आदिवासी परंपरा के नाम पर यूसीसी का विरोध मतलब संविधान का विरोध : सालखन
आदिवासी परंपरा के नाम पर यूसीसी का विरोध मतलब संविधान का विरोध : सालखन
यूसीसी में कोई भी फैसला आदिवासियों के पर लागू होने के पूर्व सरना धर्म कोड लागू करे सरकार
डीजे न्यूज, जमशेदपुर : आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि आदिवासी प्रथा ,परंपरा, रूढ़ि आदि की रक्षा के नाम पर कल एक्सएलआरआई ऑडिटोरियम में यूसीसी का विरोध एक प्रकार से संविधान, कानून, मानव अधिकार और जनतंत्र का
विरोध करना है। अभी तक यूसीसी का कोई ठोस प्रारूप सामने नहीं आया है, तब विरोध का हौवा खड़ा करना जायज नहीं लगता है। माझी परगना महाल जैसे संगठन प्रथा, परंपरा, रूढ़ि के नाम पर जनतांत्रिक मर्यादाओं को धत्ता बताकर वंशानुगत नियुक्ति को जबरन जारी रखें हैं। अंततः अधिकांश अनपढ़, पियक्कड़, संविधान कानून से अनभिज्ञ लोग आदिवासी स्वशासन के नाम से स्वशोषन चला रहे हैं। निर्दोष आदिवासियों को डंडोंम (जुर्माना), बारोन (सामाजिक बहिष्कार) और डान पनते (डायन का शिकार) जैसे अमानवीय और गैरकानूनी कार्यो में शामिल हैं। माझी परगना और मानकी मुंडा आदि अब तक अपने गांव- समाज में नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, ईर्ष्या द्वेष, महिला विरोधी मानसिकता, बहुमूल्य वोट को हँडिया दारू रुपयों आदि में खरीद बिक्री जैसी बीमारियों को रोकने में बिल्कुल नाकामयाब हैं।
सभी समाज में अच्छे बुरे प्रथा का चलन है। मगर कोई भी प्रथा यदि संविधान, कानून, मानव अधिकार और जनतंत्र के खिलाफ होगा तो वह मान्य कैसे होगा? जैसे तीन तलाक और सबरीमाला मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश में रोक आदि। अब यदि आदिवासी समाज में बहु विवाह, महिला को संपत्ति में अधिकार, महिला विरोधी मानसिकता पर रोक, शादी-श्राद्ध आदि में नशापान की अनिवार्यता को दूर कर महिलाओं के पक्ष को न्याय पूर्ण अधिकार देना कैसे गलत हो सकता है? यूसीसी विरोध में शामिल अधिकांश माझी परगना, मानकी मुंडा आदि के प्रतिनिधियों और उनको समर्थन देने वाले कतिपय सफेदपोश आदिवासी समाज सुधार की दिशा में शायद अब तक कुछ भी नहीं किया है?
यूसीसी के लिए पूंजीपतियों को दोष देना भी बेतुका लगता है। बल्कि यह राजनीतिक और एक विदेशी धर्म से प्रेरित ज्यादा लगता है।
आदिवासी सेंगेल अभियान ने 3 जुलाई को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को यूसीसी संबंधी अपना ज्ञापन प्रेषित कर मांग किया है कि आदिवासी समाज को पहले लेबल प्लेयिंग फील्ड दिया जाए। यूसीसी में कोई भी फैसला आदिवासियों के ऊपर होने के पूर्व आदिवासियों को मौलिक अधिकार के रूप में सरना धर्म कोड प्रदान किया जाए। क्योंकि बाकी सभी भारतीय धार्मिक आधार पर अपने अधिकारों और यूसीसी पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं तो आदिवासी को भी धार्मिक आधार पहले मिलना जरूरी है। सेंगेल संविधान के साथ खड़ा रहेगा और संविधान की धारा 13,3 (क ) के गलत और भ्रामक प्रचार का भी खंडन करता है। चूंकि ऐसे ही कारणों से झारखंड के अनेक जिलों में हुए पत्थलगड़ी आंदोलन जैसे देश विरोधी आंदोलन के लिए भी उपरोक्त कुछ लोग जिम्मेवार हैं।