूप में विख्यात है। यही वजह है कि यहां सभी धर्म व सम्प्रदाय के श्रद्धालु, चादरपोशी करते हैं और दुआ मन्नत मांगते हैं। गिरीडीह जिले के जमुआ प्रखंड मुख्यालय से करीब सात किमी दुर जमुआ देवघर मुख्य मार्ग के ठीक किनारे खरगडीहा स्थित उसरी नदी के तट पर स्थित लंगटा बाबा की समाधि पर सालों भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। बाबा के समाधि दिवस पौष पूर्णिमा के दिन चादरपोशी के लिए खरगडीहा में भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है। बताया जाता है कि बाबा ने वर्ष 1910 के पौष पूर्णिमा को समाधि लिया था। उसी समय से प्रति वर्ष पौष पूर्णिमा के दिन यहां समाधि पर्व का आयोजन किया जाता है। भंडारा और लंगर चलाकर बाबा की समाधि पर चढ़े चादर का वितरण जरूरत मंदों के बीच किया जाता है। बाबा के बारे में लोग बताते हैं, कि वर्ष 1870 में नागा साधुओं का एक जत्था देवघर जाने के क्रम में खरगडीहा थाना परिसर में विश्राम के लिए रुका था। शेष साधु अपने गंतव्य की ओर कूच कर गए, लेकिन बाबा तत्कालीन अंग्रेज जमाने का थाना और परगना कार्यालय खरगडीहा के अहाते में ही धुनी रमाकर बैठ गये।
बताया जाता है कि खरगडीहा प्रवास के दौरान बाबा अपने तपोबल से पीड़ित मानवता के सेवा शिद्द्त से करते रहे। इतना ही नहीं पशु पक्षियों से भी वे स्नेह करते थे। बाबा की चमत्कारिक किस्सों की एक यह हैं कि खरगडीहा के चप्पे-चप्पे में विधमान है। पूर्णतः नग्न अथवा शरीर पर एक कम्बल ओढ़कर रहने वाले बाबा के पास दूर-दूर से लोग उपहार लेकर आते थे। उपहार में शामिल खाने की वस्तुओं को बाबा पशु-पक्षियों को खिला देते थे, कभी-कभी पुरा उपहार ही समीप के कुएं में डलवाकर भक्त को ठंढी करो महाराज की नसीहत देते थे।
हिन्दू के लिये सिद्ध योगी तो मुसलमान के लिए फकीर थे लंगटा बाबा
हिन्दू के लिये सिद्ध योगी , तो मुसलमान के लिए फकीर थे, लंगटा बाबा अग्रेज अधिकारी भी बाबा के मुरीद थे। हिंदू जहां बाबा को सिद्ध योगी मानकर भक्ति करते थे। वहीं मुस्लिम बाबा को फकीर मानते थे। यही कारण है कि बाबा के समाधिस्थ होने के इतने साल बाद भी हिंदू और मुस्लिम समान रूप से बाबा की पूजा और इबादत करते हैं। 1910 के पौष पूर्णिमा को जब बाबा ने इस नश्वर देह का परित्याग कर महा समाधि में प्रवेश किया तब पुरा इलाका शोकमग्न हो गया था। बाबा को हिंदूओं ने वैदिक रीति से अंतिम संस्कार किया तो मुस्लिम समुदाय ने भी अपने रिवाज के मुताबिक अंतिम विदाई दिया।
झारखंड, बंगाल, बिहार और यूपी से आते हैं श्रद्धालु
बताया जाता है कि पौष पूर्णिमा के दिन यहां झारखंड, बंगाल, बिहार, उड़िसा ओर यूपी के भी श्रद्धालु आते हैं। समाधि पर्व को शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न कराने के लिए प्रशासन के साथ बाबा सेवा समिति के सेवादार मुस्तेद रहते हैं। मान्यता के अनुसार समाधि पर्व के दिन बाबा की समाधि पर पहला चादर जमुआ थाना के थानेदार चढ़ाते है। थानेदार द्वारा चादरपोशी के बाद ही आम भक्त चादरपोशी करते हैं। इस सम्बंध में जानकार बताते हैं कि 1910 में जब बाबा समाधिस्थ हुये थे तब अंतिम संस्कार के दौरान खरगडीहा थाना के तत्कालीन दारोगा बहाउद्दीन खान ने बाबा के शरीर पर पहला चादर रखा था तबसे चादरपोशी की शुरूआत जमुआ थाना के थाना प्रभारी ही करते हैं।
जमुआ थाना प्रभारी पप्पू कुमार करेंगे समाधि पर पहली चादरपोशी
इस बार परम्परा के अनुसार जमुआ के थाना प्रभारी पप्पू कुमार बाबा के समाधि पर पहली चादरपोशी करेंगे । बाबा के अदभुत शक्तियों के बारे में बताया जाता है कि एक दिन एक कुत्ता उनके पास आया उसका शरीर जख्मों से भरा हुआ था शरीर से बह रहे पस को देख कर उन्होंने उसके पास कुछ फेंका और कहा लो महाराज तुम भी खा लो उसके बाद कुत्ता पूरी तरह निरोग हो गया। एक बार खरगडीहा में भयंकर रूप से प्लेग रोग फैला। जैसे ही इस बारे में पता चला तो उन्होंने कहा दवा घर में रहते हुए लोग बाहर जा रहे हैं जाओ आज के बाद बीमारी से यहां नहीं आएगी।