आस्था व विश्वास का प्रतीक है कतरास का मां लिलोरी मंदिर

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आस्था व विश्वास का प्रतीक है कतरास का मां लिलोरी मंदिर

दुर्गापूजा में नवमी को जुटती है श्रद्धालुओं की अपार भीड़

तरुण कांति घोष, कतरास : यूं तो झारखंड में क ई पुराने व प्रसिद्ध मंदिर है। इनमें से धनबाद के कतरास स्थित माता लिलोरी मंदिर की ख्याति, इतिहास, अनूठी परंपरा प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों तक फैली हुई है। यह मंदिर आठ सौ वर्ष पुरानी है। मां की यह मंदिर धनबाद रेलवे स्टेशन से लगभग 22 किमी दूर कतरास में स्थित है। कतरी नदी के किनारे अवस्थित माता का यह मंदिर कतरासगढ़ के राजा की कुल देवी मंदिर है। बात उस समय की है जब कतरासगढ़ के राजा सुजन सिंह हुआ करते थे। राजा सुजन सिंह ने ही आठ सौ वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश के रीवा राजघराने के वंशज की मदद से माता की प्रतिमा को यहां स्थापित किया था। उस समय इस जगह पर घनघोर जंगल हुआ करता था। राजघराना परिवार की कुल देवी होने के चलते तब से आज तक मां लिलोरी की पहली पूजा प्रतिदिन राजघराना परिवार के लोग करते आ रहे हैं। इसके बाद ही अन्य श्रद्धालु मां के दरबार में पूजा अर्चना व मत्था टेकते हैं।

==माता लिलोरी की ख्याति: मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु मां के दरबार में सच्चे मन से मन्नतें मांगते हैं, उनकी मुरादें मां अवश्य पूरा करती है। पूजा अर्चना के पश्चात भक्त मन्नतें मांगकर चुनरी की गांठ बांधते हैं। मन्नतें पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाने दुबारा अवश्य आते हैं। यही वजह है कि न सिर्फ झारखंड के विभिन्न जिलों से बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा आदि प्रदेशों से काफी संख्या में श्रद्धालु  माता लिलोरी के दर्शन करने यहां आते हैं।

==नवमी के दिन जुटती है अपार भीड़: माता के दरबार में शीश झूकाने व पूजा करने के लिए प्रतिदिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। दुर्गापूजा में नवमी के दिन पूजन के लिए यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है। मां के दर्शन करने के लिए अहले सुबह से भक्तों की कतार लग जाती है। इस दिन यहां एक हजार से भी अधिक पाठा की बलि दी जाती है। परंपरा के अनुसार राज परिवार के सदस्य मां की पहली पूजा तथा पहला बलि देते हैं। इसके बाद अन्य भक्त पूजा अर्चना करते हैं।

==धार्मिक स्थल के साथ साथ विवाह स्थल भी: मां लिलोरी की महिमा अपरंपार है। इस मंदिर में भक्त सिर्फ पूजा अर्चना करने ही नहीं बल्कि विवाह, मुंडन, जनेऊ कार्यक्रम के लिए भी आते हैं। न ई गाड़ी की पूजा कराने भी लोग आते हैं।

==लगन में जुटती है अपार भीड़: लगन के समय इतनी भीड़ जुटती है कि पैर रखने की भी जगह नहीं रहती है। शादी-विवाह बेहतर ढंग से संपन्न कराने के लिए वर-वधू पक्ष एक-दो माह पहले ही धर्मशाला बूक करवा लेते हैं।

==बाजार: लिलोरी मंदिर के परिसर में‌ क ई स्टाल लगी हुई। यहां श्रृंगार से लेकर नास्ता व भोजन की दुकानें व होटल उपलब्ध हैं।

==मनमोहक पार्क: धनबाद नगर निगम की ओर से अमृत योजना के तहत लिलोरी मंदिर के पहले मनमोहक पार्क का निर्माण कराया गया है। यहां आने वाले श्रद्धालु और पर्यटकों के लिए पार्क आकर्षण का केंद्र है। पार्क में बच्चों के लिए टाय ट्रेन, जमपिंग ट्रैक सहित मनोरंजन के क ई साधन उपलब्ध है।

==परिवहन की सुविधा: धनबाद स्टेशन से लिलोरी मंदिर आने के लिए परिवहन की काफी सुविधा है। स्टेशन से आटो, बस, चार पहिया वाहन से मंदिर आ सकते हैं। साथ धनबाद स्टेशन से ट्रेन से कतरासगढ़ स्टेशन पर उतरकर आटो, ई रिक्शा से भी मंदिर पहुंचा जा सकता है।

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